पीपुल्स मिशन द्वारा स्थापित ‘ क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा पुरस्कार ‘ के लिए प्रविष्टियाँ आज एक अगस्त 2022 से शुरू हो गईं। इन पुरस्कारों की सात कैटेगरी के लिए भारत का कोई भी नागरिक अधिकतम एक प्रविष्टि में भारत के किसी भी नागरिक को एक या सभी केटेगरी में 14 अगस्त 2022 को अपराह्न चार बजे तक निम्न किसी भी तरीके से नामांकित कर सकता है: साधारण डाक या कोरियर से पीपुल्स मिशन के मुख्यालय को पत्र भेज कर:शॉप नंबर 1, श्रीयमुना अपार्टमेंट्स, अनंतपुर ओवरब्रिज , रांची ( झारखंड ) पिन कोड 834003
व्हाट्सअप नंबर 8987506515 पर लिखित संदेश भेज कर, पीपुल्स मिशन को मेल भेज कर peoples.missiontrust@gmail.com
पीपुल्स मिशन के फेसबुक पेज पर
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ज्यूरी के किन्ही भी सदस्य को लिखित संदेश या पत्र भेज
शिव वर्मा (9 फरवरी 1907:10 जनवरी 1997)
क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा, शहीदे _ए_ आजम भगत सिंह के सहयोगी थे,जिन्हें ब्रिटिश हुक्मरानी ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस–2 में ‘ कालापानी ‘की सजा देकर हिन्द महासागर में अंडमान निकोबार द्वीप समूह के कुख्यात ‘ सेलुलर जेल ‘ में बंद कर दिया था। वह क्रांतिकारी संगठन ‘ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ‘ की सेंट्रल कमेटी के सदस्य और उसके उत्तर प्रदेश के मुख्य संगठनकर्ता थे। क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा ने उसी जेल में बंद विनायक दामोदर सावरकर (1883-1966) के विपरीत ब्रिटिश हुक्मरानी को माफीनामा देने से साफ इनकार कर दिया। वह उस कारावास से जीवित बच छूटने वाले अंतिम स्वतंत्रता संग्रामी थे।
शिव दा, स्वतंत्र भारत में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानि सीपीएम (माकपा) के केन्द्रीय हिन्दी मुखपत्र ‘ लोकलहर ‘ के संपादक भी रहे। उन्होंने उसी दौरान अनेक दुर्लभ ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर ‘ शहीद भगत सिंह की चुनी हुई कृतियाँ ‘ पुस्तक संपादित की, जिसका प्रकाशन कानपुर के ‘ समाजवादी साहित्य सदन ‘ ने सितंबर 1987 में किया था। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) में विभाजन के बाद 1964 में सीपीएम की स्थापना करने वालों में शामिल प्रखर मजदूर नेता, भालचंद्र त्र्यंबक रणदिवे यानि बीटीआर (1904:1990) ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी थी।
पीपुल्स मिशन
पीपुल्स मिशन, कम्पनीज एक्ट ऑफ इंडिया (1956 ) में 2016 में भारतीय संसद द्वारा किये संशोधन के अनुरूप प्रस्तावित अलाभकारी विशेष कंपनी है। इसके निदेशक बोर्ड में डॉक्टर , साहित्यकार, लेखक ,पत्रकार , अर्थशास्त्री , कृषि एवं पर्यावरण विशेषज्ञ , ट्रेड यूनियन वर्कर , पुस्तक प्रकाशक एवं विक्रेता शामिल हैं। इसके चेयरमैन भाषा प्रकाशन , रांची के मार्क्सवादी व्यवसाई कामरेड उपेन्द्र प्रसाद सिंह थे , जिनका कोविड महामारी के दौरान पिछले साल रांची के एक अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने के कारण हार्ट अटैक से निधन हो गया। वह जेएनयू में राजनीति विज्ञान के छात्र रहे थे.उनकी जगह रांची के लोकप्रिय चिकित्सक डाक्टर राज चंद्र झा को अगली व्यवस्था होने तक वर्किंग चेयरमैन बनाया गया है। बोर्ड में हिंदू कॉलेज , दिल्ली के रिटायर प्रोफेसर ईश मिश्र , प्रख्यात पत्रकार रुचिरा गुप्ता , जेएनयू से शिक्षित अर्थशास्त्री एवं द इकोनॉमिक टाइम्स के पूर्व एसोसिएट एडिटर जीवी रमन्ना ( आंध्र प्रदेश) , यूएनआई एम्प्लॉईज फेडरेशन के कई बार महासचिव रहे मजदूर नेता एमवी शशिधरण ( केरल ), कृषि विषय के विशेषज्ञ पत्रकार सरदार जसपाल सिंह सिद्धू (पंजाब ), फ्रेंच भाषा एवं साहित्य विद रेणु गुप्ता ( विजाग ) और स्वतंत्र पत्रकार, पुस्तक लेखक , ट्रेड यूनियन वर्कर , चंद्र प्रकाश झा (सीपी) शामिल हैं.
