7 अप्रैल 1958 को संसद के एक अधिनियम के तहत वजूद में आए देश के ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े शहरी निकाय दिल्ली नगर निगम को इसकी स्थापना के 54 साल बाद दिल्ली के तीन अलग- अलग निगमों में विभाजित कर दिया गया था और इस तरह दिल्ली के तीन मौजूदा नगर निगम पूर्वी दिल्ली नगर निगम , उत्तरी दिल्ली नगर निगम और दक्षिण नगर निगम अस्तित्व में आए थे।
2012 का यह वही साल है जब सितंबर के महीने में दिल्ली को प्रशासनिक पुनर्गठन की प्रक्रिया के तहत 11 जिलों और 33 उपखंडों में विभाजित किया गया था। विभाजन के बाद दक्षिण दिल्ली नगर निगन दिल्ली के सबसे बड़े शहरी निकाय के रूप में सामने आया। पूर्ववर्ती एकीकृत दिल्ली नगर निगम के कुल 272 वार्डों में सबसे अधिक 114 वार्ड दिल्ली के इसी इसी नगर निगम में हैं। इसके बाद 104 वार्डों के साथ उत्तरी नगर निगम दूसरे और 54 वार्ड के साथ पूर्वी दिल्ली नगर निगम तीसरे नंबर पर है।
13 जनवरी 2012 को हुए दिल्ली नगर निगम के इस विभाजन के बाद पूरे नगर निगम क्षेत्र को 12 उप क्षेत्रों में बाँट दिया गया था और इस आधार पर पीतमपुरा, करोल बाग, सदर पहाड़गंज, सिविल लाइंस, नरेला, रोहिणी और केशवपुरम को उत्तरी दिल्ली नगर निगम में शामिल कर लिया गया था। इसके साथ ही मध्य दिल्ली , दक्षिण दिल्ली , पश्चिम दिल्ली और नजफ़गढ़ जिले के साथ हरियाणा के गुरुग्राम, झज्जर और रोहतक जिलों से लगे दिल्ली के एक बड़ी आबादी और क्षेत्रफल वाले क्षेत्र को दक्षिण दिल्ली नगर निगम का हिस्सा बनाया गया था। इस विभाजन के तहत शाहदरा और शाहदरा दक्षिण को मिला कर पूर्वी दिल्ली के एक बड़े हिस्से को पूर्वी दिल्ली नगर निगम में शामिल किया गया था। दक्षिण दिली नगर निगम आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से बड़ा होने के साथ ही आर्थिक दृष्टि से भी दिल्ली के दोनों निगमों के मुकाबले कहीं अधिक मजबूत है । इसकी आर्थिक मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि दिल्ली के दो निगमों को जब कभी किसी तरह के आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है तब दक्षिण दिल्ली नगर निगम ही खेवनहार साबित होता है । मौजूद परिस्थिति में पूर्वी दिल्ली का यह तीसरा शहरी निकाय पूर्वी दिल्ली नगर निगम की मदद कर रहा है ।
इस नगर निगम की आबादी महानगरीय आबादी का एक जीता नमूना है। इस आबादी में नौकरी पेशा लोग भी हैं और किसान भी, व्यापारी, उद्योगपति भी हैं और मजदूर भी। पंजाबी, हरियाणवी शैली की दिल्ली वाली भाषा ,गढ़वाली – कुमाऊनी , ब्रज, भोजपुरी, राजस्थानी और बुन्देलखंडी समेत अनेक भाषा भाषी लोग इस निगम क्षेत्र के नागरिक और मतदाता हैं। इस लिहाज से यहाँ की नगरीय समस्याएं देहाती भी हैं और शहरी भी । इस निगम क्षेत्र के एक बड़े इलाके में हजारों गैर कानूनी कालोनियों के पुनर्वास की बड़ी समस्या है। इन अनधिकृत कालोनियों को अधिकृत करने का सिलसिला भी काफी समय पहले शुरू हो चुका है लेकिन कोविद के चलते यह काम अधर में ही लटक गया है। निगम के अंतर्गत आने वाली इन अनधिकृत कालोनियों को अधिकृत करने का यह काम सबसे पहले पूरा हो यह निगम चुनाव की एक बड़ी मांग भी हो सकती है। ऐसी ही अनेक समस्याएं हैं जिन पर राजनीतिक दलों को गंभीरता से विचार करना होगा ।