सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत राजद्रोह के औपनिवेशिक युग के प्रावधान (आईपीसी की धारा 124 ए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को संविधान पीठ के पास न भेजने के केंद्र के अनुरोध को खारिज कर दिया क्योंकि केंद्र का कहना था कि संसद की स्थायी समिति प्रस्तावित नए आईपीसी पर विचार कर रही है।
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केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि इस मामले की सुनवाई को फिलहाल टाल दिया जाए क्योंकि आपराधिक कानून में प्रस्तावित व्यापक बदलावों पर फिलहाल पार्लियामेंट की स्टैंडिंग कमेटी विचार कर रही है। इसलिए नए क़ानून के वजूद में आने का इतंज़ार किया जाए। सरकार ने कहा कि हमें नहीं पता कि कानून कैसा होगा? फिलहाल समिति द्वारा इसका अध्ययन किया जा रहा है। इसलिए अधिनियम पारित होने दीजिए और फिर अदालत इसकी संवैधानिक वैधता पर निर्णय ले सकती है।
हालांकि, सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मामले को कम से कम पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया।
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पीठ ने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को सीजेआई के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि “कम से कम पांच न्यायाधीशों की ताकत” वाली पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक पक्ष पर उचित निर्णय लिया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज पारित आदेश में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दाखिल याचिकाओं में तर्क यह है कि राजद्रोह कानून या आईपीसी की धारा 124 ए संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ संगत नहीं है। राजद्रोह कानून एक संविधान-पूर्व (अंग्रेजों द्वारा लाया गया) प्रावधान है जब राज्य और सरकार के बीच कोई अंतर नहीं था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार के प्रति किसी भी असंतोष को राज्य के प्रति असंतोष के रूप में नहीं समझा जा सकता है।
केंद्र ने तर्क दिया कि नए आईपीसी को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है। नए आपराधिक कानून का पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं हो सकता। केंद्र ने अभी सुनवाई टालने का अनुरोध किया है क्योंकि मामला स्थायी समिति के पास है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि – हालांकि, हमारा इस मामले को टालने का इरादा नहीं है क्योंकि कानून 124 ए मौजूद है। धारा 124 ए की वैधता क़ानून में बनी हुई है।
ये याचिकाएं 1 मई को शीर्ष अदालत के सामने आई थीं, जिसने केंद्र द्वारा यह कहने के बाद सुनवाई टाल दी थी कि वह दंडात्मक प्रावधान की फिर से जांच करने पर परामर्श के अंतिम चरण में है।
11 अगस्त को, औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानूनों में बदलाव के लिए एक ऐतिहासिक कदम में केंद्र ने आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए थे, जिसमें अन्य बातों के अलावा राजद्रोह कानून को निरस्त करने और अपराध की व्यापक परिभाषा के साथ एक नया प्रावधान पेश करने का प्रस्ताव था।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि नए कानून का मौजूदा मामलों पर कोई असर नहीं होगा। अदालत ने कहा, “संसद द्वारा विचार किए जा रहे नए कानून का पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं होगा। नया कानून धारा 124ए के तहत अभियोजन को प्रभावित नहीं कर सकता है।”
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में इसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए राजद्रोह कानून को अप्रभावी कर दिया था। तब अदालत ने केंद्र से इस पर पुनर्विचार करने और संभवत: इसे रद्द करने को कहा था।