ज्ञानेन्द्र पाण्डेय:एक हफ्ते के अंतराल में ही देश को दूसरे समुद्री तूफ़ान का सामना करना पड़ रहा है। इसी महीने 17 से 19 मई की तारीखों के बीच देश के गोवा,कोंकण , महाराष्ट्र, गुजरात , दमन और दीव के पश्चिम तटीय समुद्री क्षेत्र में चक्रवाती तूफ़ान “ताउते ” ने दस्तक दी थी . इस तूफ़ान के ठन्डे पड़ने के बाद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार 19 मई को गुजरात के चक्रवात से प्रभावित इलाकों का हवाई दौरा किया था, और शीर्ष अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय विचार विमर्श के बाद तूफ़ान प्रभावितों को समुचित सहायता देने के आदेश भी जारी किये थे। 1 हजार करोड़ की राशि राहत के लिए दिये गए।
इस बात को अभी एक हफ्ता ही हुआ है और एक बार फिर देश के बंगाल और ओडिशा समेत पूर्वी समुद्र तटीय क्षेत्र में ताउते से कहीं अधिक प्रभावशाली ” यास ” समुद्री तूफ़ान का खतरा पैदा हो गया है। बताते हैं कि यास तूफ़ान ताउते से कहीं अधिक खतरनाक है। इसके खतरे का अंदाजा इसकी लहरों की रफ़्तार से लगाया जा सकता है। ताउते तूफ़ान की हवाओं की रफ़्तार 80 किमी प्रति घंटे से लेकर अधिकतम 120 घंटे प्रति किमी नापी गई थी जबकि यास की रफ़्तार 160 किमी प्रति घंटा बताई जा रही है। समुद्री तूफ़ान में खतरे का अंदाजा हवाओं की रफ़्तार को देख कर ही लगाया जाता है। इससे पता चल सकता है कि बंगाल की खाड़ी से उठने वाला कितना खतरनाक साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों की माने तो ताउते के मुकाबले यास ज्यादा खतरनाक साबित होने वाला है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि बंगाल की खाड़ी से उठने वाला हर तूफ़ान न केवल पश्चिमी तटसे उठने वाले समुद्री तूफानों से अधिक खतरनाक होता है बल्कि बंगाल की खाड़ी से ही सर्वाधिक समुद्री तूफ़ान उठते भी हैं। पिछले साल (2020 में ) इन्हीं दिनों इसी इलाके से उठे अम्मान तूफ़ान ने काफी तबाही मचाई थी। कहते भी हैं कि बंगाल की खाड़ी खौलती भी कुछ ज्यादा ही है। इसी वजह से बंगाल के लोगों का दिमागी पारा भी हमेशा चढ़ा हुआ ही रहता है। बंगाल की खाड़ी के मुकाबले अरब सागर यानी देश के पश्चिमी समुद्र तटीय क्षेत्र में एक तो समुद्री तूफ़ान आते भी बहुत कम हैं , दूसरा ये तूफ़ान अपेक्षाकृत ठन्डे भी होते हैं और ज्यादातर इनकी हवाएं ओमान की तरफ मुड़ जाती हैं जिसकी वजह से भारत के तटीय क्षेत्रों को नुकसान भी कम पहुँचता है। इसके विपरीत बंगाल की खाड़ी से उठने वाला तूफ़ान उग्र होने के साथ – साथ उत्पाती भी होता है।
इसके इसी गुण की वजह से ही शायद इस समुद्री तट को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी मिली हुई है। दुनिया के सभी समुद्रों में संभवतः कोई भी ऐसा नहीं है जिसे एक देश के किसी राज्य अथवा इलाके के नाम से पहचाना जाता हो। इस हिसाब से बंगाल की खाड़ी इकलौता ऐसा नाम है। आविभाजित भारत के जिस दौर से इस नाम को जाना जाता है तब बंगाल भारत का एक राज्य ही था। देश के विभाजन के बाद जरूर बांगला देश के नाम से एक और देश वजूद में आ गया है। बंगाल का तूफ़ान खतरनाक होता है और इसीलिए राज्यों और केंद्र की सरकारों ने इससे बचाव के लिए पुख्ता इंतजाम भी कर लिए हैं।
नौसेना और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल समेत अनेक अर्ध सैनिक बालों की सुरक्षा , राहत और बचाव टुकड़ियां कई दिन पहले ही तूफ़ान के संभावित प्रभावित इलाकों में तैनात कर दी हैं, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार इस पर नजर भी रखे हुए हैं। इसी सन्दर्भ में प्रभावित राज्यों पश्चिम बंगाल और ओडिशा के मुख्य मंत्रियों ने भी राज्य सरकार की तैयारियों से केंद्र को अवगत भी करा दिया है। इसी कड़ी में ओडिशा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक ने सोमवार 24 मई को इस बात जानकारी देते हुए बताया था कि उनकी सरकार यास तूफ़ान का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इन्हीं तैयारियों के बीच इसके 26 मई को ओडिशा के बालासोर समुद्री तट के साथ ही बंगाल के कुछ इलाकों में दस्तक देने की प्रबल संभावना है। बचाव की तैयारियों के सिलसिले में ही कोलकाता बंदरगाह में 25 मई की सुबह से ही जहाज़ों के आवागमन पर रोक लगा दी गई थी और इस क्षेत्र में जाने वाली कई रेल गाड़ियों की यात्रा भी कुछ दिन के लिए स्थगित कर दी गई हैं।
