श्वेता र रश्मि: बापू की पुण्यतिथि पर आखिर क्यों बीजेपी और आरएसएस मनाना चाहती है एक हत्यारे को भगवान ! क्या ये देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता, आखिर समाज को क्या संदेश देना चाहती है भाजपा की समाज में हत्या करना जायज है वो भी अपने राष्ट्रपिता की ?
कभी बाबरी मस्जिद गिरा कर तो कभी भगवा गुंडों के बल पर तो कभी धर्म के नाम पर भाजपा हमेशा बुरे कर्मो को लेकर विवादों में रही है। और जिस तरह से 2014 में सत्ता में आते ही एक हत्यारे को स्थापित करने की सनक में है वो एक ऐसे हताश और अन्य अंधे समाज की तरफ लोगों को ले जाने का प्रयास कर रही है जहाँ जल्द ही भारत एक नया तालिबान कबीला बन जायेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को मन की बात कहते नहीं अघाते पर नाथूराम गोडसे के महिमा मंडन करते अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को नहीं समझाते की ये गलत है जब वो झुकते है नाथूराम गोडसे की तस्वीर के आगे तो शरीर की भाव भंगिमा कुछ और कहती है और जब बाबू को प्रणाम करते है लगता है किसी मजबूरी में या वोट के खातिर ऐसा कर रहे है। तो ये मान लेने में कोई बुराई नहीं कि कही ना कही वो महात्मा गांधी के अस्तित्व को मजबूरी में ढोने का काम कर रहे है।
अब देखिए वाराणसी में मैं ब्राह्मण हूं नाम की कोई समिति नाथूराम गोडसे के लिए सम्मान सभा रखती है ऐसा तो नहीं है कि स्थानीय प्रशासन को इसकी खबर नहीं होगी पर सरकार ने क्या किया !
शनिवार को नदेसर में आयोजित नाथूराम गोडसे सम्मान दिवस पर गोडसे की पूजा की गई। आयोजन में समिति के सदस्यों ने नाथूराम गोडसे की तस्वीर पूजा पाठ करके बड़ी बेशर्मी से कहा, समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत त्रिपाठी ने कहा कि हम पूरे देश में नाथूराम गोडसे की विचारधारा से लोगों को जोड़ेंगे। मतलब समाज को ऐसे हत्यारों की एक फौज देंगे जो जरा सी भी असहमति पर किसी के शरीर में गोली उतारने में परहेज़ ना करे।
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी और गांधी विचारधारा के लोग केवल मामूली सा विरोध जता कर बल्लियों उछल रहे है। महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने गोडसे की पूजा करने वालों पर कार्रवाई की कमजोर सी मांग करते है।
नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी का हत्यारा था तो फिर उसका सम्मान क्यों?
आखिर क्यों सरकार हिन्दू महासभा जैसे संगठन पर प्रतिबंध नहीं लगा पा रही, ये तो वहीं बात हुई मुँह में राम बगल में छुरी पर्दे के सामने बीजेपी और आरएसएस अच्छे बने रहने का नाटक करती है और पर्दे के पीछे से चुनचुनकर नेहरू और महात्मा गांधी की विरासत और कदमों के पदचिन्हों को मिटा कर एक हिंसात्मक समाज की रचना करवाना चाहती है जो हत्या करने में कोई संकोच ना करें।