सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग वाली केंद्र की क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया। अपनी याचिका में, केंद्र सरकार ने दोषी पाई गई कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के साथ अपने समझौते को फिर से खोलने और पीड़ितों को 7400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त मुआवजा दिलवाने की बात कही थी। जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि सेटलमेंट को सिर्फ फ्रॉड के आधार पर खारिज किया जा सकता है, लेकिन सरकार ने फ्रॉड का कोई आधार नहीं रखा है। मालूम हो कि 12 जनवरी को पीठ ने याचिका पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट ने सरकार द्वारा पहले अदालत को दिए गए अपने वचन के अनुसार पीड़ितों के लिए बीमा पॉलिसी नहीं तैयार करने के लिए केंद्र की खिंचाई की। शीर्ष अदालत ने कहा, “हम दो दशकों के बाद इस मुद्दे को उठाने के लिए कोई तर्क प्रस्तुत नहीं करने के लिए भारत सरकार से असंतुष्ट हैं,” शीर्ष अदालत ने कहा, “टॉप-अप मुआवजे” के लिए केंद्र की याचिका का कानूनी सिद्धांत में कोई आधार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गैस रिसाव के पीड़ितों के लिए मुआवजे में कमी को लेकर “घोर लापरवाही” के लिए केंद्र को फटकार लगाई और कहा कि लंबित दावों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के पास पड़े 50 करोड़ रुपये की राशि का उपयोग किया जाएगा।
भोपाल में हुई गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया था। पीडितों ने ज्यादा मुआवजे की मांग के साथ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केंद्र ने 1984 की त्रासदी के पीड़ितों को कंपनी से 7,844 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की मांग की थी। केंद्र ने मुआवजा बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी।
मामले की पिछली सुनवाई के दौरान, सरकार चाहती थी कि यूनियन कार्बाइड (अब इस कंपनी का स्वामित्व डॉव केमिकल्स पर है) गैस कांड पीड़ितों को ये पैसा दें। वहीं यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने कोर्ट में कहा था कि वो 1989 में हुए समझौते के अलावा भोपाल गैस पीड़ितों को एक भी पैसा नहीं देगा। इस याचिका पर 12 जनवरी को बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। मंगलवार को कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है।
फर्म ने शीर्ष अदालत को बताया था कि भारत सरकार ने समझौते के समय कभी भी यह सुझाव नहीं दिया था कि यह अपर्याप्त है। केंद्र ने तर्क दिया था कि जहरीली गैस के रिसाव से मानव जीवन और पर्यावरण को हुए वास्तविक नुकसान की भयावहता का 1989 में बंदोबस्त के समय ठीक से आकलन नहीं किया जा सका था। इसी वजह से केंद्र ने पीठ से आपदा की अभूतपूर्व प्रकृति को देखते हुए बढ़ा हुआ मुआवजा देने का आग्रह किया था।