बनारस में रहकर यह कल्पना करना मुश्किल है कि बगैर आम के गर्मियां कैसे कटेंगी ? कितनी भी लू चल रही हो, गांव से बाहर आम के बागों में बागवान अपने परिवार के साथ डटे रहते हैं। सुबह-शाम आम के पेड़ों की घनी पत्तियों के बीच छिपी कोयल कुहुं-कुहुं करती है। यही प्रक्रिया होती है जिससे लंगड़ा आम का गूदा ढलते सूरज की चटक लाली, मनमोहक सुगंध, आकर्षक कलेवर और चिलचिलाती गर्मी का एक विकल्प तैयार होता है। बनारस के बागवानों का कहना है कि इस वर्ष आम के बागों में अच्छे बौर आये थे। बाद में ये बौर टिकोरा से होते हुए आम भी बन रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि फरवरी से लेकर मई तक तकरीबन आधा दर्जन आई आंधी, क्लाइमेट चेंज और बढ़ते तापमान से पेड़ों पर लगे आमों को काफी नुकसान पहुंचा है। इस बार लंगड़ा आम का साइज भी छोटा ही रह गया है। फलों के साइज छोटे होने से उत्पादन पर असर पड़ना तय है।
पूर्वांचल और देश में लंगड़ा आम का दो महत्वपूर्ण इस्तेमाल है -पहला आम का आचार दूसरा पका हुआ फल। जिसे काटकर, चूसकर चबाकर और अपने देसी अंदाज में लोग तबियत से आनंद लेकर खाते हैं। आचार के लिए लंगड़ा जून के पहले हफ्ते में तोड़ा जाता है, दूसरा पका हुआ या पकाने के लिए आम जून मध्य या लास्ट में तोड़ा जाता है। अब भी बागवानों को डर इस बात की है कि मौसम विभाग के अनुसार मई और जून में कई आंधियों-अंधड़ की आशंका है। ऐसे में जो फल पेड़ों पर बचा है, उसका भी बड़े पैमाने पर नुकसान झेलना अभी बाकी है।
उत्तर प्रदेश (यूपी) भारत का सबसे बड़ा आम उत्पादक राज्य है। देश का करीब 23% आम का उत्पादन यूपी में होता है। यूपी की सांस्कृतिक राजधानी बनारस का लंगड़ा आम के लिए देश में कोई सानी नहीं है। हालांकि, पिछले चार साल से बनारस में आम का उत्पादन बागवानों के लिए कम हवादार संकरी गली से गुजरने जैसा रहा है, अर्थात नुकासन और तबाही। इसे लेकर किसानों का कहना है कि गर्मी की वजह से कीटनाशक बेअसर हो रहे हैं। वहीं, वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते मौसम और हीट वेव को वजह बता रहे हैं। इसी साल बनारसी लंगड़ा आम को (जीआई पंजीकरण संख्या – 716) जीआई टैग भी मिला है।
लंगड़ा आम बनारस में बनारस का ही फेमस है। दिन सोमवार और आसमान में आग के गोले बरसता सूरज सिर के ठीक ऊपर खड़ा है। लू और कड़ाके की धूप होने की वजह से आसपास के रास्ते के एक-दो लोग ही दिखे। जो दिखे भी वो जल्दी-जल्दी अपने गंतव्य को चले गए। वाराणसी जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर देश के पहले आदर्श ब्लॉक सेवापुरी के पारवंदपुर-सजोई गांव के पूरब में एक आम के कई बाग़ लगे हुए हैं। बागों तक पहुंचना ज्यादा मुश्किल नहीं है। इन बागों में आम के पेड़ों के घनी छाया में आमों की रखवाली करने वाले लोग अपने बच्चे, बीबी, भाई या फिर बूढी मां के साथ बैठे आग उगलती दुपहरी काटने में मशगूल हैं। इन बागों में सबसे अधिक लगंड़े आम के ही पेड़ लगे हुए हैं। स्वाद में परिवर्तन के लिए सफे़दा, चुस्की, दशहरी, कलमी, चौसा जैसे स्थानीय नामों के अलावा उनके कितनी तरह के दिलफरेब नाम तोतापरी, कोकिलवास, ज़रदालू, अषाढिया के एक या दो पेड़ लगे हुए हैं। बागों में कहीं-कहीं लगंड़ा आम के एक-दो पेड़ उकठ कर सूख गए हैं। जिनके स्थान पर कहीं नए लंगड़े के पौधे भी लगाए गए हैं, जिनपर अभी फल नहीं आये हैं।
आंधियों का आम के बागों पर कहर-
