ज्ञानेन्द्र पाण्डेय: चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में आठ चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण का चुनाव संपन्न हो गया है। रंगों के पर्व होली से दो दिन पहले गत शनिवार 27 मार्च को संपन्न पहले चरण के चुनाव में असम और बंगाल की क्रमशः 43 और 30 विधानसभा सीटों के लिए वोट डालने का काम हुआ था , अब इन्हीं दोनों राज्यों की लगभग इतनी ही सीटों के लिए दूसरे चरण में गुरुवार एक अप्रैल को वोट डाले जाएँगे। देश के जिन राज्यों की विधानसभा के लिए चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की है उसके मुताबिक असम और बंगाल ही ऐसे दो राज्य हैं जहां चुनाव प्रक्रिया एक नहीं कई चरणों में संपन्न होनी है। इस लिहाज से असम में तीन और बंगाल में आठ चरणों में वोट डालने का यह काम पूरा होना है। दोनों ही राज्यों में चुनाव का पहला चरण संपन्न हो गया है, दूसरे चरण में अप्रैल की पहली तारीख को कल वोट डाले जाने हैं। तीसरा चरण 6 अप्रैल को संपन्न होगा जो असम चुनाव का अंतिम चरण होगा।
बंगाल में इसके बाद पांच और चरणों में 10 ,17 ,22 , 26 और 29 अप्रैल को क्रमशः चौथे , पांचवें , छठे , सातवें और आठवें चरण के चुनाव होने हैं। असम और बंगाल को छोड़ कर दक्षिण भारत के दो राज्यों – तमिलनाडु और केरल के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी विधान सभा चुनाव में एक ही चरण में 6 अप्रैल को वोट डाले जाएँगे.सभी राज्यों में वोटों की गिनती का काम एक ही दिन 2 मई को किया जाएगा। इसके आधार पर ही सभी राज्यों में नई विधान सभा के गठन के साथ ही बहुमत के आधार पर राज्यों की नई सरकारों का भी गठन होगा। मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के चलते असम में भाजपा के नेतृत्व में सहयोगी दलों की गठबंधन सरकार वजूद में है। तमिलनाडु में भाजपा की सहयोगी अन्ना द्रमुक के नेतृत्व में सहयोगी दलों की सरकार वजूद में है। केरल में वाम मोर्चे की और बंगाल में ममता बनर्जी की अध्यक्षता वाली तृणमूल कांग्रेस की सरकार है।
केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी सही मायने में केंद्र सरकार के अधीन है क्योंकि चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले ही इस राज्य की कांग्रेस सरकार उसके विधायकों के एक – एक कर टूट कर दूसरी पार्टियों में शामिल होने की वजह से गिर गई थी। इस लिहाज से देखें तो बंगाल में तृणमूल कांग्रेस , असम में भाजपा , तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक – भाजपा गठबंधन , केरल में वाम मोर्चा और पुदुचेरी में कांग्रेस पार्टी को व्यवस्था विरोधी नाराजगी का नुक्सान इस चुनाव में होना चाहिए। चुनाव में हार जीत का मूल्यांकन करने के लिए आधार माने गए एक प्रचलित सिद्धांत के मुताबिक़ अगर किसी चुनाव में वोट देने वालों का प्रतिशत , वोट देने के सामान्य चलन से कुछ ज्यादा हो तो यह माना जाता है कि उस चुनाव में मतदाता सत्तारूढ़ दल / गठबंधन से नाराज है लिहाजा अधिक मतदान का उस पार्टी या सत्तारूढ़ पार्टियों के गठबंधन को नुक्सान ही होगा क्योंकि नाराज मतदाता उस पार्टी या गठबंधन की सरकार के कामकाज के प्रति अपनी नाराजगी का प्रदर्शन उसके खिलाफ ज्यादा से ज्यादा तादाद में वोट देकर ही करता है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि असम और बंगाल में पहले चरण के चुनाव में लगभग 80 प्रतिशत मतदान हुआ है। इसे भारी मतदान कहा जा रहा है और यह माना जा रहा है कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को और असम में भाजपा की सरकारों के कामकाज से जनता नाराज है और जनता की नाराजगी का असर इन दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियों के खिलाफ माना जा रहा है। मतलब यह कि असम में भाजपा को और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को नुक्सान होगा लेकिन भाजपा के नेता यह मानने को तैयार नहीं हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बंगाल में तो इस फार्मूले को सही बताया है। इन नेताओं का मानना है कि बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी को व्यवस्था विरोधी नाराजगी का सामना करना ही पड़ेगा।
इसी सोच के तहत अमित शाह ने बंगाल में प्रथम चरण के लिए संपन्न 30 सीटों के चुनाव में कमसे कम 26 सीटें भाजपा की झोली में जाने का दावा किया है, हैरानी की बात है कि भाजपा नेता बंगाल में तो जन नाराजगी के चलते व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं लेकिन असम में उन्हें यह जन नाराजगी कहीं नजर नहीं आती। यह ठीक है कि बंगाल में लोग दीदी से नाराज हैं इसलिए चुनाव में उनकी पार्टी को नुकसान, होने की बात समझ में भी आती है। बंगाल में दीदी से नाराजगी के चलते ही उनकी पार्टी के कई सांसद विधायक भाजपा में भी गए, लेकिन भाजपा नेता यह बात क्यों भूल जाते हैं कि असम में भी उनकी पार्टी की नीतियों से जनता परेशान है और नाराज भी। जनता की नाराजगी की एक बड़ी वजह यह है कि असम के लोग केंद्र की भाजपा सरकार के उस क़ानून से बुरी तरह नाराज हैं जिसे सीएए (CAA) यानी नागरिकता संशोधन क़ानून नाम दिया गया है।
जनता की नाराजगी को देखते हुए ही भाजपा को इसे असम के चुनाव में “लो डाउन ” करते हुए यह कहना पड़ा कि उनकी सरकार इसे इस तरीके से लागू करेगी जिससे राज्य के नागरिकों को कोई नुकसान न हो। असम में भाजपा सरकार के कामकाज से भी लोग नाराज हैं पिछले चुनाव में भाजपा ने चाय बागानों के मजदूरों को 351 रुपये रोज की दिहाड़ी देने का वायदा किया था जो पूरा नहीं हुआ। नागरिकता क़ानून की बात तो यह भी है कि भाजपा ने तमिलनाडु और केरल में इसे लागू न करने की घोषणा की है क्योंकि इन दोनों राज्यों में सहयोगी पार्टियां ही इसके खिलाफ हैं। उधर बंगाल में भाजपा किसी भी हालत में इसे लागू करना चाहती है क्योंकि यहाँ इस क़ानून से उसका उसका हिन्दू वोट बैंक और मजबूत होगा। बड़ी अजीब बात है कि एक पार्टी केंद्र में अपनी सरकार से जो क़ानून बनाती है उसे कहीं लागू करना चाहती है। कहीं आंशिक रूप से उसे लागू करना चाहती है, और कहीं लागू ही नहीं करना चाहती ..है ना विचित्र बात। कानून एक लागू करने के नियम तीन …