यूएनआई में करीब 40 बरस पत्रकार के रूप में दिल्ली , लखनऊ, पंजाब , हरियाणा , मुंबई आदि जगह तैनात रहे सीपी को पीपुल्स मिशन का अवैतनिक मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया हैं। वह मुंबई में स्थापित ट्रस्ट , इंडियन बिजनेस जर्नलिस्ट असोसिएशन ( इबजा ) और लखनऊ में बने संगठन मीडिया मंच और पीपुल्स मीडिया के भी संस्थापक महासचिव हैं। पीपुल्स मीडिया ने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के साथ मिल कर श्रम और मानवाधिकार मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए शहीद शंकर गुहा नियोगी पुरस्कार की स्थापना की. ये पुरस्कार पहली बार समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा को दिया गया था और बाद में प्रसिद्ध पत्रकार पी साईनाथ और कुलदीप नैय्यर को भी दिया गया।
सीपी , यूएनआई की सेवा से रिटायर होने के बाद बिहार में सहरसा जिला के अपने गाँव , बसनहीं में बस कर वहाँ खुद खेती -बाड़ी करने के साथ ही अपनी माँ की देखरेख में एक गैर सरकारी माध्यमिक स्कूल चलाते हैं। उन्होंने क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा पुरस्कार के लिए पिछले बरस सारा काम उसी गाँव से किया था।
ज्यूरी
इन पुरस्कारों के निर्णय के लिए अग्रणी पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश के प्रो वाइस चांसलर रहे रामशरण जोशी की अध्यक्षता में अनेक संपादकों की ज्यूरी गठित की गई थी। इसके सदस्य संपादकों में शीतल पी सिंह ( सत्य हिंदी), अनिल चमड़िया (जनमीडिया) ,पीयूष पंत ( जन ज्वार ) , डाक्टर पंकज श्रीवास्तव ( मीडिया विजिल) महेंद्र मिश्र ( जनचौक ), सैय्यद हुसैन अफसर (शहरनामा डॉट कॉम, लखनऊ ), सत्यम वर्मा ( मजदूर बिगुल अखबार ) और सोशल मीडिया विशेषज्ञ के रूप में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (लजेएनयू) , नई दिल्ली छात्र संघ के अध्यक्ष रहे एवं कोलकाता विश्वविद्यालय के रिटायर प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी शामिल हैं.इस बार ज्यूरी का विस्तार कर उसमें एक्सप्रेस पोस्ट ( मुंबई ) के संपादक रोमेल रोड्रिग्स , लोक जतन के संपादक बादल सरोज, तक्षक पोस्ट की संपादक श्वेता आर रश्मि , स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत टंडन , लखनऊ से हर हफ्ते देवनागरी लिपि में प्रकाशित दुनिया के पहले उर्दू अखबार जदीद मरकज के संस्थापक संपादक हिसाम सिद्दिकी को भी शामिल किया गया है। शीतल पी सिंह और प्रशांत टंडन ज्यूरी के क्रमशः वर्किंग चेयरमैन और वाइस चेयरमैन हैं।
ज्यूरी निर्णय 2020
ज्यूरी ने उस बरस 15 अगस्त को जो पुरस्कार घोषित किये वे निम्नवत हैं:
1) फोटो कैटेगरी
1.पेड़ के पत्तों का मास्क
फोटोग्राफर: श्रीमती अंजुमन आरा बेगम (असम)
2) कार्टून केटेगरी
संयुक्त विजेता
1.एपिडेमिक – इंफोमेडिक कार्टूनिस्ट: गोकुला वरदाराजन (सोशल मीडिया)
2. पीएमकेयर फंड पर कार्टून : रामबाबू मार्फत सत्यम वर्मा (ज्यूरी सदस्य) मज़दूर बिगुल एवं सोशल मीडिया में प्रकाशित
3) ग्राफिक्स केटेगरी
1.भगवान राम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्कूल ले जाते
कलाकार: अज्ञात। केरल से सांसद शशि थरूर के एक ट्वीट के साथ लगा ये ग्राफिक इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा के ट्वीट के जवाब में सामने आया ,जिसके साथ लगे ग्राफिक में आकार में अपेक्षाकृत बहुत बड़े दर्शाये मोदी जी, भगवान राम को बाल्यावस्था में मंदिर ले जा रहे हैं।
4) सोशल मीडिया टेक्स्ट केटेगरी
संयुक्त विजेता
1.गिरीश मालवीय (इंदौर), कोरोना कोविड 19 महामारी और अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स एवं संयुक्त राष्ट्र से सम्बद्ध विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ) के कथित गठजोड़ पर।
2. बादल सरोज, संपादक, लोक जतन एवं अखिल भारतीय किसान सभा, नेता, सोशल मीडिया पोस्ट ‘ दुनिया डरती है कोरोना से और कोरोना डरता है साबुन से ‘
5) प्रिंट मीडिया केटेगरी संयुक्त विजेता
1.सुजाता आनंदन (मुंबई, नेशनल हेराल्ड) एंटी-मलेरियल दवा निर्माता भारतीय कंपनी सिप्ला (मुंबई) पर रिपोर्ट 2. अज्ञात अनुवादक, उसी रिपोर्ट का सोशल मीडिया पर हिंदी अनुवाद
6) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया केटेगरी
यूट्यूबर – सैयद यावर हसन
7) लड़कियों महिलाओं के लिए विशेष कैटेगरी
1.आइसी टंडन (उम्र 8 साल) कानपुर मार्फत अनिता मिश्र
नागरिक संशोधन अधिनियम के खिलाफ मीडिया कैंपेन के समर्थन में फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म ‘ हम देखेंगे ‘ पर भरतनाट्यम् नृत्य के लिए
लिंक https://youtu.be/HMpOnCxPigs
उस बरस घोषित सभी पुरस्कार 14 अगस्त 2021 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया , नई दिल्ली में अपराहन आयोजित गए समारोह में प्रदान किये गए। समारोह में पीपुल्स मिशन के दिवंगत चेयरमैन उपेंद्र प्रसाद सिंह के सुपुत्र एवं अभियंता और अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध छात्र , अंशुमन द्वारा कोरोना कोविड महामारी से उत्पन्न परिस्थिति के बारे में लिखित अंग्रेजी पुस्तक का सीपीएम के नेता और उसके साप्ताहिक मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी के संपादक प्रकाश करात ने विमोचन किया।
इसी समारोह में आदि संपादक सुरेश सलिल को पीपुल्स मिशन द्वारा नवस्थापित “क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान “का विजेता घोषित किया गया. इस वर्ष प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में उनका सार्वजनिक अभिनंदन भी किया गया।
वर्ष 2022 के समारोह में भी सभी सेक्युलर लोकतांत्रिक नागरिक सादर आमंत्रित हैं।
स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा शिव वर्मा 9 फरवरी 1904 :10 जनवरी 1 997
हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम के बहादुर लड़ाकों को साम्राज्यवादी ब्रिटिश हुक्मरानी फांसी या फिर काला पानी की सज़ा देती थी। काला पानी के सजा़याफ़्ता संरामियों को पोर्ट ब्लेयर के सेलुलर जेल में भेज दिया जाता था जो यह भारतीय समुद्र तट से एक हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा दूर था।काला पानी की सजा पाने वाले 585 संग्रामियों में से जीवित लौटे एकमात्र और योद्धा कामरेड शिव वर्मा थे। वह उत्तर प्रदेश के हरदोई ज़िले के खतेली गांव के पैदाइशी थे। वह 17 वर्ष की उम्र में ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। वह आंदोलन वापस ले लिया गया तो शिव वर्मा आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर के डीएवी कॉलेज पहुँच गए। उनकी कॉलेज के लाल बंगला हॉस्टल में जनवरी 1927 के किसी दिन जयदेव कपूर और भगत सिंह से पहली भेंट हुई थी।भगत सिंह का कानपुर पहले से आना-जाना होता था। वहां वे गणेश शंकर विद्यार्थी के अतिथि और सहकर्मी बनकर रहते थे। वह उनके अख़बार प्रताप में बलवंत नाम से लिखते भी थे। गणेश शंकर विद्यार्थी का भगत सिंह और प्रेमचंद दोनों से मधुर संबंध था।
भगत सिंह,सुखदेव,भगवतीचरण वोहरा,यशपाल आदि ने 1926 में लाहौर में नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। भगत सिंह उसके देशव्यापी विस्तार के लिए भाग दौड़ किया करते थे। शिव वर्मा से उनका मिलना उसकी ही कड़ी थी। दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला क़िले के गुप्त खंडहरों में 8 और 9 सितंबर 1928 को उनकी विस्तारित बैठक हो सकी। उस बैठक में देश के विभिन्न हिस्सों से छोटे छोटे समूह से जुड़े क्रांतिकारी जमा हुए। उन लोगों ने नौजवान भारत सभा का नाम सर्वसम्मति से बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन यानि हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ कर लिया। संगठन के नाम रूप नीति,उपदेश और संविधान में भी फेरबदल किया गया।
चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, सुखदेव,फनींद्र घोष, कुंदनलाल, विजय कुमार सिन्हा और शिव वर्मा को लेकर सात सदस्यीय केंद्रीय कमेटी का गठन किया। चंद्रशेखर आज़ाद उसके प्रथम निर्वाचित सेनापति बनाए गए। भगत सिंह को प्रचार-प्रसार और विजय कुमार सिन्हा को अंतर्प्रांतीय संपर्क का कार्यभार दिया गया था। शिव वर्मा केंद्रीय कमेटी की ओर से उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) के संगठनकर्ता भी चुने गए थे। बैठक में जयदेव कपूर,सुरेंद्र नाथ पांडे,ब्रह्मदत्त मिश्र,मनमोहन बनर्जी और अन्य कई क्रांतिकारी भी शामिल हुए।संगठन में सभी एक दूसरे को उर्फी़ यानि क्षदम नाम से पुकारते थे। जैसे भगत सिंह रंजीत और शिव वर्मा प्रभात नाम से पुकारे जाते थे।अगले ही महीने 30 अक्टूबर 1928 को जॉन साइमन के नेतृत्व में 7 ब्रिटिश सांसदों का समूह कथित रूप से संवैधानिक सुधारों की जांच के लिए लाहौर आया था। भारतीयों ने एकतरफ़ा और पक्षपात पूर्ण ढंग से बनाये गये इस कमीशन के बहिष्कार के लिए ‘गो बैक साइमन’ के नारे के साथ,उन्हें काला झंडा दिखाया। इससे उनके स्थानीय अधिकारी बौखला गए। लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्स ए. स्कॉट ने उस विरोध प्रदर्शन के दमन के लिए लाठीचार्ज का आदेश दे दिया जिससे बड़ी संख्या में निहत्थे लोग घायल हो गए। विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पंजाब केसरी लाला लाजपत राय , लाहौर के एएसपी जे.पी. सांडर्स के प्रहार से बुरी तरह से चोटिल हो गए। 19 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। लाला जी की हत्या से देशवासियों में रोष की लहर दौड़ गई। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन ने लाला लाजपत राय से अपनी मतभिन्नता के बावजूद लोगों के गुस्से को आवाज देने का संकल्प लिया। 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में राजगुरु और फिर भगत सिंह ने मौक़ा मिलते ही उस पर गोलियां चला दी जिनसे सांडर्स मारा गया। पर स्कॉट बच निकला जो तत्कालीन वायसराय के पीए का होने वाला दामाद था। इससे ब्रिटिश हुकूमत एक्शन में आ गई।
यह वाकया लाहौर षड्यंत्र केस-2 के नाम से इतिहास में दर्ज़ है। उसी कालखंड में संगठन के फ़ैसले के तहत सहारनपुर में बम बनाने का काम शुरू किया गया था। फरोहयान मोहल्ले में किराए के दो मंज़िला मकान में डॉक्टर गया प्रसाद,जयदेव कपूर और शिव वर्मा ने एक डिस्पेंसरी खोली। गया प्रसाद डॉक्टर के बतौर नीचे, काम करते थे। उनके साथ जयदेव कपूर और शिव वर्मा कंपाउंडर के रूप में काम करते थे। ऊपरी तल्ले पर बम बनाया जाता था। वे ब्रिटिश पुलिस को मुख़बिरों द्वारा दी गई सुराग पर 13 मई 1929 को गिरफ़्तार कर लिए गए।जेल में अमानवीय व्यवस्था के खिलाफ और पाठ्य सामग्री की उपलब्धता की मांग को लेकर शिव वर्मा और उनके साथियों ने कई दौर में अनशन और भूख हड़ताल की। अंततः जेल अफसरों को झुकना पड़ा था। 1946 में उन्हें रिहा कर दिया गया।
साम्यवादी विचारधारा से जुड़ाव होने के कारण शिव वर्मा को भारत की आज़ादी के बाद कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने 1967-71 की चौथी लोकसभा के लिए कानपुर से चुनाव लड़ा पर कामयाब नहीं हुए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सहकर्मी डॉ लक्ष्मी सहगल और भगत सिंह के साथी शिव वर्मा के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव के परिणाम लगभग एक जैसे रहे।
शिव वर्मा ने ‘नया सवेरा’, ‘लोक लहर‘ और ‘नया पथ’ पत्रिका का संपादन किया था। उन्होंने भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद,राजगुरु,सुखदेव, महावीर सिंह,यतींद्र नाथ दास आदि आदि क्रांतिकारी शहीदों के प्रामाणिक संस्मृतियाँ लिखीं और भगत सिंह की रचनाओं का दस्तावेज़ी संकलन भी तैयार किया। उन्होंने सरल भाषा में पांच खंडों में मार्क्सवाद परिचय माला भी लिखी। शिव वर्मा ने लखनऊ में शहीद स्मारक एवं स्वतंत्रता संग्राम शोध केंद्र की स्थापना की थी और क्रांतिकारियों के लेख,तस्वीर आदि एकत्र करने देश-विदेश की यात्राएं कीं।
गणेश शंकर विद्यार्थी 26 अक्टूबर 1890 : 25 मार्च 1931-
गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम सर्वाधिक निर्भीक और जनप्रिय पत्रकारों में शामिल है। वह स्वाधीनता आंदोलन के सच्चे सेनानी थे और पत्रकारिता उनके लिए मिशन था। उन्होंने 9 नवंबर 1913 को कानपुर से हिंदी साप्ताहिक ‘प्रताप’ का प्रकाशन आरंभ किया जिसने राष्ट्रीय चेतना बुलंद की। प्रताप का दफ़्तर पत्रकारों, साहित्यकारों और युवा क्रांतिकारियों का गढ़ बन गया। देश और समाज के प्रति अपनी निष्ठा और जुझारूपन का मूल्य विद्यार्थी जी को जुर्माना, मानहानि, जेल यात्राओं और अंतत: अपने बलिदान से चुकाना पड़ा। विद्यार्थी जी के लिए पत्रकारिता सामाजिक राजनीतिक सरोकारों की अभिव्यक्ति का सार्थक माध्यम बनी। उन्होंने विष्णुदत्त शुक्ल की 1930 में प्रकाशित पुस्तक ‘पत्रकार कला’ की भूमिका में लिखा था कि बहुतेरे समाचारपत्र सर्वसाधारण के कल्याण के लिए नहीं रहे। उन्होंने लिखा कि अधिकतर बड़े समाचारपत्र धनी लोगों के हैं और पत्रकार भी दायित्व विमुखता और धन लिप्सा के शिकार हो गए है। उन्होंने कामना की थी कि भारत के किसी भी पत्रकार को पैसे का मोह पत्रकारिता के पवित्र आदर्श से बहकने न दे।
विद्यार्थी जी स्वाधीन भारत के स्वप्न के साकार होने में सांप्रदायिकता और जाति-विषमता को बड़ी बाधा मानते थे। उनका मानना था कुछ लोग निहित स्वार्थों के लिए देश की आम जनता को धर्म के नाम पर विभाजित कर रहे हैं। उन्होंने 27 अक्तूबर 1924 को प्रकाशित आलेख ‘धर्म की आड़’ में लिखा कि ‘धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं।’ उन्होंने 1925 के कौंसिल चुनाव के दौरान बनारसीदास चतुर्वेदी को भेजे पत्र में लिखा कि ‘मैं हिंदू-मुसलमानों के झगडे़ का मूल कारण इलेक्शन आदि को समझता हूँ और कौंसिल में जाने के बाद आदमी देश और जनता के काम का नहीं रहता।’
विद्यार्थी जी के बहुआयामी व्यक्तित्व का महत्त्वपूर्ण पक्ष यह था कि उन्होंने सामाजिक-राजनीतिक जीवन में अत्यधिक सक्रियता के बावजूद साहित्य और संस्कृति की परंपरा को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ा। उन्होंने भाषा की आजादी को देश की आजादी से ज्यादा अहम माना था। उनका लेखन सामाजिक-राजनीतिक विषयों तक ही सीमित नहीं था। वे वैचारिक और रचनात्मक लेखन करते रहे। गांधी, लेनिन, गोखले, राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय शिक्षा, संपत्तिवाद का विकास, युद्धोत्तर विश्व, आत्मोत्सर्ग, लोक जीवन और संस्कृति पर निबंध एवं आलेख, जेल जीवन के संस्मरण, ‘हाथी की फाँसी’ कहानी और विक्टर ह्यूगो के उपन्यासों का ‘आहुति’ और ‘बलिदान’ के नाम से उनके किये अनुवाद हैं। विद्यार्थी जी आजीवन सभी प्रकार के सत्ता प्रतिष्ठानों के विरुद्ध संघर्षरत रहे और अंतत: सांप्रदायिक ताक़तों से मोर्चा लेते समय हुई उनकी शहादत ने सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल कायम की। महात्मा गांधी ने विद्यार्थी जी की शहादत पर कहा था,‘ गणेशशंकर विद्यार्थी एक मूर्तिमान संस्था थे। उन्हें ऐसी मृत्यु मिली, जिस पर हम सबको स्पर्धा हो।’
आज अवसरवादी राजनीति, धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिकता, उग्र जातीयता और बाजारवादी संस्कृति हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को नष्ट करने का काम बड़े पैमाने पर कर रही है।आज की पीढ़ी विद्यार्थी जी के सोद्देश्य जीवन, निष्काम कर्मठता और भविष्य दृष्टि को अंतर्मन से जानने, समझने और आत्मसात करने का प्रयास करती है तो न केवल वर्तमान दौर की चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने में सफल हो सकती है बल्कि एक स्वस्थ जनतांत्रिक व्यवस्था, समता मूलक समाज और विकसित राष्ट्र के निर्माण में सार्थक पहल कर सकेगी।
विद्यार्थी का बलिदान दिवस
महान स्वतंत्रता सेनानी,सांप्रदायिक सद्भाव के लिए शहीद होने वाले ,भगतसिंह आदि क्रांतिकारियों के संरक्षक और हिंदी की विचारसंपन्न प्रतिबद्ध पत्रकारिता के जनक गणेशशंकर विद्यार्थी 25 मार्च 1931 को सांप्रदायिक दानवों के हाथों शहीद हुए थे। 1930 में आदर्श पत्रकारिता की रूपरेखा प्रस्तुत करने के साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय पत्रकारिता पर मंडरा रहे साम्राज्यवादी पूंजीवादी संकटों का पूर्वाभास भी कर लिया था। उन्होंने कहा था: “एक समय था इस देश में साधारण आदमी सर्वसाधारण के हितार्थ एक ऊंचा भाव लेकर पत्र निकालता था और उस पत्र को जीवनक्षेत्र में स्थान मिल जाया करता था ।आज वैसा नहीं हो सकता।आपके पास जबर्दस्त विचार हों और पैसा न हो और पैसे वालों का बल न हो तो आपके विचार आगे फैल न सकेंगे।आपका पत्र न चल सकेगा। इस देश में भी समाचारपत्रों का आधार धन हो रहा है ।धन से ही वे निकलते हैं और धन ही के आधार पर चलते हैं। और बडी वेदना के साथ कहना कड रहा है कि उनमें कम करने वाले बहुत से पत्रकार भी धन की ही अभ्यर्थना करते है । अभी यहां पूरा अंधकार नहीं हुआ है किंतु लक्षण वैसे ही हैं । कुछ ही समय पश्चात् यहां के समाचारपत्र भी मशीन के सहारे हो जाएंगे और उनमें काम करने वाले पत्रकार केवल मशीन के पुर्जे।व्यक्तित्व न रहेगा,सत्य और असत्य का अंतर न रहेगा।”
