वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से संबंद्धता वाले कॉलेज डॉ विभूति नारायण गंगापुर कैंपस में एक अतिथि शिक्षिका डॉ वर्षा ( बदला हुआ नाम, पीड़ित की पहचान हम नहीं उजागर कर सकते है,) को कॉलेज के निदेशक डॉ योगेंद्र सिंह के चैंबर में बुलाया जाता है , और उनके साथ बदसलूकी के साथ भद्दे और (Derogatory ) अपमानजनक भाषा का कई लोगों की मौजूदगी में ना सिर्फ डॉ वर्षा के लिए प्रयोग किया जाता है, बल्कि उनको धमकी भी दी जाती है। डॉ योगेंद्र सिंह के द्वारा, धमकी और नौकरी से बाहर करके धमकाने के बहाने मंशा कुछ और ही थी, जिसका जिक्र पीड़िता ने अपनी लिखित शिकायत में किया है इसमें योगेंद्र सिंह के साथ-साथ उसी कैंपस में पढ़ाने वाले शिक्षक डॉ सर्वेश मिश्रा का भी हाथ है। जिसे बचाने के लिए विश्विद्यालय के ऐसे लोगों की जमात लगी हुई है जिन्हें नियम कानून और न्याय से कोई लेना देना नहीं है। ऐसा कहने की हमारे पास पुख्ता वजह है-
डॉ विभूति नारायण सिंह गंगागपुर कैंपस में महिलाओं के साथ हिंसा और शोषण लंबे समय से चल रहा है, जिसकी एक सुर्खिया मार्च में तब सामने आई जब एक अतिथि महिला शिक्षका डॉ वर्षा ने हिम्मत करके अपनी शिकायत इस अन्याय के खिलाफ की। तत्कालीन कुलपति और रजिस्ट्रार की मिली भगत और शह पर आरोपी डॉ योगेंद्र सिंह और सर्वेश मिश्रा जो कि इस मामलें में आरोपी थे को बचाया गया, अब जो नई टीम है विश्विद्यालय में शायद सक्षम नहीं ऐसे लोगों को हैंडल करने के मामलें में तभी पीड़ित के साथ न्याय की जगह भद्दा मजाक किया गया। कोरोना की लहर बेटी के साथ हुआ ये घिनौना कृत्य डॉ वर्षा के पिता के लिए मौत बनकर टूटा। पिछले महीने अपने पिता को खो चुकी वर्षा की मानसिक स्थिति का अंदाजा आप लगा सकते है।
खबरों को रोके जाने कब लिए तक्षकपोस्ट पर लगातार आरोपियों की तरफ से दबाव डाला गया तो क्या पीड़िता को दबाव नहीं डाला जा रहा होगा
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तक्षकपोस्ट के द्वारा इस घटना को उठाने के बाद इस तरफ भी इशारा किया गया था, की राज्यपाल के दबाव और राष्ट्रीय महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग में शिकायत जाने के बाद ऐसी कमेटी गठित हुई जो लीपापोती के लिए बनी। 10 मार्च को घटना घटित होने के बाद, पीड़िता के लिखित में शिकायत देने के बाद भी विश्विद्यालय प्रशासन सोया रहा, लेकिन तक्षकपोस्ट के राज्यभवन 9 अप्रैल में बात करने के बाद इस मामलें में पूछे जाने पर 10 तारीख को आननफानन में विश्विद्यालय एक कमेटी बनाता है जो पूरी तरह कानूनन अयोग्य है। क्योंकि कायदे से विश्विद्यालय प्रशासन की सेक्सुअल हैरेसमेंट सेल को इस मामलें को देखना चाहिए था। लेकिन कानूनन बनी इस सेल को जानबूझकर केस नहीं दिया गया क्योंकि उस कमेटी के पास पहले से डॉ योगेंद्र सिंह के खिलाफ एक शिकायत विश्वविद्यालय की अन्य महिला के द्वारा डाला गया था, जिसमें बकायदा डॉ योगेंद्र सिंह ने लिखित में अपने किये के लिए माफी मांगी है।
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नये कमेटी में कौन-कौन है –
1.प्रोफेसर रंजन कुमार
2.वंदना सिन्हा
3.सभाजीत यादव
4. महेश श्रीवास्तव (सहायक कुलसचिव- सचिव)
ये सारे लोग योगेंद्र सिंह के हमप्याला है, जिसकी पुष्टि पूर्व कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह के कार्यकाल के दौरान गेस्ट हाउस पार्टी में अक्सर हुआ करती थीं। इसलिए इस जांच कमेटी में योगेंद्र सिंह को बचाने की जिम्मेदारी इन्हें मिली। कमेटी के एक अन्य सदस्य सभाजीत यादव जुलाई में रिटायर हो चुके है कानूनी रूप से इस तरह भी वो विश्विद्यालय की किसी कमेटी में ना तो रह सकते है और ना जांच कर सकते हैं। बड़ी चालाकी से विश्विद्यालय की वीमेन सेक्सुअल हैरेसमेंट सेल को इस जांच से बाहर रखा गया।
इस कमेटी में जिन लोगों को रखा गया वो सभी डॉ योगेंद्र सिंह के हितैषी और अगर कहा जाये चमचे है तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि इनको रखा ही इसलिए गया ताकि पीड़िता को डरा धमका कर मामलें को रफा दफा कर दिया जाये। बिना आवाज और सहयोग के ऐसे मामलें टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं।
इसी महीने की 27 तारीख को विश्विद्यालय प्रशासन ने डॉ वर्षा को इस रीढ़ विहीन कमेटी के सामने पेश होने के लिए बुलाया, इससे पहले 20 जून को तक्षकपोस्ट की खबर का संज्ञान लेकर लोकल पुलिस ने कारवाई की कोशिश की तो रजिस्ट्रार के दफ्तर से गलत बयानबाजी हुई। क्योंकि हाल ही में रिटायर हुये रजिस्ट्रार साहेब लाल मौर्य का मुंह बोला बेटा आरोपी है सर्वेश मिश्रा। अपनी इसी नज़दीकियों को सर्वेश ने महिलाओं के शोषण और फायदे के लिए डॉ योगेंद्र सिंह के साथ मिलकर इस्तेमाल किया।
देखिये कमेटी में डॉ वर्षा के साथ क्या हुआ ?
