तक्षक पोस्ट का एक पन्ना आज से खाली रहा करेगा, क्योंकि उसमें अपनी कलम से मोतियों जैसे अक्षर को उकेरने वाले योद्धा और हमारे प्रिय पूर्व आईपीएस अधिकारी विजय शंकर सिंह जी असमय काल के गाल में समा गये। इस क्षति की भरपाई कोई नहीं कर सकता।
बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के पूर्व छात्र और पुलिस की नौकरी से रिटायर्ड तेज़ तर्रार अफसर के तौर पर लोकप्रिय विजय शंकर जी हमेशा हमारे मार्गदर्शक रहें। पत्रकारिता के दौरान विषम परिस्थितियों का सामना करते समय भी हमेशा उनकी हौसला अफ़जाई मिलती रही। तक्षकपोस्ट ने IACCS घोटाले की कड़ी लिखनी शुरू की तो सबसे पहले विजय शंकर सिंह जी ने कहा ये हत्यारे लोग है इनसे सावधान रहो। लेकिन साथ में ये भी कहते तुम शेरनी हो लेकिन सावधान रहो। फिर उनकी ये बात सच साबित हुई।
आपने वादा किया था जल्दी लंच पर मिलेंगे। लेकिन शायद ही कभी अब लंच पर हम लोग मिल पाएंगे। शनिवार की सुबह 11 बजे रूटीन चेकअप के लिए डॉक्टर के पास जाते समय रास्ते में ही उनको दिल का दौरा पड़ा और वहीं उनका निधन हो गया। यहां तक कि उन्हें अस्पताल तक पहुंचने का भी मौका नहीं मिला।
आज सुबह कानपुर में उनका अंतिम संस्कार किया गया। अपने पीछे वो एक बेटे और बेटी के भरेपूरे परिवार को छोड़ गए है।
विजय शंकर सिंह जी के निधन की यह खबर उनके दोस्तों, पाठकों और समर्थकों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं है। विजय शंकर सिंह एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी थे। उन्होंने उसूलों पर चलते हुए आम लोगों की सेवा में अपना पूरा जीवन लगा दिया। सेवा से रिटायर होने पर भी वह थके नहीं। और कलम को सेवा का नया माध्यम बना लिया।
सिविल सर्विसेज की तैयारी के दौर का ज्ञान और अपनी सेवा के लंबे अनुभव का खजाना उनके पास था। और एक बार जो कलम आगे बढ़ी तो फिर समुद्र की गहराइयों में उतर कर वह ज्ञान के मोती चुनने लगी। बहुत ही कम समय में विजय शंकर जी लेखन क्षेत्र के बड़े धुरंधऱों की कतार में खड़े हो गए। देश का कोई भी गंभीर मसला हो उस पर बेहद गहराई से अध्ययन करना और फिर हर पक्ष से उसकी चीरफाड़ करना उनके लेखन की खास विशेषता थी।
इस दौर में जबकि देश का पूरा लोकतांत्रिक ढांचा संकटग्रस्त है। और संविधान से लेकर संसद तक का वजूद खतरे में है। तब उन्होंने अपने सामने आने वाले खतरों का ख्याल न करते हुए सत्ता और उसके द्वारा संचालित तमाम प्रतिक्रियावादी और प्रतिगामी ताकतों से सीधा मोर्चा लिया। सुबह से ही सोशल मीडिया पर जो वह उतरते थे तो रात तक मोर्चे पर डटे रहते थे। और हर तरह के उल्टे-सीधे सवालों और कुतर्कों का वह बेहद बेलाग तरीके से जवाब देते थे। और जब कोई बड़ा विषय आता था तो उस पर पूरी गहराई के साथ अध्ययन कर पूरा लेख लिख देते थे।
यहां तक कि जज लोया की हत्या के मामले को सबसे आगे बढ़कर उठाने वालों में वो शामिल थे। जबकि यह बात सबको पता है कि इस मामले को उठाना किसी के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता था। लेकिन उन्होंने न तो अपने भविष्य की परवाह की और न ही अपनी पेंशन और परिवार की। वह खुद को इस दौर के स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका में देखते थे। और उसी जज्बे के साथ मैदान में डटे रहते थे।
इतने दिनों तक सेवा में रहने और फिर उसके बाद बाहर आने के बाद बहुत कम लोगों में संविधान, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों को प्रति प्रतिबद्धता बचती है। ऐसे दौर में जबकि भाजपा के भक्तों की जमात के पेंशनधारी इंजन बने हुए हैं तब उसमें किसी का विजय शंकर होना बहुत मायने रखता है। उनके लिए मानो ये सारी चीजें प्राणवायु हों और इनके बगैर उनका जिंदा रहना मुश्किल है। इसीलिए दिन हो या रात वह जनता से जुड़े मुद्दों को उठाने के अभियान में जुटे रहते थे।
मुझे कहते तुम्हारे लिए विशेष लिखा है तुमको मुझे पूछने की जरूरत नहीं। जो मन करें ले लिया करों। कुछ विषय परिस्थितियों में जब मैं विभूति भूषण भैया के हत्या में मुकदमों की पैरवी में लगी थी। उस वक्त भी वो हमेशा एक परिवार के सदस्य की तरह साथ बने रहे। विभूति भैया को भी उन्होंने मिलने का वादा किया था। काफी स्नेह था उनका भैया के लिए पर अनहोनी को कौन टाल सकता है।
विजय अंकल,आपका जाना अंदर से खल रहा है। इस समय को आप जैसे ईमानदार और समाज के प्रहरी की सबसे ज्यादा जरूरत है। आपको अभी नहीं जाना था। आपसे मेरी इस बात को लेकर नाराजगी हमेशा।
अलविदा विजय अंकल आप हमेशा हम लोगों की यादों में बने रहें।
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