उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने कांवड़ यात्रियों के लिए बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने पूरे उत्तर प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर खाद्य पदार्थों की दुकानों पर ‘नेमप्लेट’ लगाने का आदेश दिया है। CMO ने कहना कि कांवड़ यात्रियों की आस्था की पवित्रता बनाए रखने के लिए यह फैसला लिया गया है। हलाल सर्टिफिकेशन वाले उत्पाद बेचने वालों पर भी कार्रवाई होगी। निर्देश के मुताबिक, हर खाने-पीने की दुकान या ठेले वाले को बोर्ड पर मालिक का नाम लिखना होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह निर्णय कांवर यात्रियों की पवित्रता बनाए रखने के लिए लिया गया है। अब, हर भोजनालय, चाहे वह रेस्तरां हो, सड़क किनारे ढाबा हो, या यहां तक कि खाने की गाड़ी भी हो, उसे मालिक का नाम प्रदर्शित करना होगा।
उत्तराखंड की हरिद्वार पुलिस ने भी ऐसा ही आदेश पारित किया है। एक आदेश में, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी), हरिद्वार ने कहा कि सभी दुकानदारों को कांवर यात्रा के दौरान अपनी दुकानों के बाहर अपना नाम लिखना अनिवार्य है।
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एसएसपी प्रमोद सिंह डोभाल द्वारा आदेश में कहा गया है, “सभी होटल और ढाबा मालिकों को अपने आउटलेट के बाहर अपना नाम, क्यूआर कोड और मोबाइल नंबर प्रदर्शित करने का आदेश दिया गया है। उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और उनके आउटलेट हटा दिए जाएंगे।”
बीजेपी के राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने कहा, “निश्चित रूप से यह स्वागत योग्य कदम है और लोगों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द्र बढ़े इस भावना के साथ सरकार ने यह आदेश जारी किया है। इस आदेश में यह नहीं कहा गया है कि किसे कहां से सामान खरीदना है, जो जहां से चाहे वहां से सामान खरीद सकता है। दुकान के नीचे लगभग 40-50% लोग अपने मालिक का नाम लिखते हैं, मैं समझता हूं कि जो संविधान की व्यवस्था है उसमें धार्मिक आस्था का सम्मान और सरंक्षण का जो भाव दिया है उसके अंतर्गत यह एक बेहतर प्रयत्न है। हिंदू और मुसलमान मिलकर चलें, रामलीला में मुसलमान पानी पीलाते हैं तो लोग पीते हैं, ईद में हिंदू लोग उनका स्वागत करते हैं इसमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन जो व्रत, त्योहार, कांवड़ यात्रा के कुछ नियम हैं उनका उल्लंघन न हो। इस नीयत से यह निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है।”
भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, “एक सीमित प्रशासनिक दिशानिर्देश के कारण इस तरह का असमंजस हुआ था, मुझे खुशी है कि राज्य सरकार ने जो भी सांप्रदायिक भ्रम पैदा हुआ था उसे दूर किया है। मेरा यही कहना है कि इस तरह के विषयों पर किसी को सांप्रदायिक भ्रम फैलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह किसी मुल्क, मजहब, मानवता के लिए अच्छा नहीं है। आस्था का सम्मान और आस्था की सुरक्षा पर सांप्रदायिक सियासत नहीं होनी चाहिए।”
इस बीच बीजेपी की सहयोगी दल जेडीयू ने इस फैसले पर पुनर्विचार की बात कही है। JDU प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने कहा, “इससे बड़ी कांवड़ यात्रा बिहार में निकलती है वहां इस तरह का कोई आदेश नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की जो व्याख्या भारतीय समाज, NDA के बारे में है- ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’, यह प्रतिबंध इस नियम के विरुद्ध है। बिहार में नहीं(आदेश) है, राजस्थान से कांवड़ गुजरेगी वहां नहीं है। बिहार का जो सबसे स्थापित और झारखंड का मान्यता प्राप्त धार्मिक स्थल है वहां नहीं है। इसपर पुनर्विचार हो तो अच्छा है।”
BJP की सहयोगी दल RLD ने यूपी सरकार के कांवड़ यात्रा वाले फ़ैसले का विरोध किया है। पार्टी ने इस फ़ैसले को वापस लेने की माँग की है।