महेश श्रीवास्तव (सहायक कुलसचिव- सचिव) ने पीड़िता को आधिकारिक रूप से कहा कि आपकी शिकायत तो उठाकर हमनें डस्टबिन में डाल दी थीं !!
ठीक पढ़ा आपने ये शब्द कहे गये है, विश्विद्यालय की कुर्सी पर बैठे पढ़े लिखें अनपढ़ व्यक्ति के द्वारा। पहले दिन से इनकी मंशा डॉ वर्षा को तंग करने की रही इस मामलें को लेकर और डॉ योगेंद्र सिंह को फायदा पहुंचाने की।
इसके बाद और शर्मनाक वाक्य ये रहा कि पीड़िता को कहा गया की कामकाज के दबाव में डॉ योगेंद्र सिंह ने पीड़िता के साथ दुर्व्यवहार किया और टेंशन में ऐसा हुआ ??
क्या विश्विद्यालय प्रशासन को ये नहीं पता कि ऐसे आरोप में निष्पक्ष जांच के लिए आरोपी व्यक्ति को तत्काल उस विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया जाता है, या सस्पेंड रखा जाता है जब तक जांच पूरी ना हो ताकि वो गवाहों को प्रभावित ना कर सकें ?? इस मामलें में ऐसा क्यों नहीं किया गया ? विद्यापीठ के ही एक अन्य मामलें में आरोप एक शिक्षक पर लगे थे तो तत्काल कारवाई हुई थीं और उसे निकाल दिया गया था। फिर ये डॉ योगेंद्र सिंह और सर्वेश मिश्रा से अपनी रिश्तेदारी कौन निभा रहा है बचाने के लिए ?? महेश श्रीवास्तव ये बताये उनका निजी क्या स्वार्थ है क्या संबंध है आरोपियों से !
कुलपति आनंद त्यागी और रजिस्ट्रार संगीता पांडेय से हमारा सवाल है, ये बयान तो ठीक मुलायम सिंह के द्वारा निर्भया कांड के समय दिया उस बयान जैसा है जिसमें उनका कहा जाना लड़कों से गलतियां हो जाती है !
तो क्या विश्विद्यालय का कोई कर्मचारी किसी का बलात्कार करें और उसके चाहने वाले कमेटी बनाकर ये कहें कि टेंशन में ऐसा हो गया, क्या इस गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के लिए विश्विद्यालय प्रशासन इस तरह के घटिया मानसिकता का प्रदर्शन कर रहे व्यक्तियों पर क्या कारवाई करेगा ??
सवाल इसलिए क्योंकि डॉ वर्षा को भेजे गये लेटर की कॉपी में कुलपति द्वारा गठित कमेटी लिखा जा रहा है, अब ये अलग बात है कि ये कमेटी किसने किसको फायदा पहुंचाने को बनाई गई थीं ये लिखा जा चुका है। क्या नये कुलपति को अपने कार्यभार ग्रहण करने के बाद ऐसे मामलों का संज्ञान नहीं लेना चाहिए।
शताब्दी वर्ष में विश्विद्यालय प्रशासन नया मॉडल बना रहा है हाथरस और उन्नाव कांड की तरह जहाँ पीड़िता का खानदान खत्म हो जाये और आरोपी आराम से सत्ता के शह पर घूमता रहे शब्दों से बलात्कार करता रहे। और पीड़ितों को न्याय पाने के लिए अपनी नौकरी छोड़नी पड़े।
“हमरे कपारे पर मुतवा जैसे शब्द क्या है” ?? किस संस्थान के अधिकारी और किस घर में ऐसा बोला जाता है महिलाओं को। महिलाओं को प्राकृतिक तौर पर बैठ कर ही लघुशंका करनी होती है पुरषों की तरह मुँह उठाकर कर कही भी खड़े होकर नहीं। इस तरह की जेंडर को लेकर संवेदनशील वातावरण कौन बनायेगा ?
