सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस की चर्चित कार्य प्रणाली की जांच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन तो कर ही दिया है। इससे यह उम्मीद तो बनती है कि अगले तीन – चार महीने में इसके कुछ राज खुल कर सामने जरूर आयेंगे। बहरहाल!
देश के विपक्षी दलों के नेताओं ने इसी उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत भी किया है लेकिन विपक्ष का यह भी कहना है की पेगासस जासूसी जैसा मामला इतना गंभीर है कि इस पर देश की संसद में चर्चा होना भी बहुत जरूरी है। सवाल यह भी है कि जब देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए विशेषज्ञों की एक समिति से इसकी जांच कराने के आदेश जारी कर ही दिए हैं, तो फिर विपक्ष इस मुद्दे पर संसद में चर्चा करवाने की बात और मांग क्यों कर रहा है?
सवाल महत्वपूर्ण है और इसी संदर्भ में यह समझ लेना भी महत्वपूर्ण है कि संसद में चर्चा करवाने पर इस मामले से जुड़े तमाम पहलुओं पर न केवल विस्तार में जानकारी उपलब्ध हो जायेगी बल्कि इस काण्ड से जुड़े तमाम पहलुओं का दस्तावेजीकरण भी हो जाएगा। कहना गलत नहीं होगा कि दस्तावेजीकरण तो विशेषज्ञों की समिति द्वारा जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट को उपलब्ध कराई जाने वाली रिपोर्ट के माध्यम से भी हो जाएगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाने वाली रिपोर्ट गोपनीयता के दायरे में आम जनता तक उपलब्ध नहीं हो पाएगी जबकि संसद में होने वाली चर्चा का सीधा प्रसारण होने की वजह से यह तमाम जानकारी आम जन तक सहज ही उपलब्ध हो जायेंगी। संभवत सरकार नहीं चाहती कि पेगासस जासूसी मामले से जुड़ी जानकारी किसी भी रूप में जनता तक पहुंचे , इसीलिए सरकार ने संसद के मानसून सत्र में इस मुद्दे पर संसद में चर्चा नहीं करवाई और जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो अपने हलफनामे में भी इस बारी में साफ़ – साफ़ कोई उल्लेख नहीं किया।
इतना ही नहीं सरकार की कोशिश तो यह भी थी की जब सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे की जांच के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करने की बात उठे तो सरकार अदालत को यह समझाने की कोशिश भी करे कि ऐसी कोई समिति गठित करने का काम सुप्रीम कोर्ट सरकार पर छोड़ दे ताकि सरकार अपनी पसंद के ऐसे लोगों की जांच समिति का गठन कर दे जो उसकी पसंद की रिपोर्ट तैयार कर मामले को वहीँ दफ़न कर दे जहां से इसे उठाया गया था , पर अदालत ने भी सरकार के इरादों को समय से पहले ही समझ लिया था इसीलिए सरकार से पूछे बगैर ही ऐसे विशेषज्ञों की समिति घोषित कर दी जो पूरे मसले पर निष्पक्ष मशविरा दे सके। सवाल यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने आखिर ऐसा क्यों किया किसरकार को अपनी तरफ से जांच करने का मौका नहीं मिल सका। ऐसा करने की एक बड़ी वजह यह भी थी कि इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कई बार सरकार को इस आशय के निर्देश मौके दिए थे कि सरकार हलफनामे के माध्यम से इस प्रकरण से जुड़े हर पक्ष को अदालत के सामने रखे लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया तो अदालत को अपने स्तर ही मामले की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने का फैसला लेना पड़ा था।
माना जा रहा है कि इस मामले में समिति बनाने का काम बहुत मुश्किल था क्योंकि यह महज क़ानून और व्यवस्था का मामला नहीं था बल्कि इसमें उन तकनीकीपहलुओं की पड़ताल भी करनी थी जो पेगासस की कार्य प्रणाली के साथ बहुत करीबी भी जुड़े हुए हैं। इसीलिए अदालत ने यह काम सर्वोच्च अदालत के एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया था। जिसने साइबर अपराध की दुनिया के विशेषज्ञों की मदद से इस जांच समिति के गठन की प्रक्रिया को नतीजे तक पहुंचाया था। अदालत का मानना है कि पेगासस जासूसी का मामला सिर्फ पत्रकारों और राजनीतिज्ञों का ही मुद्दा नहीं है यह देश के हर नागरिक की निजता के अधिकारों के हनन का मामला भी है।
प्रसंगवश यह पेगासस एक विदेशी एजेंसी का उपकरण है और जब देश की सरकार ऐसी एजेंसी को किसी तरह की ख़ुफ़िया जांच का काम सौंपती है तो मामला गंभीर हो ही जाता है और इस मामले में दूसरे देशों ने भी भारत सरकार पर विदेशी एजेंदियों से काम लेने के आरोप लगाए हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से लिया है। लिहाजा इन तथ्यों की पड़ताल होनी बहुत जरूरी हैकि क्या कोई विदेशी अथॉरिटी, एजेंसी या प्राइवेट संस्था देश के नागरिकों कीजासूसी तो नहीं कर रही थी? इसके साथ ही इस बात की पड़ताल भी बहुत जरूरी है कि कहीं केंद्र या राज्य की सरकारें इस तरह की जासूसी के बहाने नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करने की कोशिशों में तो नहीं लगी हैं ?
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय ग्रुप ने यह दावा किया था कि इजराइली कंपनी NSO के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से 10 देशों में 50 हजार लोगों की जासूसी की गई थी। भारत में भी भारत सरकार के मंत्रियों से लेकर विपक्ष के नेताओं , पत्रकारों, वकील जज , कारोबारी , अफसर , वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता समेत 300 ऐसे लोगों के नाम सामने आए थे , जिनके फोन की निगरानी की गई थी। पेगासस की जासूसी कार्य प्रणाली के बारे में साइबर सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप सिटीजन लैब नामक एक संस्था का कहना यह है कि पेगासस नामक यह उपकरण किसी भी फ़ोन में ऑनलाइन भी इंस्टॉल किया जा सकता है। इसके अलावा हैकर के जरिये भी जासूसी करवाई जाती है , हैकर के जरिये जासूसी करने का एक तरीका यह भी होता है कि टारगेट डिवाइस पर मैसेज के जरिए एक “एक्सप्लॉइट लिंक” भेजी जाती है। जैसे ही यूजर इस लिंक पर क्लिक करता है, पेगासस अपने आप फोन में इंस्टॉल हो जाता हैऔर इस तरह शुरू हो जाता है जासूसी का सिलसिला।