सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को धोखाधड़ी और धमकी के माध्यम से होने वाले धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए बहुत ही सख्त टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये एक गंभीर मामला है। इससे देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे नागरिकों की अंतरात्मा की स्वतंत्रता भी प्रभावित हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को इसके लिए कदम उठाने होंगे। इसको लेकर कड़े कदम उठाने का समय आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर मामले पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
Supreme Court says forced religious conversion is a very serious issue and may affect the security of the country along with the freedom of conscience of citizens as far as religion is concerned. pic.twitter.com/rHV2qJEhgz
— ANI (@ANI) November 14, 2022
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह सरकार की जानकारी में है। इस तरह के धर्मांतरण आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होते हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसे में सरकार क्या कर रही है? राज्यों के पास कानून हो सकते हैं, केंद्र को भी हस्तक्षेप करना चाहिएv बेंच ने केंद्र से कहा कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ उठाए गए 22 कदमों का विवरण देते हुए एक हलफनामा दायर करें। कोर्ट ने कहा कि सरकार जवाब दाखिल कर ये बताए कि आखिर क्या कदम उठाए गए हैं? इस पर तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय दिया जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को 22 नवंबर तक हलफनामा दाखिल करने को कहा है। अब इस मामले पर 28 नवंबर को सुनवाई होगी।
Supreme Court asks Centre to make its stand clear & file an affidavit on a plea seeking stringent steps to control fraudulent and deceitful religious conversion. SC posts the matter hearing for November 28.
— ANI (@ANI) November 14, 2022
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि लोगों को धमकाकर, उपहारों के जरिए और पैसे का लाभ देकर धर्मांतरण कराया जा रहा है। इस गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए भारतीय दंड संहिता में प्रावधान कड़े किए जाए। याचिका में कहा गया है कि “धोखाधड़ी से धर्मांतरण और धर्मांतरण के लिए डराना, धमकाना, उपहार और मौद्रिक लाभों के माध्यम से धोखा देना” भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है।
यह याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है। उपाध्याय ने दावा किया है कि देश भर में धोखाधड़ी और धमकी के जरिए धर्मांतरण हो रहा है। केंद्र सरकार इसके खतरे को नियंत्रित करने में विफल रही है। देश का एक भी जिला ऐसा नहीं है जो छल से होने वाले धर्मांतरण से मुक्त हो। इसके अलावा याचिका में यह कहा गया है कि अगर इस तरह के धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई तो जल्द ही भारत में हिंदू अल्पसंख्यक बन जाएंगे। याचिका में भारत के विधि आयोग को एक रिपोर्ट तैयार करने और धोखेबाजी से होने वाले धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक विधेयक तैयार करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
इससे पहले 23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम आर शाह की अध्यक्षता वाली बेंच ने गलत तरीके से धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून बनाने की मांग पर गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को नोटिस जारी किया था. शीर्ष अदालत ने उनसे चार सप्ताह में जवाब मांगा था।
बता दें कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ देश के कई राज्यों ने अपने यहां कानून बनाए हैं। जिन राज्यों ने इसके लिए कानून बनाया है, उनमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक शामिल हैं। ये सभी भाजपा शासित राज्य हैं। इन राज्यों में जबरन धर्मांतरण कराने पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है।