वाराणसी के ब्लॉक सेवापुरी के पारवंदपुर-सजोई गांव के 39 वर्षीय कन्हैया लाल बीते दस सालों से आम के बाग़ लीज पर लेकर फल उत्पादन करते हैं। बगीचे के आसपास लू चल रही है, लेकिन वे अपने परिवार के साथ बगीचे में खटिये पर बेफिक्र अंदाज में सोते मिले। वे “तक्षक पोस्ट” को बताते है कि “पिछले बरस बौर और टिकोरा कम होने से आम की पैदावार मनचाही नहीं रही। इस साल बौर और टिकोरा खूब आया। यह देखकर मैंने 25000 रुपए में बाग़ लीज पर लिया हूं। जनवरी के बाद फरवरी और मार्च में आई आंधी-तूफ़ान में आम के फलों को बहुत नुकसान हुआ। अप्रैल के लास्ट में सिर्फ एक दिन आई आंधी में मेरे बगीचे से तीन से चार कुंतल आम के फल गिरकर बर्बाद हो गए, जिनका कोई पूछनवार नहीं है। अब फल लगे हुए हैं, जो पहले की अपेक्षा बड़े हैं, लेकिन आंधी और तूफान से इनको अब अधिक नुकसान पहुंचने की आशंका है। मुझे उम्मीद थी कि इस बार फल बेचकर कुछ कर्ज चुकाऊंगा लेकिन, ऐसा मालूम पड़ रहा है कि लीज के रुपए भी निकलना मुश्किल होगा।”
हीट वेव और क्लाइमेट चेंज बड़ी मुसीबत जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते मौसम और हीट वेव का कृषि और बागवानी पर क्या असर हुआ है, इसे लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से मई 2022 में आई रिपोर्ट में बताया गया कि यूपी में इस साल (2022) मार्च के महीने में सामान्य से लगभग 5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान होने से आम के मंजरी (बौर) को नुकसान हुआ है। वहीं, परागण की क्रिया भी ठीक से नहीं हो पाई। इस कारण बहुतायत में झुमका रोग की समस्या देखने को मिली है। आम में झुमका रोग लगने पर यह मटर के दाने के बराबर होने के बाद गिर जाते हैं।
वर्ष 2023 सीजन में किसानों का कहना है कि आंधी और बढ़ते तापमान से फल का पर्याप्त विकास नहीं हो सका है। रिपोर्ट में बताया गया कि यूपी की तरह बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड के कई जिलों में भी हीट वेव की वजह से मंजर गिरने के मामले आए हैं। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, झारखंड के गोड्डा और बिहार के दरभंगा जिले में फल का आकार छोटा रह जाने के मामले भी देखे गए। इस वर्ष फरवरी माह से चढ़े तापमान ने सरसों, गेहूं और फलों के उत्पादन पर असर देखने को मिला है।
मुनाफा कम, जोखिम ज्यादा-
कन्हैया आगे कहते हैं “आंधी से पूरे बनारस में बागवानों को नुकसान पहुंचा है। लेकिन इसकी खबर कहीं नहीं है। फसल का कम उत्पादन होने पर मार्केट में माल अधिक रेट पर बिकता है, लेकिन इसका फायदा हमलोगों को नहीं मिलता है। मंडी और आढ़तिये हमसे आम खरीदते हैं। इन्हें स्टोर कर अपने मन माफिक दामों पर बेचते हैं। हमलोग को सस्ते में ही आम बेचना पड़ता है। वह भी बहुत कम मुनाफा पर। यदि मैं सिर्फ आम के बगीचों पर निर्भर रहूं तो परिवार को भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। मैं सिर्फ गर्मी के दिनों में लीज पर बगीचे लेकर आम का उत्पादन करता हूं और साल के अन्य दिनों में चाय-पान की दुकान चलता हूं, जिससे परिवार की गाड़ी धीरे ही सही, लेकिन आगे बढ़ती रहती है। मेरे दो बच्चे हैं, जिसमें से एक 11 वर्ष और दूसरा 08 साल का है, दोनों सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। आम के बगीचों के धंधे में मुनाफा कम, जोखिम बहुत है। नुकसान का सर्वे करने लेखपाल या अन्य अधिकारी कभी बागों की तरफ नहीं आते हैं। ”
लंगड़ा नहीं कर पाया विकास-
