प्रयागराज: ‘साहित्यांजलि प्रज्योदि’, प्रयागराज के तत्त्वावधान में ‘सारस्वत सभागार’, लूकरगंज, प्रयागराज में दो चरणों में आयोजित सारस्वत समारोह की अध्यक्षता भाषाविज्ञानी-समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने की थी। प्रख्यात शाइर अनवार अब्बास मुख्य अतिथि थे, और कवि रामलखन चौरसिया विशिष्ट अतिथि। प्रथम चरण के अन्तर्गत ‘साहित्य से समाज की बढ़ती दूरी’ विषय पर परिसंवाद किया गया था।
प्रथम चरण के अन्तर्गत विशिष्ट अतिथि रामलखन चौरसिया ने कहा, “साहित्य शब्दों का संग्रह नहीं होता है। वह अपने प्रभाव से समाज को पावन करता है। साहित्य समाज का दृष्टि और दर्पण भी होता है।” मुख्य अतिथि अनवार अब्बास ने बताया, “साहित्य का व्यवसायीकरण हो चुका है। जब तक समाज की ख़बर रखनेवाले और समाज को ख़बरदार करनेवाले सच्चे मन से समाज को समझ नहीं पाते तब तक साहित्य का समाज से जुड़ाव सम्भव नहीं है। वास्तव में, सत्य और प्रकृति की विचारधारा से जुड़ाव साहित्य है।”
अपना अध्यक्षीय व्याख्यान करते हुए आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “साहित्य की अवधारणा समाज के हित का पोषण करती है। आज साहित्य की समाज से बढ़ती दूरी का कारण साहित्यकार का एकांगी दृष्टिबोध का निरन्तर परिचय देते रहना है। उसका परिणाम यह रहा कि हमारा समाज खण्ड-खण्ड में बँटकर रह गया है; क्योंकि राजसत्ता ने साहित्यकारों को समग्र में कभी प्रश्रय दिया ही नहीं।”
समारोह के द्वितीय चरण में रामकैलाश पयागी ने सुनाया– जो दर्द तेरा है, वो दर्द मेरा है। आँख खुली, सामने सबेरा है।” डॉ० नायाब बलियावी ने शेर सुनाया- बहुत क़रीब से बंजर ज़मीन लगते हैं, सितारे दूर ही रहकर हसीन लगते हैं।” फ़रमूद इलाहाबादी ने सुनाया, इश्क़ करके मैं बँटा, आधा इधर, आधा उधर। पर्स रोज़ अमा कटा, आधा इधर, आधा उधर।। अनवार अब्बास ने अपना कलाम पेश किया– पड़ के सियासी ऐब में, दुशमने राह हो गये, हम भी तबाह हो गये, तुम भी तबाह हो गये।” डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने दोहा सुनाया, “देख कोलाहल काग के, हंस हो गये मौन। अन्धों के बाज़ार में, आँख ख़रीदे कौन।।” एम० एस० ख़ान ने शेर पेश की, “वह लोग जिनकी इबारत में था हुनर शाहिद। वह लोग आज भी महफ़ूज है किताबों में।”
इस अवसर पर ज्योति चित्रांशी, प्रगति, प्रेमनारायण आदिक उपस्थित थे। समारोह का संयोजन और संचालन डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने किया।