अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा हुए एक पखवाड़ा बीत चुका है। शुरू के कुछ दिन तो तालिबान ने अपने इस वायदे पर अमल किया कि उनके राज में शरीयत का पालन करने वाले किसी इंसान को परेशान नहीं किया जाएगा और इस्लामिक क़ानून पर चलने वाली हर महिला का सम्मान भी किया जाएगा। पर कुछ दिन बाद ही तालिबान शासकों की भाषा बदल गई और यह कहा जाने लगा कि तालिबान लड़ाकों को समाज की व्यवस्था करने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है इसलिए लड़ाका तालिबान से बचने के लिए लोग ख़ास कर महिलायें बाहर न निकलें , घर पर ही रहें।
तालिबान प्रशासन का यह कहना एक तरह से आम जनता को दी जाने वाली धमकी ही है जिसका मतलब यही निकाला जा सकता है कि अफगानिस्तान में रहना है तो जैसा तालिबान चाहते हैं बस वैसा ही करते रहो अगर ऐसा न किया तो अंजाम भुगतने के लिए भी तैयार रहें। तालिबान ने देश – विदेश के आम नागरिकों को ही नहीं बल्कि अमेरिका जैसी ताकत को भी इस तरह की धमकी देने से संकोच नहीं किया कि अगर वादे के मुताबिक़ उसकी सेनाएं 31 अगस्त तक अफगानिस्तान छोड़ कर नहीं जाती तो उसे भी अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। तालिबान कितने खूंखार और मानवीयता के दुश्मन बन गए हैं कि उनके खौफ के चलते विदेशी ही नहीं बल्कि कई अफगान नागरिक भी देश छोड़ कर बाहर जाना चाहते हैं लेकिन तालिबान अफगान नागरिकों को देश के बाहर जाने नहीं देना चाहता और विदेशी नागरिकों को एक पल के लिए भी अफगानिस्तान में रहने नहीं देना चाहता।
दुनिया के तमाम देश भी जल्दी से जल्दी अपने नागरिकों को वहाँ से सुरक्षित निकालने के प्रयास में लगे हैं लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं है और इतनी जल्दी पूरा होने वाला भी नहीं है। इसमें समय तो लगेगा ही जितनी तादाद में दुनिया के लोग और कई देशों की सेनायें वहाँ जमीन पर हैं उनको अफगानिस्तान छोड़ने में वक़्त तो लगेगा ही और यह एक बड़ी चुनौती भी है। बात करें अमेरिका की तो तीसरी बार तय तारीख पर उसकी सेनाओं का काबुल छोड़ना उसके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती इसलिए भी बन गई है क्योंकि अमेरिका के पास अफगानिस्तान को लेकर स्पष्ट नीति का भी अभाव है।
पहले ट्रम्प प्रशासन ने तालिबान के साथ फरवरी 2020 में हुई बातचीत के आधार अमेरिकी सेनाओं की निकासी की अंतिम तारीख 1 मई 2020 तय की थी। लेकिन जानवरी 2021 में जब बाईडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए तो इस समझौते पर अमल नहीं हो सका। अमेरिका की नई सरकार ने नई तारीख तय की 11 सितम्बर, ये वो दिन है जब अमेरिका के न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड टावर को आतंकवादियों ने ध्वस्त कर दिया था। अमेरिका के राष्ट्रपति 9/11 की उस तिथि को इस काम के लिए एक स्मृति के रूप में सहेज कर रखना चाहते थे लेकिन इतिहास का यह ऐसा दिन नहीं है जिसे इस रूप में याद रखा जाए क्योंकि यह किसी तरह की खुशी का नहीं बल्कि दुःख और अपमान का मौका है इसलिए इसे इस रूप में स्वीकार नहीं किया गया। जन आलोचनाओं को देखते हुए तीसरी और नई तारीख 31 अगस्त तय की गई।