वहीं कांग्रेस ने बीजेपी पर पलटवार किया और इस फैसले को अव्यावहारिक बताया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “यह पूरी तरीके से अव्यावहारिक कार्य है। वे समाज में भाईचारे की भावना को खराब करने का कार्य कर रहे हैं। इसको तत्काल निरस्त करना चाहिए।”
बसपा सुप्रीमो मायावती ने योगी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि यह फैसला असंवैधानिक है और चुनावी फायदे के लिए उठाया गया कदम है। उन्होनें एक पोस्ट में कहा, “यूपी व उत्तराखण्ड सरकार द्वारा कावंड़ मार्ग के व्यापारियों को अपनी-अपनी दुकानों पर मालिक व स्टाफ का पूरा नाम प्रमुखता से लिखने व मांस बिक्री पर भी रोक का यह चुनावी लाभ हेतु आदेश पूर्णतः असंवैधानिक। धर्म विशेष के लोगों का इस प्रकार से आर्थिक बायकाट करने का प्रयास अति-निन्दनीय।”
इससे पहले मुजफ्फरनगर प्रशासन ने जारी किया था आदेश-
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर प्रशासन ने कांवड़ यात्रा के मार्ग पर पड़ने वाले होटलों, ढाबों और छोटे-मोटे दुकानदारों को आदेश दिया था कि वे अपनी दुकानों के आगे मालिकों का नाम लिखें, ताकि मालिकों का धर्म पहचाना जा सके। हालांकि विपक्ष और एनडीए सहयोगियों के विरोध के बाद पुलिस ने एक नई एडवाइजरी जारी की जिसमें मालिकों के नाम को प्रदर्शित करना “स्वैच्छिक” कर दिया गया।
पवन खेड़ा, औवेसी, अखिलेश यादव ने सरकार की आलोचना की थी-
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, “कांवड़ यात्रा के रूट पर फल सब्ज़ी विक्रेताओं व रेस्टोरेंट ढाबा मालिकों को बोर्ड पर अपना नाम लिखना आवश्यक होगा। यह मुसलमानों के आर्थिक बॉयकॉट की दिशा में उठाया कदम है या दलितों के आर्थिक बॉयकॉट का, या दोनों का, हमें नहीं मालूम। जो लोग यह तय करना चाहते थे कि कौन क्या खाएगा, अब वो यह भी तय करेंगे कि कौन किस से क्या ख़रीदेगा? जब इस बात का विरोध किया गया तो कहते हैं कि जब ढाबों के बोर्ड पर हलाल लिखा जाता है तब तो आप विरोध नहीं करते। इसका जवाब यह है कि जब किसी होटल के बोर्ड पर शुद्ध शाकाहारी भी लिखा होता है तब भी हम होटल के मालिक, रसोइये, वेटर का नाम नहीं पूछते। किसी रेहड़ी या ढाबे पर शुद्ध शाकाहारी, झटका, हलाल या कोशर लिखा होने से खाने वाले को अपनी पसंद का भोजन चुनने में सहायता मिलती है। लेकिन ढाबा मालिक का नाम लिखने से किसे क्या लाभ होगा? भारत के बड़े मीट एक्सपोर्टर हिंदू हैं। क्या हिंदुओं द्वारा बेचा गया मीट दाल भात बन जाता है? ठीक वैसे ही क्या किसी अल्ताफ़ या रशीद द्वारा बेचे गए आम अमरूद गोश्त तो नहीं बन जाएँगे।”
एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस कदम की तुलना दक्षिण अफ्रीका में “रंगभेद” और हिटलर के जर्मनी में “जुडेनबॉयकॉट” से की।
ओवैसी ने पोस्ट किया, ”उत्तर प्रदेश पुलिस के आदेश के मुताबिक, अब हर खाने की दुकान या ठेले वाले को बोर्ड पर अपना नाम लिखना होगा, ताकि कोई भी कांवरिया गलती से मुस्लिम दुकान से कुछ न खरीदे।”
समाजवादी पार्टी के सांसद और अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अदालत से स्वत: संज्ञान लेने और ऐसे आदेश के पीछे सरकार की मंशा की जांच करने और उचित दंडात्मक कार्रवाई करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा, “ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं। सरकार शांतिपूर्ण माहौल को खराब करना चाहती है।”
दारुल उलूम के प्रवक्ता मौलाना सुफियान निज़ामी ने कहा कि इस तरह का सांप्रदायिक पूर्वाग्रह गलत है और इस पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
निज़ामी ने कहा, “कोई भी धर्म दूसरे धर्मों के साथ भेदभाव नहीं करता है, इसलिए यह आदेश गलत है। मुस्लिम भी कांवर यात्रियों के लिए व्यवस्था करते हैं और जब ताजिया निकाला जाता है, तो हिंदू भाई भी मदद करते हैं। यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि भाईचारा बना रहे।”
मालूम हो कि 22 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा को लेकर पूरे उत्तर प्रदेश में तैयारियां चल रही हैं।