महात्मा काशी विद्यापीठ में एमए की पढ़ाई करने वाले कोटिला-हाथीबाजार निवासी दीपक ने 40 पेड़ के आम के बाग़ को लीज पर लिया हुआ है। लंगड़ा के कुछ पेड़ों का सौदा तीसरिया देने पर भी पटा है। दीपक कहते हैं “पूरे घर के लोग मिलकर आम के बाग़ की रखवाली करते हैं। जनवरी से ही बागों की देखभाल की जा रही है, जो जुलाई के पहले सप्ताह तक जारी रहेगी। देखा जाए तो आम के उत्पादन से लोगों की सिर्फ पांच महीने की मजदूरी भी नहीं निकल पाएगी। दूसरी बात, इस बार का मौसम भी काफी नुकसान बगीचों और फलों को पहुंचाया है। इस बार फरवरी माह में ही तापमान में तेजी आने के चलते फलों का साइज छोटा रह गया है। पहले एक किलो में 4 से 5 पीस लंगड़ा आम चढ़ता था, लेकिन इस बार किलो में आठ से नौ पीस चढ़ रहा है। अभी 12-पंद्रह दिन का समय और है, जो बढ़ना या विकास करना होगा, करेगा अन्यथा छोटे फल ही तोड़कर बेचने पड़ेंगे। हां, यदि इस अवधि से पहले लगातार पुरवा हवा चलेगी तो शायद फलों का विकास हो सकता है। ऐसा कृषि वैज्ञानिक ने बताया था, वरना पछुआ हवा (लू) चलती रहेगी तो नुकसान होना तय समझिये।”
दुनिया के सबसे बड़े आम उत्पादक देश का घटता निर्यात-
भारत दुनिया का सबसे बड़ा आम उत्पादक देश हैं, दुनिया का करीब पचास फीसदी आम का उत्पादन यहीं होता है। यहां से दुनिया के अलग-अलग देश को आम सप्लाई होते हैं। हालांकि आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि साल 2020 के मुकाबले 2021 में आम के निर्यात में करीब 57% की कमी आई है। लोकसभा में 8 फरवरी 2022 को दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत 83 देशों में आम का निर्यात करता है। साल 2020 में 49658.68 मीट्रिक टन आम का निर्यात हुआ था, जो कि साल 2021 में घट कर 21,033.58 मीट्रिक टन रह गया। भारत ने 2021 में सबसे ज्यादा आम संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम, कतर, ओमान और कुवैत को निर्यात किए।
असली मुनाफा जाता है आढ़तिये और फुटकर आम विक्रेता के पास-
पीढ़ियों से आम की खेती करने वाले बेहुआ-जंसा के बागवान अजय भी अपने बगीचे में निराश मिले। वह कहते हैं “मैं कम से कम तीन से चार आम के बाग़ लीज पर लेता था। लेकिन पिछले साल हुए नुकसान से मैं सहम गया हूं और फूंक-फूंक कर कदम रख रहा हूं। इस धंधे में आंधी-तूफ़ान का कोई समय निश्चित नहीं है। कब आये और बाग़ को उजाड़ कर चलते बने। तूफ़ान से आम की फसल को तकरीबन तीस फीसदी तक नुकसान हुआ है। बिकने की बारी आते-आते जाने क्या होगा ? रेट भी डाउन चल रहा है। जब आम किसानों की फसल मंडी उतारेगी तो रेट और गिर जाएगा। आम के पैदावार का असली मुनाफा आढ़तिये और आम विक्रेता कमाते हैं। मुझे ऐसा लग रहा है कि इस बार मुझे मंडी नहीं जाना पड़ेगा, क्योंकि, माल ही नहीं है। लोकल में ही बिक जाएगा।”
लीलावती भी अपने बच्चों के साथ बगीचे में निगरानी कर रही हैं। कई सालों गर्मी के दिनों में यह काम करती है। लेकिन आगे वह यह काम बंद करने वाली है।
आंकड़ों में बनारस का हाल और हकीकत-
बनारसी लंगड़ा आम की मांग और चाह सात समंदर के पार व पड़ोसी देशों में बनी हुई है। इस वर्ष एपीडा के द्वारा एक दर्जन से ज्यादा देशों में निर्यात की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। वर्ष 2022 में 6 टन तक आम का निर्यात किया गया था जिसमें इस बार 10 से 15 गुना तक वृद्धि होने का अनुमान है। एपीड़ा के क्षेत्रीय अधिकारी सीबी सिंह ने बताया कि “कई देशों में लंगड़ा आम की मांग की जा रही है जिसमें जापान, बांग्लादेश, कोरिया और खाड़ी देश शामिल हैं। इस बार 100 टन से ज्यादा लंगड़े आम के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है।”
बहुत बढ़िया रिपोर्ट