नई दिल्ली: न्यायमूर्ति DY चंद्रचूड़ भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे हैं, उनके पिता YV चंद्रचूड़ न्यायाधीश थे। वह न्यायमूर्ति UU ललित का स्थान लेंगे, ललित का 8 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
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जस्टिस DY चंद्रचूड़ अपने फैसलों के लिए जाने जाते है, फेक न्यूज़ के इस दौर में पत्रकारों की स्वतंत्रता पर भी उनके विचार बहुत महत्वपूर्ण है उन्होंने एक दफा कहा इस दौर में खबरों का आना बेहद जरूरी है और सही पत्रकारिता समय की मांग।
न्यायमूर्ति DY चंद्रचूड़ ने अपने करियर में अपने पिता के फैसलों को दो बार पलट कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया था।
2017 में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानते हुए न्यायमूर्ति DY चंद्रचूड़ ने 9-न्यायाधीशों की पीठ के हिस्से के रूप में, 1975 के आपातकाल का समर्थन करने वाले एक विवादास्पद आदेश को रद्द किया था।
उनके पिता न्यायमूर्ति YV चंद्रचूड़ ने आपातकाल लगाने के राष्ट्रपति के आदेश को बरकरार रखा, एक ऐसी अवधि जिसके दौरान इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने लोकतांत्रिक अधिकारों को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया, कई विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया और मीडिया पर शिकंजा कसा था।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ वरिष्ठ पांच न्यायाधीशों की पीठ में चार न्यायाधीशों में से एक थे जिन्होंने 1976 में फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है और लोग अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए अदालतों का दरवाजा नहीं खटखटा सकते हैं। एकमात्र असंतुष्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचआर खन्ना थे, जिन्होंने कहा था: “जो दांव पर है वह कानून का शासन है … सवाल यह है कि क्या न्यायालय के अधिकार के माध्यम से बोलने वाला कानून पूरी तरह से चुप हो जाएगा और मूक हो जाएगा …”
41 साल बाद जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने आदेश को “गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण” बताया और जस्टिस खन्ना की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “न्यायमूर्ति खन्ना के विचार को स्वीकार किया जाना चाहिए, और उसके विचारों की ताकत और उसके दृढ़ विश्वास के साहस के लिए सम्मान में स्वीकार किया जाना चाहिए।
दूसरा मामला 2018 का है जिसमें जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने अपने पिता के आदेश को पलट कर IPC- 497 अडल्टरी कानून को संसोधन के साथ वैध करार दिया। इसके अंतर्गत तमाम खामियां थी।
क्या है IPC-497 ?
अंग्रेजों ने साल 1860 में आईपीसी की धारा 497 के तहत विवाहेतर संबंधों को अपराध घोषित किया था लेकिन यह प्रावधान अपने-आप में महिला विरोधी था। दरअसल, इसके तहत किसी पुरुष को किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी से पति की इजाजत के बिना संबंध बनाने की इजाजत नहीं है। हालांकि, पति की इजाजत से संबंध बनाए जाने पर यह अपराध नहीं रहेगा। ऐसे मामलों में केवल पुरुष को अपराधी माना गया है, महिला को नहीं।
27 सितंबर 2018 को न्यायमूर्ति DY चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे जिसने सर्वसम्मति से उस कानून को रद्द कर दिया जो अडल्टरी को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ किए गए अपराध के रूप में मानता है। उस आदेश के साथ, अडल्टरी को वैध करार दिया गया। उस आदेश में ये भी कहा गया अडल्टरी अब अपराध नहीं है, केवल तलाक का आधार बन सकता है अगर कोई चाहे तो।
1985 में जस्टिस YV चंद्रचूड़ ने अडल्टरी के कानून को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया था। IPC- 497 में कहा गया था “जो कोई भी किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है जिसे वह जानता है या उसके पास किसी अन्य पुरुष की पत्नी होने का कारण है, उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बिना, इस तरह के संबंध वैध नहीं नहीं है वो बलात्कार का अपराध, व्यभिचार के अपराध का दोषी माना जायेगा।
लेकिन DY चंद्रचूड़ ने कहा कि समय के साथ चलना जरूरी है और कपल अलग रह रहे है ऐसे में इस कानून का दुरुपयोग होने की संभावना और महिला पर अपना स्वामित्व रखने की प्रवृत्ति गलत है इसलिए इसमें संसोधन के साथ 497 वैध होना चाहिए अडल्टरी कोई अपराध नहीं है।