अमेरिका, रूस फ्रांस और ब्रिटेन समेत कई देशों के करीब एक लाख नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकाला जा चुका है लेकिन तय समय में सभी देशों के लिए अपने सभी नागरिकों को वहाँ से निकाल पाना एक असंभव सा काम है। फिर भी प्रयास जारी हैं। ऐसे में तालिबान की यह डेडलाइन दुनिया के सभी देशों के लिए जी का जंजाल भी बन गई है। लोग तो तालिबान के खौफ से वैसे ही अफगानिस्तान छोड़ना चाह रहे हैं। ख़ास तौर पर महिलायें और बच्चे तो हर हाल में तालिबान का अफगानिस्तान छोड़ने की कोशिश में लगे हैं। अफगानिस्तान छोड़ने की जिद भी ऐसी कि लोग काबुल हवाई अड्डे पर देश से बाहर जाने वाले हवाईजहाज से ही लटक रहे हैं। सीन कुछ ऐसा जैसा भारत के शहरों में ट्रक से लटक कर लोग यात्रा करते दिखाई देते हैं।
अफगानिस्तान से बाहर जाने की चाहत में काबुल के हवाई अड्डे के अन्दर जाने वालों का तांता लगा हुआ है। जो हवाई अड्डे के अन्दर नहीं जा पा रहे हैं वो दीवारों पर चढ़ जाते हैं। हवाई अड्डे पर अमेरिक सैनिक तैनात हैं इसलिए भी लोग तालिबान से बच कर वहाँ जाना चाहते हैं। कई महिलायें जो खुद देश से बाहर नहीं जा पा रही हैं वो अपने गोदी के बच्चों को ही सही देश के बाहर ले जाने की मिन्नत दूसरी यात्रियों से कर रही हैं ताकि उनका न सही उनके बच्चों का ही सही भविष्य सुरक्षित हो सके मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पॉप स्टार आर्यना सईद ने पिछले दिनों काबुल से नुकलते वक़्त हवाई अड्डे पर उनके साथ हुए एक वाकये का हवाला देते हुए बताया था कि हवाई अड्डे पर एक महिला ने अपना बच्चा ही यह कहते हुए उन्हें थमा दिया कि वो उसे अपने साथ देश से बाहर ले जाएँ ताकि उसकी जान तो सलामत रहे। आर्यना को लगा की दूध पीता बच्चा अपनी माँ के बगैर कैसे रह पायेगा, इसलिए उन्होंने ने विमान और हवाई अड्डे के अधिकारियों से पूछा कि क्या वो बच्चे और उसकी माँ दोनों को उनके साथ अफगानिस्तान से बाहर जाने की अनुमति दे सकते हैं। आर्यना को इसकी अनुमति नहीं मिल सकी लिहाजा वो बच्चा भी बाहर नहीं ले जाया जा सका।
तालिबान की वजह से अफगानिस्तान में मानवीयता का संहार करने वाले ऐसे असंख्य प्रसंग आजकल देखने और सुनने में आ रहे हैं। ऐसा ही एक प्रसंग यह भी है कि तालिबान की पूर्ववर्ती सरकार में संचार मंत्री रह चुके सय्यद अहमद शाह सआदत इन दिनों जर्मनी में पिज्जा डिलीवरी बॉय की तरह घर – घर फेरी लगा रहे हैं .. जर्मनी के लीपजिंग शहर में प्रवास पर रह रहे सआदत लीफ्रान्दो नेटवर्क कंपनी के लिए काम कर रहे हैं। उनको ऐसा करते हुए देख कर लोगों को बड़ा अटपटा लगता है लेकिन सआदत को ऐसा करते हुए बिलकुल भी अटपटा नहीं लगता।
इधर भारत के सन्दर्भ में एक बात बड़ी अटपटी लगी वो यह कि अफगानिस्तान से जो हिन्दू और सिख बाहर जाना चाह रहे हैं उनकी पसंद भारत नहीं है बल्कि वो अमेरिका या यूरोप के किसी देश में जाकर बसना चाहते हैं। भारतीय सेना अब तक सैकड़ों भारतीयों को भारत ला चुकी है लेकिन असंख्य सिख और हिन्दू नागरिक ऐसे हैं जो अमेरिका या कनाडा जाना चाहते हैं। ऐसे लोगों की वजह से कई उड़ाने विलम्ब से काबुल छोड़ पा रही हैं। ऐसे करीब 70 -80 हिन्दू और सिख जो अफगानिस्तान के गुरुद्वारों में शरण लिए हुए थे भारत के बजाय अमेरिका या कनाडा जाने की चाहत रखते हैं। ऐसे लोगो ने दो बार तो भारत की फ्लाइट ही छोड़ दी थी लेकिन भारत सरकार की मजबूरी है की वो ऐसे लोगों को अपनी फ्लाइट से भारत के अलावा किसी अन्य देश नहीं ले जा सकती।