नई दिल्ली: दिल्ली में गिरता पारा और बेमौसम की बारिश के कारण हाड कंपकपाती ठंड में दिल्ली की सीमाओं पर किसान अपने परिवारों के साथ जिनमें छोटे बच्चें भी शामिल है प्रदर्शन कर रहे है नये कृषि कानून के विरोध में। किसानों का कहना है ये कानून किसान के हितों से ज्यादा निजी और प्राइवेट सेक्टर में सक्रिय अडानी और अम्बानी को फायदा पहुंचाने के लिए ज्यादा मुफीद है। ऐसे में सरकार हमारी बात सुने और इन काले कानूनों को वापस ले जब तक ये कानून वापस नहीं लिये जाएंगे हम पीछे नहीं हटेंगे ना अपने घर वापस जायेंगे।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी असमय मौत की मुँह में समा रहे किसानों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुये प्रधानमंत्री नरेंद मोदी को सवालों के कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि पिछले 39 दिनों से किसान आंदोलन कर रहे है जिनके लिए पूरा देश दुआएं मांग रहा, मेरा मन भी परेशान है। लेकिन सरकार अपनी जिद में बैठी है।
आंदोलन को लेकर सरकार की बेरुख़ी के चलते अब तक 60 जान चुकी हैं। कुछ ने तो सरकार की उपेक्षा के चलते आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लिया। पर बेरहम मोदी सरकार का न तो दिल पसीजा और न ही आज तक प्रधानमंत्री या किसी भी मंत्री के मुँह से सांत्वना का एक शब्द निकला। मैं सभी दिवंगत किसान भाईयों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रभु से उनके परिजनों को यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करती हूँ।
आज़ादी के बाद देश के इतिहास की यह पहली ऐसी अहंकारी सरकार सत्ता में आई है जिसे आम जनता तो दूर, देश का पेट भरने वाले अन्नदाताओं की पीड़ा और संघर्ष भी दिखाई नहीं दे रहा। लगता है कि मुट्ठी भर उद्योगपति और उनका मुनाफ़ा सुनिश्चित करना ही इस सरकार का मुख्य एजेंडा बनकर रह गया है।
लोकतंत्र में जनभावनाओं की उपेक्षा करने वाली सरकारें और उनके नेता लंबे समय तक शासन नहीं कर सकते। अब यह बिल्कुल साफ़ है कि मौजूदा केंद्र सरकार की ‘थकाओ और भगाओ की नीति के सामने आंदोलनकारी धरती पुत्र किसान-मज़दूर घुटने टेकने वाले नहीं हैं।
अब भी समय है कि मोदी सरकार सत्ता के अहंकार को छोड़कर तत्काल बिना शर्त तीनों काले क़ानून वापस ले और ठंड एवं बरसात में दम तोड़ रहे किसानों का आंदोलन समाप्त कराए। यही राजधर्म है और दिवंगत किसानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी।