PM नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में गंगा नदी को स्वच्छ अविरल निर्मल बनाने के लिए नमामि गंगे योजना लागू करते हुए इसी प्रोजेक्ट के आधार पर कई सारे एसटीपी बनाने की कवायद शुरू की गई। इनका मूल उद्देश्य था की गंगा नदी में किसी भी प्रकार का नाले का गंदा पानी, कूड़ा कचरा ना जाने पाए जिसको देखते हुए बनारस में 8 एसटीपी को संचालित भी कर दिया गया। इसके साथ ही 2 एसटीपी की आधारशिला भी रखी गई इसके बावजूद गंगा में प्रतिदिन 140 से 150 एमएलडी नाले का पानी जा रहा है, जिसकी वजह से गंगा दिन-पतिदिन दूषित होती चली जा रही है एवं गंगा नदी में रहने वाले जलीय जीवो का जीवन स्तर खराब होता जा रहा है और उनके ऊपर संकट मंडरा रहा है। इसके साथ ही इकोसिस्टम भी प्रभावित हो रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए तक्षक पोस्ट की टीम ने ग्राउंड रिपोर्ट की है। आखिर इन एसटीपी की मदद से कहां तक गंगा को दूषित होने से कैसे बचाया जा सकता है।
शहर के 80 नालों का गंदा पानी सीधे गंगा में-
गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए लगातार अभियान चलाए जाने के बाद और आठ एसटीपी को संचालित करने के बाद भी अभी भी गंगा नदी में शहर के 80 नालों का पानी सीधे जा रहा है जिसमें सुजाबाद नाला अस्सी नाला ,लोहता नाला, नक्खीघट नाला, रविदास घाट नाला प्रमुख रूप से है। इन नालों से रोजाना 140 से 150 एमएलडी गंदा पानी सीधे गंगा में प्रवेश कर रहा है. जो गंगा के नीले रंग के पानी के कलर को पूरी तरीके से काला कर दे रहा है। इतना ही नहीं, इन पानी के वजह से गंगा के अंदर जीवन यापन करने वाली मछलियों और अन्य प्रकार के छोटे जीवो के ऊपर संकट मंडराने लगा है। फिर भी प्रशासन की नजर इन नाले के पानियों की तरफ नहीं जा रहा है कि आखिर कैसे इन नाले के पानी को गंगा में जाने से रोका जाए। क्या गंगा में इसी तरीके से पानी जाता रहेगा और दिखावे के साथ जोर आजमाइश की जाती रहेगी?
नालो के किनारे रहने वाले लोगों में फैल रहा है संक्रमण-
शहर के 80 नालो जिन पर प्रशासन की नजर नहीं जाती है जो सीधे गंगा में जाते हैं। इन्हीं नालों के किनारे हजारों की संख्या में खानाबदोश, मजदूर ,गरीब समुदाय के लोग रहते हैं। दरअसल यह गरीब समुदाय के लोग रहते हैं इसलिए इन पर प्रशासन की कोई खास पहल नजर नहीं होती है। इन्हीं नालों के किनारे इनका गुजर-बसर जीवन यापन निर्धारित होता है। नालों की दुर्गंध के कारण इनका जीवन स्तर दिन प्रतिदिन खराब होता चला जा रहा है। इनके अंदर एवं इनके परिवार वालों के बीच संक्रामक बीमारियों ने अपना घर बना लिया है। आए दिन किसी न किसी स्किल, लीवर, फैट इत्यादि प्रकार की बीमारियों ने अपना घर बना लिया है, जिसके कारण यह लोग आए दिन परेशान होकर के अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं। अपनी बीमारी को ठीक कराने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रशासन का चक्कर लगा रहे हैं। इसके बाद भी इनकी तरफ या इनकी समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। आखिर इन नालों को ढकने और गंगा को सुरक्षित करने का प्रयास कब किया जाएगा?
