लखनऊ: दो वर्ष पहले 5 अक्टूबर 2020 में हाथरस में हुये एक दलित युवती के साथ बलात्कार के बाद हुई हत्या की रिपोर्टिंग करने के दौरान मूलतः केरल से और दिल्ली में नौकरी कर रहे पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को हाथरस जाने के दौरान गिरफ्तार करने जेल में डाल दिया गया था। कप्पन पर आरोप लगाया गया था कि वो गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त है। और राजद्रोह समेत IT एक्ट में दोषी बना दिया गया था। लंबी लड़ाई के बाद इस साल 9 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों के “अभिव्यक्ति की आजादी” के अधिकार पर जोर देते हुए उन्हें जमानत दे दी थी। लेकिन कानूनी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कप्पन को दो जमानतदार चाहिए थे, जिनका UP से होना जरूरी था।
ऐसे में कप्पन कई मदद के लिए एक जमानतदार के तौर पर प्रसिद्ध समाजसेवी और लखनऊ यूनिवर्सिटी की पूर्व वाईस चान्सलर रूप रेखा वर्मा ने अपनी सहमति दी है और अपनी गाड़ी के कागज़ जमानत के तौर पर कोर्ट में जमा करवाये है।
79 वर्षीय रूप रेखा वर्मा ने कहा मैं व्यक्तिगत रूप से सिद्दीकी कप्पन को नहीं जानती लेकिन “वो एक सजग नागरिक है, और इस अंधेरे हालात में जो देश का माहौल है, ऐसे में मैंने वहीं किया है जो मुझे करना चाहिए।” केरल से मेरे एक मित्र के अनुरोध पर मैं ऐसा कर रही हूं।
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा, मंगलवार, 20 सितंबर को केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन के लिए जमानतदार के रूप में खड़ी हुई हैं, जिन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी। यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब कप्पन के वकील दो व्यक्तियों को खोजने के लिए संघर्ष कर रहे थे जो जमानत की शर्तों को पूरा करने के लिए पत्रकार के लिए जमानतदार के रूप में खड़े होंगे।
9 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने कप्पन को जमानत दी, जिसके बाद उन्हें 12 सितंबर को लखनऊ में ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किया गया, जहां उन्हें जमानत की शर्तों के बारे में बताया गया। जमानत की शर्त में दो व्यक्तिगत जमानतदार शामिल थे, जो उत्तर प्रदेश के निवासी हैं, जिनके खाते में या संपत्ति के रूप में 1 लाख रुपये मूल्य के हैं। और कप्पन के वकील, मोहम्मद धनिश के अनुसार, मामला कितना संवेदनशील है, इसे देखते हुए लोगों को जमानतदार के रूप में खड़ा करना बहुत मुश्किल था। लेकिन जमानत के बाद भी कप्पन अभी 29 सितंबर तक जेल से बाहर नहीं आ पायेंगे 20 तारीख को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामलें के कारण कोर्ट ने उनकी जमानत खारिज कर दी है जिस पर अभी 23 सितंबर को सुनवाई चल रही हैं।
कप्पन को 5 अक्टूबर 2020 में यूएपीए अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था और यूपी स्पेशल टास्क फोर्स ने मामले में 5,000 पेज का चार्जशीट दायर किया था, जिसमें दावा किया गया था कि उन्होंने “केवल मुसलमानों के बारे में रिपोर्ट दाखिल की है।
कौन हैं प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा?
इसी साल जुलाई में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें लखनऊ की सड़कों पर एक बुजुर्ग महिला को स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पर्चे बांटते हुए दिखाया गया था। द रीज़न? वह क्रांति और स्वतंत्रता की भावना को जीवित रखना चाहती थी। वह महिला दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा थीं, जिन्होंने 1964 से 2003 तक लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया। रूप रेखा वर्मा समाज के वंचित तबके के लिए अपनी आवाज बुलंद करने के लिए भी जानी जाती है अभी हाल ही में गुजरात दंगों के दौरान हिंसा का शिकार बनी बिलक़ीस बानो के केस में छोड़ दिये गए दोषियों के खिलाफ भी SC कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
वर्मा कहती है “यह न्यूनतम है जो कोई भी नागरिक अंधेरे समय में कर सकता है जब इतने अच्छे लोगों को निशाना बनाया जाता है। भारत के सबसे अच्छे लोग – जैसे सुधा बरद्वाज, फादर स्टेन स्वामी, वरवर राव, आनंद तेलतुम्बडे – पिछले कई सालों से जेल में है।
रूपरेखा वर्मा को 2006 में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए बेगम हजरत महल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। शिक्षा जगत में अपने करियर के बाद, वह महिलाओं के अधिकारों से संबंधित मुद्दों के लिए काम कर रही हैं और उन्होंने साझी नामक एक संगठन की स्थापना भी की है। जो लैंगिक समानता और मानवाधिकारों पर केंद्रित है।