महाराष्ट्र में आज सुस्ताए से रविवार के दिन जो सियासी भूचाल आया और उसके झटके आगे भी होना लाज़मी है वह 2024 के आम चुनाव की तैयारियों से ही नहीं मूलतः पूरे देश की आर्थिक परिस्थितियों है जुड़ी है।लेकिन इस उठापटक से भारत की आर्थिकी संभल जाएगी इसकी उम्मीद नहीं लगती है।
भारत के रक्षा मंत्री और महाराष्ट्र के कई बार मुख्य्मंत्री रह चुके मराठा छत्रप शरद पवार ने जब 10 जून 1999 को कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई थी तो हम उनसे बातचीत करने एक महिला पत्रकार के साथ उनके मुंबई के घर गए थे और बाद में भी मिलते रहे हैं। यह जानकर कि महाराष्ट्र से ही दिवंगत राज्यसभा सदस्य देवी प्रसाद त्रिपाठी यानि डीपीटी की तरह हम भी नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र हैं और बतौर पत्रकार दिल्ली और उत्तर प्रदेश में लंबे अरसे तक तैनात रहे हैं उन्होंने हमसे हमेशा खुल कर बात की है।
मुंबई में विशाल बांद्रा कुर्ला कांप्लेक्स उनके ही मुख्यमंत्रित्व काल में बसा था जिसके भूखंडों की कीमत अभी अरबों रुपए की है। देश के लगभग सभी कॉरपोरेट घरानों से उनके घनिष्ठ संबंध हैं।
उनके पास धनबल की कमी नहीं है। वह चाहें तो लोकसभा चुनाव के लिए सभी विपक्षी दलों का सारा खर्च अकेले उठा सकते हैं। यह मौजूदा केंद्रीय राजनीति में उनकी अपरिहार्यता का एक बहुत बड़ा कारण है।
विदेश में शिक्षित और राज्य के वित्त मंत्री रह चुके और लगभग बेदाग जयंत पाटिल अभी भी उनके साथ हैं। इस बार के उठापटक में उनका साथ छोड़ सत्ता पक्ष का दामन थामने वालों में उनके भतीजे अजित पवार, छगन भुजबल, प्रफुल्ल पटेल आदि पर आर्थिक भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं जिनकी जांच की आड़ में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने उन सब पर अपना शिकंजा कस रखा है। अजित पवार शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिन्दे सरकार में उपमुख्यमंत्री बने हैं। भाजपा कोटा से पहले से उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी नागपुर के नेता देवेंद्र फडणवीस के नौ बरस पुराने मोदी मंत्रीमंडल में शामिल होने की चर्चा है।
दरअसल, पवार साहब कुछ अर्से से शिव सेना और काग्रेस के भी और करीब हो गए हैं। शिव सेना नेता और पूर्व मुख्य्मंत्री उद्धव ठाकरे ही नहीं कांग्रेस के आला केंद्रीय नेता भी उन्हें तरजीह देते हैं।
यह संयोग नहीं है कि शिवसेना नेता और उसके मुखपत्र सामना के व्यवस्थापकीय संपादक संजय राऊत ने दावा किया है कि उनकी पार्टी, एनसीपी और कांग्रेस जल्द ही फिर से राज्य की सियासत में हावी हो जायगी। सियासी हलकों में एनसीपी का कांग्रेस में विलय कर देने की भी चर्चा है।
पवार साहब जानते हैं कि आगामी आम चुनाव में महाराष्ट्र की बड़ी भूमिका होगी क्योंकि लोक सभा में पश्चिम बंगाल के बाद सबसे ज्यादा 48 सीटें इसी राज्य से है और देश की आर्थिक राजधानी अभी भी मुंबई ही है। खुद उन्होंने अभी यही कहा है कि वह कल अपनी नई सियासी रणनीति की घोषणा करेंगे। उनकी इकलौती संतान और बारामती से चार बार की लोक सभा सदस्य सुप्रिया सुले को हाल ही में एनसीपी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा चुका है।
लेखक चंद्र प्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक टिप्पणीकार रहें है, उनकी सियासी बुखार पर मजबूत और काफी तीखी प्रतिक्रिया रहती हैं।