ज्ञानेन्द्र पाण्डेय: कामगारों के काम और आर्थिक स्थिति पर कोरोना का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था यह तथ्य तो सबको मालूम है। लोग यह भी जानते हैं कि जब पिछले साल 2020 में 21 मार्च से कोरोना की वजह से लॉकडाउन यानी तालाबंदी की शुरुआत हुई थी, और लोगों को मजबूरन अपने – अपने घरों में रहना पड़ा था , तब शुरू में तो ऐसा लगा कि लॉकडाउन का समय ( दो हाफ्ते ) निकल जाने के बाद सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो जाएगा लेकिन जब उम्मीदों के नौरूप ऐसा नहीं हुआ और लगभग दो महीने तक लोगों को बंदी की वजह से घरों में ही रहना पड़गया तो लोगों के सब्र का बाँध टूटने लग गया था।
काम नहीं तो पैसा नहीं , पैसा नहीं तो खर्चा नहीं और खर्चा ही नहीं तो जियेंगे कैसे इसी डर से लाखों की तादाद में देश के अलग – अलग शहरों में काम कर रहे लाखों मजदूरों ने वापस अपने घरों की तरफ पलायन शुरू कर दिया था। लॉकडाउन में रेल , बस सब कुछ बंद ही था लिहाज ये मजदूर पैदल ही निकल पड़े थे अपने गाँव की और। इनमें कुछ वापस पहुंचे तो कुछ रास्ते में ही मर खप गए थे। लोरोना लॉकडाउन की वजह से दफ्तर – कारखाने तो बंद हुए ही थे कुछ समय के लिए खेतों में भी काम बंद हो गया था और किसी तरह का निर्माण कार्य भी नहीं हुआ था। इन हालात में दिहाड़ी का काम करने वाले मजदूरों की हालत तो वास्तव में खराब थी ही , निजी क्षेत्र के अन्य अवसर भी हाथ से चले गए थे।यह एक भयानक बेरोजगारी का दौर था जिसका असर किसी न किसी रूप में आज भी देखने को मिल रहा है।
कोरोना के दौर में कामगारों की आर्थिक स्थिति पर पड़े प्रतिकूल प्रभावों से सम्बंधित विस्तृत जानकारी एक सर्वे रिपोर्ट में संग्रहीत की गई है। यह सर्वे रिपोर्ट अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा संचालित बंगलुरु के एक विश्वविद्यालय ने लोगों के साथ बातचीत के आधार पर तैयार की गई है। विगत 5 मई को ही इस रिपोर्ट को मीडिया के लिए ऑनलाइन जारी किया गया था . इस रिपोर्ट के एक हिस्से में काम पूरा होने के बाद इसके दूसरे हिस्से पर चर्चा होनी आवश्यक है और यह सन्दर्भ कोरोना की वजह से लगाए गए लॉकडाउन का महिलाओं महिलाओं पर पड़ने वाले घरेलू कामकाज के अतिरिक्त बोझ को लेकर है।“स्टेट ऑफ़ वोर्किंग इण्डिया – कोविड 19 का एक साल ” शीर्षक इस सर्वे रिपोर्ट में एक जगह साफ़ तौर पर कहा गया है कि कोरोना के उस दौर में , ” कामकाजी महिलाओं के लिए रोजगार के घंटों में बगैर किसी राहत के , घरेलू काम का बोझ बढ़ गया था .” इस सम्बन्ध में देश के कर्णाटक और राजस्थान सरीखे राज्यों से जुताई गई जानकारी के मुताबिक इन राज्यों में प्रतिदिन दो घंटे खाना पकाने वाली महिलाओं का काम प्रतिदिन क्रमशः 42 से 46 प्रतिशत तक बढ़ गया था। रिपोर्ट के मुताबिक़ कर्णाटक में यह 20 से बढ़ कर 62 प्रतिशत हुआ और राजस्थान में यह काम 12 से बढ़ कर 58 प्रतिशत हो गया था। रिपोर्ट के मुताबिक एक तरफ तो कोरोना का असर इस रूप में देखने को मिला कि कामकाजी महिलाओं पर घरेलू काम का अप्रत्याशित बोझ बढ़ गया था तो दूसरी तरफ रोजगार बंद होने से पैदा हुए बेरोजगारी के आलम ने गरीब इंसान को अपने रोज मर्रा के खर्चे चलाने के लिए अपने परिवार का भोजन कम करने और अपनी परिसंपत्तियों को एक – एक कर बेचने पर मजबूर कर दिया था।