नई दिल्ली: लंबी बातचीत का दौर और मामला सुलझाने की नौटंकी में पहले 72 से ज्यादा किसान नेताओं की जान चली गई, छोटे बच्चें और माताएं अपने किसान खेवनहार के साथ इस कड़कड़ाती ठंड में इसलिए बैठी रही कि नये कृषि कानून उनके बच्चो के भविष्य को दोबारा पूंजीपतियों की जूती में कैद कर देंगे। उनकी मांगी थी कि इस बिल में खामियां है इसे वापस लिया जाये पर सरकार अपने जिद पर अड़ी रही। किसान भी धरने में अपनी जाने गवांते रहे। इसी बीच किसानों ने ऐलान किया कि 26 जनवरी को वो ट्रैक्टर परेड करेंगे
सरकार ने दबाव में सहमति दे दी पर कही किसी किनारे कुछ ख़ुराफ़ात भी शुरू हुई अब देखिए विडंबना की हर बार की तरह इस बार भी भाजपा के जुड़े नेता और लोगों का नाम सामने आया जिनकी एक हरकत के कारण इस शांतिपूर्ण आंदोलन को तोड़ने की कोशिशें तेज़ हुई। मीडिया, IT सेल और हर तरह के लोगों को लगाया गया आंदोलन की आग को बुझाने के लिए एक मिनट को ऐसा करने में वो कामयाब भी हो गये। पर एक गलती उनसे ये हुई कि झूठ उनका पकड़ा गया जब तस्वीरें निकलकर सामने आनी शुरू हुई। 27 जनवरी की रात से जबरदस्ती किसानों को हटाने के लिए पुलिस सक्रिय हो गई।
आज गाज़ीपुर बॉर्डर पर सरकार अपने असली रूप में आ गई है, चारों तरफ़ से किसानों की घेरा बंदी कर दी गई है, अभी-अभी उत्तरप्रदेश सरकार ने सभी ज़िलों के कप्तान और जिलाधिकारी को किसान आंदोलन को हर सूरत में कुचलने का सरकारी आदेश जारी कर दिया है।किसान नेता राकेश टिकैत मीडिया के सामने बोलते बोलते रो पड़े।
किसान लगातार कह रहे हैं कि लाल क़िले पर हुई हिंसा में किसानों का हाथ नहीं है बल्कि एक साज़िश रची गई है पूरे किसान आंदोलन को ख़त्म करने के लिए। दूसरी तरफ़ किसान नेताओं पर FIR की जा रही हैं किसान नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डालने का काम शुरू किया जा चुका है। बाक़ी देश की आम जनता में झूठ फैलाने के लिए हमेशा की तरफ आइटी सेल काम कर रही है।
ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण समय है, विडंबनापूर्ण भी. 68% किसानों की आबादी और कृषि प्रधान देश में ये काली रात देखने को मिल रही है। किसान अकेला सड़क पर मरने के लिए खड़ा है, आज रात में क्या होना है, कितनों के सर फूटेंगे, कितनों के हाथ टूटेंगे मालूम नहीं। पूरा सरकारी तंत्र केवल आवाज को कुचलने के लिए तैयार है। ऐसा तब है जब हम एक स्वतंत्र देश मे सबसे लचीले संविधान के साये में रहते है।