गंगा का इकोसस्टम हो रहा है डैमेज-
गंदे पानी का लगातार जाने की वजह से गंगा अपने आप को रिचार्ज नहीं कर पा रही हैं। यही कारण है कि बनारस में कभी गंगा का पानी हरा हो जाता है कभी नीला हो जाता है कभी काला पड़ जाता है। कभी मछलियां ऊपर आकर के तैरने लगती हैं जिसकी वजह गंगा में भारी मात्रा में गंदगी का प्रवेश करना है। प्रशासन की तरफ से यह कवायद की गई थी कि गंगा में किसी भी प्रकार का गंदा पानी ,कूड़ा कचरा, गोबर, प्लास्टिक के खराब उत्पाद नहीं जाने दिए जाएंगे लेकिन आज भी वह धड़ल्ले से एंट्री कर रहे हैं। इसकी वजह से गंगा अपने आपको रिचार्ज नहीं कर पा रही हैं जिसके कारण तमाम तरीके की समस्याएं उत्पन्न हो रही है। इसी मसले पर बीएचयू के वरिष्ठ वैज्ञानिक बीडी त्रिपाठी से बातचीत की गई जो भूगोल विद भी हैं। उनका कहना था कि प्रशासन को गंगा में गंदे पानी नाले के पानी को जाने से पूरी तरीके से रोकना होगा, वरना गंगा का इको सिस्टम पूरी तरीके से डैमेज हो जाएगा। आगे उन्होंने कहा की अभी तो मार्च अप्रैल का महीना चल रहा है इसलिए गंगा का जलस्तर थोड़ा सा ठीक है। गर्मी के दिनों मई-जून के महीनों में गंगा का पानी पूरी तरीके से खराब हो जाता है और चारों तरफ रेती हो जाती है। उस दौरान इतनी भारी मात्रा में नाले के पानी के जाने के कारण स्वच्छता और स्वच्छ पानी पूरी तरीके से समाप्त हो जाता है और गंगा प्रदूषण युक्त हो जाती है। आगे उन्होंने बताया कि यदि पहाड़ी पानी या नहर का पानी प्रशासन के द्वारा महीने महीने के अंतराल पर न छोड़ा जाए इसी बनारस शहर में गंगा पूरी तरीके से काले रंग बदल जाएगी। इसलिए प्रशासन को चाहिए की एसटीपी की मदद से जो रिफाइंड तो किया ही जा रहा है किसी तरीके से इन नाले के पानी को किसी और लोकेशन पर कन्वर्ट किया जाए और इन्हें गंगा में जाने से रोका जाए।
आस्था पर लगती है करारी चोट-
बनारस को धर्म अध्यात्म एवं संस्कृति की राजधानी के रूप में सदियों से जाना जाता है। यहां पर बाबा धाम से लेकर के संकटमोचन तक के दिव्य एवं विशाल आस्था के मंदिर हैं। इन मंदिरों को दर्शन करने के साथ ही गंगा में स्नान करके अपने सभी पापों को नष्ट करने के लिए पूर्वांचल ही नहीं आस-पड़ोस के प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की जनता रोजाना आती है। यहां पर प्रतिदिन लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पर्यटक आते हैं जो गंगा पर गंगा आरती भी देखते हैं और स्नान भी करते हैं। ऐसे में दूषित पानी के बीच में जाकर के तीर्थयात्रियों का नहाना उनकी आस्था के साथ खिलवाड़ है। लेकिन जो लोग भी आते हैं उन्हें क्या पता है कि गंगा में नाला का पानी जा रहा है गंगा काली हो गई है। वह तो सिर्फ गंगा मैया के नाम पर उस में डुबकी लगाते हैं और अपने को धन्य समझते हैं। लेकिन प्रशासन के द्वारा उनकी आस्था को तार-तार किया जा रहा है।
इसी मुद्दे को ध्यान में रखते हुए अस्सी घाट के ज्योतिषाचार्य वैदिक समृद्ध चतुर्वेदी से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया गंगा में नाले का पानी जाने के कारण गंगा तो काली हो ही रही है साथ ही दूषित भी हो रही है। लेकिन जो भी भक्त आते हैं दर्शन करते हैं और गंगा में स्नान करते हैं उनके साथ प्रशासन खिलवाड़ कर रहा है। भक्तों को ध्यान में रखते हुए गंगा की सफाई निरंतर होती रहनी चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि गंगा शुद्ध हो। आगे इसी मुद्दे पर लोलार्क कुंड के पीठाधीश्वर पंडित अभिषेक पांडे से बातचीत हुई तो उनका भी यही कहना था गंगा को शुद्ध बनाना भक्तों के साथ ही प्रशासन की भी जिम्मेदारी है भक्त तो बेचारा अपनी आस्था से आता है और मैया चाहे काली हो या हरी हो या नीली हो या पीली वह तो दिल की लगाकर और डुबकी लगा के चला जाता है।
बनारस में नालों के पानी को परिमार्जित करने के लिए एसटीपी की संख्या-
