जगजीत सिंह को भारत में ग़ज़लों को बड़े लोगों की महफ़िल से आगे आम लोगों तक पहुंचाने का श्रेय है। उनकी गाई ग़ज़लों ने उर्दू के कम जानकारों के बीच भी शेरो-शायरी की समझ बढाई और मिर्जा ग़ालिब, मीर तकी मीर , असरारूल हक मजाज़ लखनवी , जोश और फ़िराक़ गोरखपुरी जैसे शायरों से भी उनकी मुलाकात कराई । उन्हें 2003 में भारत की सरकार ने पदमभूषण अलंकरण से सम्मानित किया तो उसके डाक विभाग ने फरवरी 2014 में उनकी स्मृति में दो डाक टिकट जारी किए।
तुमको देखा तो ये ख्याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया
आज फिर दिल ने इक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हम ने क्या खोया हम ने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया
तुम को देखा तो ये ख्याल आया
ज़िन्दगी धुप तुम घना साया
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया हमने क्या पाया
जिन्दगी धूप तुम घना साया
गीत : जावेद अख्तर
फिल्म : साथ-साथ (1982)
मूलतः हिंदुस्तान के पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गांव के बाशिंदे जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। उनके पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे और माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की थीं। उनका बचपन का प्यार का नाम जीत था। उनकी शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई। उन्होंने बाद में जालंधर आकर डीएवी कॉलेज से स्नातक डिग्री ली और अविभाजित पंजाब से अब हरियाणा का हिस्सा हो गए कुरूक्षेत्र शहर में उसी नाम के विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। उनके पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे और माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की थीं। उनका बचपन का प्यार का नाम जीत था। उनकी शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई। उन्होंने बाद में जालंधर आकर डीएवी कॉलेज से स्नातकडिग्री ली और अविभाजित पंजाब से अब हरियाणा का हिस्सा हो गए कुरूक्षेत्र। शहर में उसी नाम के विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।
उन्हें बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिली। गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल शास्त्रीय संगीत सीखने के बादसैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद गायन सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए। लेकिन उन पर गायक बनने का धुन सवार था।
कूरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी उत्साहित किया। उनके कहने पर वह 1965 में मुंबई आ गए जहां उनके संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वे पेइंग गेस्ट बन रहते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर, शादी या और किसी मौके पर बड़े लोगों की महफ़िल में गाकर रोज़ी- रोटी का जुगाड़ करते थे।उन्होंने 1967 में चित्रा जी से पहली मुलाकात के दो बरस बाद उनसे विवाह कर लिया।
बहुतों की तरह उनका भी पहला प्यार परवान नहीं चढ़ सका। उन दिनों की याद कर उन्होंने लिखा है :एक लड़की को चाहा था, जालंधर में पढ़ाई के दौरान ,साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चेन टूटने या पहिया से हवा निकलने का बहाना कर वहाँ बैठ उसे देखा करते थे।यही सिलसिला बाइक से आते जाते भी जारी रहा। पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी, कुछ क्लास मे दो-दो साल गुज़ारे। जालंधर में डीएवी कॉलेज के दिनों गर्ल्स कॉलेज के आसपास बहुत भटकते थे। एक बार अपनी चचेरी बहन की शादी में जमी महिला मंडली के संगीत रश्म के दौरान उनके बीच जाकर गाने लगे थे। गायक नहीं होते तो धोबी होते। पिता के इजाज़त के बग़ैर फ़िल्में देखना और सिनेमा हाल के गेट कीपर को कुछ पैसे देकर हॉल में घुस जाने की आदत थी।
ग़ज़ल गायकी-
ग़ज़ल गायकी में जो मयार बेग़म अख़्तर, कुन्दनलाल सहगल , तलत महमूद , गुलाम आली और मेहदी हसन जैसों का था उससे हटकर जगजीत सिंह की अपनी शैली शुद्धतावादियों को रास नहीं आई। आरोप लगे जगजीत सिंह ने ग़ज़ल की शुद्धता से छेड़खानी की। जगजीत सिंह सफ़ाई में यही कहते रहे उन्होंने गजल गाने में तनिक बदलाव किए हैं लेकिन लफ़्ज़ों से छेड़छाड़ नहीं किया।
संगीत-
