सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के संभल की ट्रायल कोर्ट से कहा कि जब तक जामा मस्जिद की शाही ईदगाह कमेटी हाईकोर्ट नहीं जाती, तब तक मस्जिद सर्वेक्षण मामले पर आगे न बढ़ें। शीर्ष अदालत का यह आदेश संभल में मस्जिद के अदालती आदेशित सर्वेक्षण के बाद भड़की हिंसा में पांच लोगों की मौत के कुछ दिनों बाद आया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि मस्जिद का सर्वेक्षण करने वाले आयुक्त की रिपोर्ट को सीलबंद कवर में रखा जाना चाहिए और इस बीच इसे खोला नहीं जाना चाहिए।
सीजेआई ने कहा, “इसे लंबित रहने दें। हम शांति और सद्भाव चाहते हैं। आप (याचिकाकर्ता) उच्च न्यायालय जाएं। तब तक ट्रायल कोर्ट को कोई कार्रवाई नहीं करना है।”
सुप्रीम कोर्ट का आदेश संभल शाही जामा मस्जिद कमेटी द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश को चुनौती दी गई थी। ट्रायल कोर्ट का आदेश इन दावों के बाद आया कि मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर ने 1526 में वहां मौजूद एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया था।
याचिका में निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है। यह भी कहा गया है कि सर्वे रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाए। सुप्रीम कोर्ट यह भी आदेश दे कि इस तरह के धार्मिक विवादों में बिना दूसरे पक्ष को सुने सर्वे का आदेश न दिया जाए। संभल जिला अदालत ने 19 नवंबर को मुगलकालीन मस्जिद का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था।
याचिका में कहा गया है कि इस तरह के सर्वेक्षण, विशेष रूप से ऐतिहासिक पूजा स्थलों के सर्वेक्षण, साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ा सकते हैं और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने बाने को कमजोर कर सकते है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि उसी दिन सीनियर डिवीजन के सिविल जज ने मामले को सुना और मस्जिद समिति का पक्ष सुने बिना सर्वे के एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर दिया। एडवोकेट कमिश्नर 19 नवंबर की शाम ही सर्वे के लिए पहुंच गए। फिर 24 को सर्वे हुआ। जिस तेजी से सारी प्रक्रिया हुई, उससे लोगों में शक फैल गया और वे अपने घर से बाहर निकल गए। भीड़ के उग्र हो जाने के बाद पुलिस गोलीबारी हुई और पांच लोगों की मौत ही गई।
याचिका में आगे कहा गया है कि शाही मस्जिद 16वी सदी से वहां है। इतनी पुरानी धार्मिक इमारत के सर्वे का आदेश पूजास्थल अधिनियम और प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल कानून के खिलाफ है। अगर यह सर्वे जरूरी भी था, तो यह एक ही दिन में बिना दूसरे पक्ष को सुने नही दिया जाना चाहिए था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिका को तीन कार्य दिवसों के भीतर सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने समिति की याचिका को अपने समक्ष लंबित रखा और इसे 6 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।
अदालत ने कहा, “हम स्पष्ट करते हैं कि हमने मामले की योग्यता पर कोई राय व्यक्त नहीं की है। हम वर्तमान याचिका का निपटारा नहीं कर रहे हैं। 6 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में फिर से सूचीबद्ध करें।”
मस्जिद समिति की ओर से पेश होते हुए, वरिष्ठ वकील हुज़ेफ़ा अहमदी ने शीर्ष अदालत को बताया कि ट्रायल कोर्ट का आदेश “सार्वजनिक शरारत” पैदा करने में सक्षम था। उन्होंने कहा, ”देश भर में दस मुकदमे लंबित हैं… काम करने का तरीका केवल पहले दिन है, सर्वेक्षक नियुक्त किया गया है।”
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को 8 जनवरी तक कोई कदम नहीं उठाने को कहा, जबकि जिला प्रशासन से शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने को कहा। अदालत ने आगे कहा, “हम नहीं चाहते कि कुछ भी हो। मध्यस्थता अधिनियम की धारा 43 देखें…जिले को मध्यस्थता समितियां बनानी चाहिए। हमें बिल्कुल तटस्थ रहना होगा।”