बनारस में वर्तमान समय में शहर के नालों के पानी को परिमार्जित और शुद्ध करके रिलीज करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से आठ एसटीपी प्लांट लगाए गए हैं। इसके साथ ही पीएम मोदी के 24 मार्च 2023 के दौरे के दौरान बनारस में दो और नए एसटीपी का शिलान्यास किया गया .जिसके बाद अब कुल संख्या 10 हो गई है। इसके बावजूद भी शहर में नालों का पानी सीधे गंगा में जा रहा है।
अस्सी विलुप्त वरुणा से प्रशासन रूष्ट-
प्रयागराज की तर्ज पर बनारस भी तीन नदियों का संगम आदिकाल से था. यहां पर भी गंगा बरुणा और अस्सी नदियां धाराप्रवाह बहती थी। बीते 5 दशक पहले ही 80 नदी विलुप्त हो चुकी है। अब यह नदी सिर्फ कागजों में नदी रह गई है। हकीकत में अस्सी नाला के रूप में देखी जा रही है। इस नदी को प्रशासन की बेरुखी की मार इतनी ज्यादा झेलनी पड़ी यह नाले में तब्दील हो गई। अब इसी नाले से शहर के कचड़े गंगा और वरुणा में जाकर के मिल रहे हैं। इतना ही नहीं वरुणा नदी से भी प्रशासन का मोहभंग है। पूर्वर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार में सीएम अखिलेश यादव ने वरुणा नदी के जीर्णोद्धार और उसके सौंदर्यीकरण के लिए शहर में बरूणा कारीडोर बनाने की पहल की थी। काम तो थोड़ा बहुत शुरू हुआ जैसे ही सरकार गई वैसे ही कारीडोर का काम ठप हो गया, और अब बीजेपी सरकार अपने एजेंडे के तहत काम कर रही है। कॉरिडोर को पूरी तरीके से भूल चुकी है सुंदरीकरण ठप हो चुका है नाले का पानी धुआंधार जा रहा है। शहर के उन मुस्लिम इलाकों की बात की जाए जहां से वरुणा नदी होकर गुजरती है जैसे सरैया, जलाली पूरा इन इलाकों से बरुणा नदी की हाल और भी बुरा है। यहां पर जब आप जाएंगे मरे हुए जानवरों को भी लोग वरुणा नदी में फेंक देते हैं जो भारी दुर्गंध बदबू का कारण हो जाती है और आम आदमी का उस रास्ते से गुजर पाना काफी दुर्लभ हो जाता है। इस बारे में जलकल के महाप्रबंधक रघुवेंद्र कुमार से बातचीत की गई तो उनका कहना था नदियों के पानी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए आम जनता की जिम्मेदारी होती है। इसके साथ ही हम लोग एसटीपी की मदद से नालों के पानी को शुद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं और जिन नालों का पानी अभी एसटीपी प्लांट में नहीं ला जाया पा रहा है उनको अगली कार्ययोजना के तहत एसटीपी तक कन्वर्ट किया जाएगा। वरुणा नदी के मसले पर जल निगम के मुख्य अभियंता संजय बर्मन से बातचीत की गई तो उनका कहना था शहरी सीमा क्षेत्र में वरुणा नदी जल निगम के अंतर्गत आती है और शहर के बाहर सिंचाई विभाग के अंतर्गत आ जाती है। कॉरिडोर का काम तो सरकार की मंशा अनुसार होगा लेकिन इसकी साफ-सफाई रखने के लिए समय-समय पर अभियान चलाया जाता है।
अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर जो नमामि गंगे योजना पीएम मोदी की सरकार द्वारा चलाई गई थी वह कहां तक बनारस में गंगा मैया को स्वच्छ और साफ बनाने में मददगार साबित हो रही है? एसटीपी की मदद से बार-बार यह दावा किया जाता है कि अब नाले का पानी गंगा में नहीं जाएगा। बरुणा में नहीं जाएगा। इसके बाद भी शहर की 140 से 150 एमएलड नाले का पानी नदियों में कब तक जाएगा और इस को कैसे कंट्रोल किया जाएगा, इसके लिए क्या कोई मास्टर प्लान सरकार के पास है या सिर्फ चुनावी एजेंडे को भुनाने के लिए इस प्रकार से बात की जाती है। दूसरी बात यही गंगा नदी जब मैदानी क्षेत्रों से हटकर के पहाड़ी क्षेत्रों पठारी क्षेत्रों में जाती है तो इसका पानी कैसे शुद्ध और साफ हो जाता है? एक शोध रिपोर्ट में पिछले दिनों दावा किया गया था और उस पर मंथन भी हुआ था की गंगा नदी के पानी में कीड़े नहीं पड़ते हैं तो क्या वर्तमान समय में इतने नाली के पानी जाने के बाद भी गंगा नदी का पानी उतना ही एंटीबायोटिक के रूप में है।