संसद का मौजूदा मानसून सत्र पिछले महीने की 19 तारीख से शुरू हुआ था। सोमवार 19 जुलाई से लेकर शुक्रवार 6 अगस्त तक कुल 19 दिन की इस अवधि के दौरान संसद में तीन सप्ताह कामकाज हुआ। शनिवार और रविवार के दो साप्ताहिक अवकाशों को मिला कर 6 दिन तो संसद में कोई कार्रवाई हुई नहीं इसके अलावा एकाध और दिन बकरीद तथा ऐसे ही किसी एनी धार्मिक पर्व के चलते संसद में अवकाश रहा।
कह सकते हैं कि इस अवधि में कुल मिला कर सात से आठ दिन तक इन अवकाशों के चलते कोई कामकाज नहीं हुआ और संसद के दोनों सदनों में 11 – 12 दिन ही कामकाज हो सका। इसमें भी अधिकांश समय विपक्ष के शोर शराबे और हंगामे के चलते संसद की कार्रवाई बाधित रही। विपक्ष चर्चित पेगासस जासूसी मुद्दे पर सरकार से संसद में में चर्चा कराने की के साथ ही तीन विवादित किसान कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर हंगामा करते रहा। सरकार ने भी इसी विपक्षी हंगामे के बीच जितना हो सका सरकारी कामकाज निपटाने की कोशिश की ऐसे में कुछ सरकारी विधेयक संसद में रखे भी गए और पूर्व में रखे गए कुछ विधेयक पास भी हुए। हैरानी की बात यह है कि एक तरफ तो सरकारी पक्ष ने विपक्ष पर यह आरोप भी लगाया कि उसने संसद की कार्रवाई में लगातार व्यवधान खड़ा कर 130 करोड़ के सरकारी राजस्व का नुक्सान पहुंचाया हैतो दूसरी तरफ विपक्ष ने भी यह कह कर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है कि सरकार ने विपक्ष के शोर शराबे के बीच कई महत्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा के ही संसद से पास करवा लिए।
सरकार और प्रतिपक्ष द्वारा एक दूसरे पर लगाए गए ये दोनों आरोप बेमानी हैं। बमानी इसलिए कि जो पार्टी आज सरकार चला रही है वो जब विपक्ष में थी तब इसी तरह हंगामा कर संसद की कार्रवाई को कई – कई दिन तक बाधित करती थी , तब इस पार्टी को कभी ये ख्याल नहीं आया कि संसद की प्रति मिनट की कार्रवाई में अरबों रुपये का खर्च आता है उसकी भरपाई कैसे होगी। तब यही पार्टी यह कहते हुए धरना प्रदर्शन के कार्यक्रम जारी रखती थी कि लोकतंत्र में जनता के हित के लिए सरकार का विरोध करना विपक्ष का धर्म है। आज जब मौजूदा विपक्ष वही जिम्मेदारी निभाने आगे आता है तो सरकार को सब कुछ नागवार गुजरता है। उधर विपक्ष का सरकार पर लगाया गया यह आरोप भी सही नहीं है कि सरकार ने विपक्ष के शोर शराबे के बीच सदन में चर्चा के बिना ही महत्वपूर्ण विधेयक पास करवा लिए। कहना गलत नहीं होगा कि पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक दूसरे पर इस तरह के आरोप लगा कर देश की जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि जब विपक्ष के लोग सरकार में थे तब उन्होंने भी विपक्ष के हंगामे के बीच संसद से एक – दो नहीं सैकड़ों विधेयक बिना चर्चा के पास करवाए थे।
माना जाता है कि संसद से एक निश्चित मात्रा में सरकारी कामकाज का निपटान संसद के हर सत्र में जरूरी होता है। संवैधानिक बाध्यताओं के चलते कई विधेयकों का पारित करना जरूरी भी होता है। ऐसे में पक्ष और विपक्ष के बीच इस तरह की अघोषित सहमति भी बन जाती है कि सरकार चाहे तो विपक्ष के हंगामे के बीच चर्चा के बिना ही विधेयक पास करवा ले।
इस पृष्ठभूमि में जब हम संसद के मौजूदा मानसून सत्र के दौरान अब तक हुए कामकाज पर नजर डालें तो यह कह सकते हैं कि पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही अघोषित रूप से एक दूसरे को कटघरे में खड़ा कर अपने – अपने कर्तव्य और दूसरे के दायित्व को समझ कर उसके अनुरूप काम करते हुए एक – दूसरे की मदद ही की है विपक्स के हंगामे के बीच सरकार द्वारा संसद से पास कराये गए महत्वपूर्व विधेयकों में एक विधेयक है। किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक- 2021 यह विधेयक जिला और एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को गोद लेने संबंधित आदेश जारी करने और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी और डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट सहित बच्चों के कल्याण से जुड़े प्राधिकरणों के कार्यों की जांच का अधिकार भी देता है. यह कई अपरिभाषित अपराधों को भी परिभाषित करता है, जहां कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है.इसी तरह एक और महत्वपूर्ण विधेयक फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2021 को भी संसद ने शोर शराबे के बीच ही पास किया था।
विगत 28 जुलाई को यह विधेयक राज्यसभा में रखे जाने के महज 15 मिनट के भीतर ही था पास करा लिया गया था। इसका उद्देश्य एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र की मदद करना है. हालांकि इसे एक सप्ताह पहले पेश किया जाना था। लेकिन इजरायली स्पाइवेयर पेगासस द्वारा राजनेताओं, पत्रकारों और संवैधानिक अधिकारियों को कथित रूप से निशाना बनाने के मुद्दे पर विपक्ष के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका।
लोकसभा ने सोमवार 2अगस्त को बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 शीर्षक पास किया था। इस विधेयक के पास होने से सरकार को सरकारी बीमा कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम करने में मदद मिलने के। साथ ही सरकार को विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी. विनिवेश का आशय सरकार द्वारा सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने से है। इस विधेयक के मुद्दे को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच इस वजह से तकरार भी हुई थी क्योंकि सरकार की दलील थी कि इससे आय बढ़ाने में मदद मिलेगी, सरकार के इस के विरोध में विपक्ष का यह कहना था कि यह एक जन विरोधी विधेयक है।
इसी तरह सोमवार को ही लोकसभा ने ट्रिब्यूनल सुधार विधेयक 2021 भी पारित किया था। यह विधेयक बिना चर्चा के पास हुआ था जबकि जबकि विपक्ष ने खासतौर पर सरकार से बिल पर चर्चा कराए जाने की मांग की थी। इस विधेयक का उद्देश्य न्याय वितरण प्रणाली को सुव्यवस्थित करने के लिए विभिन्न कानूनों में संशोधन करके विभिन्न कानूनों के तहत न्यायाधिकरणों या प्राधिकरणों को समाप्त करना है। इनमें सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, कॉपीराइट अधिनियम, सीमा शुल्क अधिनियम, पेटेंट अधिनियम, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण अधिनियम, व्यापार चिह्न अधिनियम और वस्तु भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम शामिल हैं। विधेयक के मुद्दे पर सरकार ने कहा कि बहुत सारे ट्रिब्यूनल के होने से सिर्फ कानूनी दांव पेच को बढ़ावा मिलता है.विपक्षी कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी का इस विधेयक के बारे में यह कहना था कि एक तो , “विपक्ष के अधिकारों को धता बताते हुए सरकार एक के बाद एक विधेयक बिना चर्चा के पास करा रही है। दूसरी बात यह भी है कि इस दौर में कई दिन ऐसे विधेयक भी पास हो रहे हैं जिनका जिक्र उस दिन की सदन की कार्यसूची में ही नहीं था। विपक्ष का आरोप यह भी है कि संसद के मानसून सत्र के शुरुआती 10 दिन के कामकाज में सात मिनट की चर्चा के औसत से ऐसे 12 विधेयक पास कराए हैं।