मौसम के जानकारों का मानना है कि इस तूफ़ान का असर केवल बंगाल और ओडिशा तक ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर के असम और मेघालय राज्यों के साथ ही बिहार और उसके आसपास के राज्यों तक भी पड़ेगा। इसी सन्दर्भ में यास तूफ़ान का असर 26 मई को ही असम – मेघालय और 28 मई को बिहार समेत आसपास के राज्यों में पड़ने की बात कही जा रही है ..यास से हो सकने वाले खतरों के सन्दर्भ में ही देश के पूर्वी तटीय बंगाल और ओडिशा राज्यों के साथ ही पश्चिम तटीय और दक्षिण तटीय आंध्र , तमिलनाडु , और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के समुद्र तटीय इलाकों में भी एहतियात के तौर पर राहत और बचाव बालों की तैनाती की गई है। इस तूफ़ान के बारे में एक जानकारी यह भी मिली है कि समुद्र में इसकी लहरें कई – कई फुट तक उपर जायेंगी।
इन लहरों की उंचाई जितनी ज्यादा होगी उतना ही खतरा भी ज्यादा होगा। मौसम विभाग के मुताबिक इसके बुधवार 26 मई तक ओडिशा और बंगाल के तट को पार करने की उम्मीद है। बंगाल की खाड़ी और उसके आस पास के इलाक़ों में इस तूफ़ान का असर दिखने भी लगा है। इन इलाक़ों में मंगलवार 25 मई से ही तेज बारिश शुरू हो गई है .बंगाल की खाड़ी में 11 नवम्बर 1970 को आया भोला चक्रवात काफी खतरनाक माना जाता है। बांगला देश के वजूद में आने से पहले उस इलाके में दस्तक देने वाले इस तूफ़ान के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान ( आज के बांगला देश ) में भयंकर बाढ़ आ गई थी। इस दौरान समुद्र में समुद्र में 35 फीट ऊंची लहरें उठी थीं, जिन्होंने बांग्लादेश के बड़े भू-भाग को अपना निशाना बनाया था। कहा जाता है कि इस तूफान के चलते पूर्वी पाकिस्तान में 3 से 5 लाख लोगों की जानें गई थीं। इसे उष्ण कटिबंधीय तूफानों में अब तक का ज्ञात सबसे खतरनाक तूफान माना जाता है। एक पूरा शहर इससे आई बाढ़ में बह गया था। भारत पर भी इसका भारी असर पड़ा था। इसके अलावा 2008 मेंबांगला देश के दक्षिण में आये नर्गिस तूफ़ान ने भी काफी तबाही मचाई थी।
यह तूफ़ान म्यांमार के दक्षिणी डेल्टा क्षेत्र में आया था। इस तूफान से प्रभावित क्षेत्र में सवा लाख से ज्यादा लोग लोग मारे गए थे। इसी कड़ी में 14 अप्रैल 2010 में बंगाल की खाड़ी से ही उठे तूफ़ान ने पश्चिम बंगाल, बिहार और असम में 120 लोगों की जान ले ली थी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इसी तरह 14 अक्टूबर 2014 को इसी क्षेत्र में आए एक समुद्री तूफ़ान ने आंध्रप्रदेश व ओडिशा में तबाही मचाई थी। इसका असर बंगाल, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश के साथ ही पंजाब एवं हरियाणा में भी हुआ था। इस तूफान की वजह से 25 लोगों की मौत हुई। जानकारी के मुताबिक इतिहास के 35 सबसे घातक उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में से 26 चक्रवात बंगाल की खाड़ी में आए हैं। इन तूफानों से बांग्लादेश में सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है। पिछले 200 साल में दुनिया भर में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात से दुनिया भर में हुई कुल मौत में से 40 फीसदी सिर्फ बांग्लादेश में हुई है।
जबकि भारत में एक चौथाई जानें गई हैं। बंगाल की खाड़ी में अरब सागर की तुलना में ज्यादा तूफान आते हैं। इसका कारण हवा का बहाव हैं। नेशनल साइक्लॉन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट के मुताबिक साल 1891 से 2000 के बीच भारत के पूर्वी तट पर 308 तूफान आए। इसी दौरान पश्चिमी तट पर सिर्फ 48 तूफान आए।