ऐय्यास और ऐसे मनबढ़ों को प्रशासन क्यों झेल रहा है किस दबाव में जो खुलेआम बच्चों को धमकाना और डराने के अलावा अपने शिक्षकों को धमकी देते सुना गया कि मोबाइल फ़ोन की फोरेंसिक जांच करवाउंगा। ये अधिकारीरिक बयान मान लिया जाये विश्विद्यालय प्रशासन का ???
हौसला कितना बुलंद है, और विश्विद्यालय में काम कैसे हो रहा यहाँ पर ये देखे, इस कमेटी से मिलने से पहले डॉ वर्षा को लगातार 4 दिनों तक कुलपति से मिलने नहीं दिया गया। 5वें दिन डटकर बैठने पर कुलपति के PA ने डॉ वर्षा को मिलने दिया लेकिन साथ ही तुरंत फ़ोन पर योगेंद्र सिंह को इसकी सूचना दे दी। ये कोई पहली दफा नहीं हुआ था जब सुरेंद्र सिंह के द्वारा ये हरकत की गई। ऐसा लगता है कि वो कुलपति के मुखबिरी के काम में लगाया गया है। कुलपति ऑफिस में बैठकर वो कुलपति के नाम पर दलाली और लोगों को तंग करने में लगा हुआ है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का कुलपति कौन है प्रोफेसर आनंद त्यागी या डॉ योगेंद्र सिंह ! योगेंद्र सिंह क्यों कुलपति की गाड़ी इस्तेमाल कर रहा है किस हैसियत से ?
कुलपति से मिलने के बाद भी जब पीड़िता को इस तरह का व्यवहार और जलालत का सामना करना पड़ रहा है तो सोचने की बात ये है कि कैसे न्याय मिलेगा पीड़िता को इस मामलें में। हमारे सूत्रों की खबर की माने तो डॉ योगेंद्र सिंह ने एक पूर्व भाजपा विधायक से विश्विद्यालय के एक उच्च अधिकारी को फ़ोन करवाके इस मामलें में और अन्य मामलें में कारवाई ना करने का दबाव बनाया है, फ़ोन पर कहा गया कि जैसा चल रहा है चलने दीजिये कुछ ही महीनों में डॉ योगेंद्र सिंह की रिटायरमेंट है। हमारे पास फ़ोन करने वाले और रिसीव करने वाले दोनों व्यक्तियों के नाम मौजूद है। समय अनुसार खुलासा भी करेंगे।
दिल्ली आकर भी फ़ोन करवाया गया तो क्या अब भाजपा वाले विश्विद्यालय चलाएंगे ??
अब सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि विशाखा गाइडलाइंस का पालन क्यों नहीं किया जा रहा। जब प्रसाशनिक स्तर महेश श्रीवास्तव जैसे पढ़े लिखे अनपढ़ व्यक्तियों को बिठाया जायेगा तो सवाल उठना स्वाभाविक है। क्या हमारी बच्चियां ऐसे लोगों का शिकार बनने के लिए है।
इस मामलें में आरोपी सर्वेश मिश्रा ने तक्षकपोस्ट की टीम को कॉल करवा कर खबर नहीं लिखने का दबाव बनाया तो क्या डॉ वर्षा को दबाव नहीं बनाया जा रहा होगा
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कर्मचारियों को क्या नहीं मालूम कि कार्यस्थल पर हिंसा और शोषण का क्या होता है-
महिला आयोग के द्वारा इस मामले को संज्ञान लेने के बाद अभी तक आरोपियों को POSH act 2013 के हिसाब से जांच होने तक इनके पद से हटाया नहीं गया है।
शारीरिक टिप्पणी, छूने की कोशिश, गंदी बातचीत भी कार्यस्थल पर हिंसा की श्रेणी में आता है।
ऐसे मामलों के सामने आने के बाद कोई भी व्यक्ति पीड़ित को न्याय दिलवाने के लिए शिकायत दर्ज कर सकता है। पीड़ित से उसका परिचय होना या संबंध होना जरूरी नहीं।
निर्भया कांड के बाद अब पेनिट्रेशन ही बलात्कार नहीं बल्कि गंदी और घटिया बयानबाजी के साथ छेड़छाड़ भी बलात्कार की श्रेणी में आता है IPC में काफी व्यापक बदलाव इसके मद्देनजर किये गए हैं।
क्या कहता है भारत का कानून-
Indian penal Court और (POSH act 2013 ) के अंदर ये मानसिक बलात्कार की श्रेणी में आता है, किसी भी कार्यस्थल पर ऐसी घटना को IPC 358, और 509 में शिकायत के बाद रजिस्टर्ड करवाना जरूरी है, विशाखा गाइडलाइंस और निर्भया कांड के बाद भी बहुत सारे बदलाव हुये है , जिसका पालन किसी भी कार्यस्थल पर जरूरी है। कुछ ऐसी बातें है जो कार्यस्थल पर अपराध की श्रेणी में आता है देखिये।