उनके कम्पोज संगीत में डबल बास, गिटार, पिआनो के इस्तेमाल से उन साजों का चलन शुरू हुआ। लेकिन आधुनिक और पाश्चात्य वाद्ययंत्रों के उनके इस्तेमाल के बावजूद उनकी संगीत रचना में हारमोनियम , सारंगी और तबला जैसे साज भी शामिल रहे। उन्होंने तबले के साथ ऑक्टोपेड, सारंगी की जगह वायलिन और हारमोनियम की जगह कीबोर्ड का भी प्रयोग किया। यह प्रयोग कहकशां और फ़ेस टू फ़ेस के उनके अल्बम में साफ नजर आता है। उन्होंने विनोद खन्ना और डिंपल कपाड़िया अभिनीत फिल्म, लीला के एक गीत : जाग के काटी सारी रैना , में गिटार का अद्भुत प्रयोग किया। जलाल आग़ा निर्देशित टीवी सीरियल कहकशां के एलबम में मजाज़ की ‘आवारा’ नज़्म: ऐ ग़मे दिल क्या करूं, ऐ वहशते दिल क्या करूं और फ़ेस टू फ़ेस में – दैरो-हरम में रहने वालों मयख़ारों में फूट न डालो की अभिनव प्रस्तुति है।
जगजीत ही सबसे पहले ग़ज़ल गायक थे जिन्होंने चित्रा सिंह के साथ लंदन जाकर पहली बार डिजीटल रिकॉर्डिंग कर ‘बियॉन्ड टाइम’ अलबम जारी किया। शायर निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र, गुलज़ार, जावेद अख़्तर जगजीत सिंह के पसंदीदा शायर थे। उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब से लेकर फ़ैज अहमद फैज , गुलज़ार तक सभी शायर की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी। उन्होंने 1981 में रमन कुमार निर्देशित ‘प्रेमगीत’ में- होठों से छू लो तुम , मेरा गीत अमर कर दो और 1982 में महेश भट्ट निर्देशित ‘अर्थ’ फिल्म में , वीर ज़ारा में लता मंगेशकर के साथ – तुम पास आ रहे हो – गीत गाए।
जगजीत सिंह का निधन 10 अक्तूबर 2020 की सुबह करीब 10 बजे को मुंबई के लीलावती अस्पताल में हुआ था। वह 70 बरस वर्ष के थे। उन्हें ब्रेन हेमरेज के कारण 15 दिन पहले इस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसी दिन उन्हें मुंबई में पाकिस्तान से आए गजल गायक गुलाम अली के साथ एक कंसर्ट में हिस्सा लेना था जो जाहिर है संभव नहीं हो सका। ब्रेन हैमरेज के बाद जगजीतसिंह की सर्जरी की गई पर उनकी हालत बिगड़ती चली गई।
जेएनयू में पढे अनुराग चतुर्वेदी जी के धर्मेंद्र नाथ ओझा के शेयर किये एक पोस्ट से आज पता चला जगजीत सिंह और बेजोड़ पार्शगायक भूपिंदर सिंह ( अब दिवंगत ) ने मुम्बई फिल्म उद्धोग में जमने के लिए एकसाथ संघर्ष किया और वे कुछ दिनों तक रूम पार्टनर भी रहे। जगजीत सिंह को एहसास हो गया था वह
मोहम्मद रफी, मुकेश , किशोर कुमार, तलत महमूद , मन्ना डे जैसों के मुकाबले प्लेबैक सिंगिंग में सफल नहीं होंगे। सो वह म्यूजिक कम्पनियों के एलबम के लिए गज़ल गाने और धुनें कम्पोज करने लगे। उन्होंने हिज मास्टर्स वॉयस (एचएमवी) कंपनी के लिए कुछ नज़्मों को कम्पोज किया और कहा इसे भूपिंदर सिंह की आवाज़ में रिकॉर्ड किया जाना चाहिए। लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि भूपिंदर सिंह ने जगजीत सिंह के लिए गाने से मना कर दिया। जगजीत सिंह ने मजबूरन उसे अपनी ही आवाज़ में रिकॉर्ड कर उसे एक फिल्म के लिए दे दिया।
लेकिन वह फिल्म पूरी नहीं हुई। फिर एचएमवी ने 1977 में जगजीत सिंह और उनकी पत्नी चित्रा सिंह की आवाज़ में ” द अनफॉरगटेबल्स ” नाम से एक एलबम रिकॉर्ड किया तो कफ़ील आज़र की लिखी इस नज़्म को जगजीत सिंह ने उस एलबम में शामिल कर लिया। वो नज़्म है : बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी स्टेट्टसमैन अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक किशोर कुमार ने जगजीत सिंह के एक बयान पर अंग्रेजी में कटाक्ष किया था – how dare these so-called ghazal singers criticize an icon that Manna Dey, Mukesh and I dare not criticize. Rafi was unique.
उनकी दिलचस्पी राजनीति में भी थी और उन्होंने भारत-पाक करगिल लड़ाई के दौरान पाकिस्तान से भारत आने वाले गायकों पर एतराज कर कहा था उनके आने पर बैन लगा देना चाहिए। दरअसल, जगजीत सिंह को पाकिस्तान ने वीज़ा देने से इंकार कर दिया था। लेकिन जब उन्हें पाकिस्तान से बुलावा आया तो उनकी नाराज़गी दूर हो गई। जगजीत सिंह ने मेहदी हसन के इलाज के लिए उन दिनों तीन लाख रुपए की मदद भी की थी जब मेहदी हसन को पाकिस्तान सरकार ने नज़र अंदाज़ कर रखा था।
बहरहाल, जगजीत सिंह की गाईं जो गजल हमें बेहद पसंद है वह मिर्जा गालिब की लिखी एक नज़्म है जिसका उपयोग दूरदर्शन से प्रसारित गुलजार निर्देशित एक सीरियल में किया गया था। इस सीरियल का संगीत जगजीत सिंह ने ही कम्पोज किया था।
न था कुछ तो खुदा था
न था कुछ तो ख़ुदा था
कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने
न मैं होता तो क्या होता
हुआ जब गम से यूँ बेहिश
तो गम क्या सर के कटने का
ना होता गर जुदा तन से
तो जहानु पर धरा होता
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया
पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना
कि यूँ होता तो क्या होता
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लिरिक्स : मिर्ज़ा ग़ालिब
गायन + संगीत : जगजीत सिंह
दूरदर्शन नेशनल सीरियल : मिर्ज़ा ग़ालिब (1988)
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