गणेशशंकर ‘विद्यार्थी’ का जन्म आश्विन शुक्ल 14, रविवार संवत 1947 (1890 ई.) को हुआ था।इनकी माता का नाम गोमती देवी था। पिता ग्वालियर रियासत में मुंगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के हेडमास्टर थे। वहीं विद्यार्थी जी का बाल्यकाल बीता तथा शिक्षा-दीक्षा हुई। विद्यारंभ उर्दू से हुआ और 1905 में भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास की। 1907 ई. में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में कानपुर से एंट्रेंस परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला कालेज में भर्ती हुए। उसी समय से पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और भारत में अंग्रेज़ी राज के यशस्वी लेखक पंडित सुन्दर लाल इलाहाबाद के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी के संपादन में सहयोग देने लगे। लगभग एक वर्ष कालेज में पढ़ने के बाद 1908 ई. में कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. मासिक की नौकरी की। लेकिन अंग्रेज अफसर से झगड़ा हो जाने के कारण उसे छोड़कर पृथ्वीनाथ हाई स्कूल, कानपुर में 1910 तक अध्यापकी की। इसी अवधि में सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य (उर्दू) तथा हितवार्ता (कलकत्ता) में समय समय पर लेख लिखने लगे।
भगत सिंह की फांसी के बाद देश में हड़तालों की तैयारी चल रही थी। ऐसी ही एक हड़ताल की तैयारी कानपुर में चल रही थी। लेकिन जल्द ही बंद और हड़ताल की तैयारी आक्रामक हो गई और कानपुर में हिंदू मुस्लिम दंगे में बदल गई। गणेश शंकर विद्यार्थी दंगाइयों को रोकने के लिए भीड़ में उतर गए। और एक दंगाई को रोकते हुए उनकी मौत हो गई। गणेश शंकर विद्यार्थी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी थे। वे संयुक्त प्रांत में नेहरू जी के नेतृत्व में काम करते थे। नेहरू जी ने कहा विद्यार्थी की मौत हमें यह बताती है कि अच्छे से अच्छे कारण के लिए की गई हिंसा पलट कर हमारे और आती है। कहां तो शहीद भगत सिंह की फांसी के विरोध में हड़ताल और बंद होना था और कहां उस में दंगा हो गया। और दंगा रोकते हुए विद्यार्थी जी शहीद हो गए।
गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत न सिर्फ हिंदू मुस्लिम एकता के संघर्ष की महान विरासत है बल्कि उन पत्रकारों के लिए एक ऊंचा आदर्श भी है जो कहते हैं कि पत्रकार को तटस्थ होना चाहिए। विद्यार्थी जी हमें बताते हैं की तटस्थता का मतलब जुल्म के खिलाफ चुप्पी साधना नहीं होता।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में हुआ था जो इन दिनों क्रिकेट मैचों के कारण ही ज्यादा जाना जाता है.कोटला दिल्ली सल्तनत के सुल्तान फिरोजशाह की आरामगाह थी। उन्होंने मगध के सम्राट अशोक के बनवाए स्तम्भ के धराशायी हो गए भाग को मखमल में लिपटा कर दिल्ली मंगा उसे कोटला में लगवा दिया था। वो अशोक स्तम्भ आज भी वहाँ स्थापित है. उस पर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण शब्दों को अंग्रेजो ने पढ़कर ऐतिहासिक तथ्य निकाले। उस अशोक स्तम्भ के तले खंडहरों में चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्लाह, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और भारत के कई क्रांतिकारियों ने एकजुट होकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी बनाई। इसका घोषित उद्देश्य हिंदुस्तान में ब्रिटिश हुक्मरानी के साम्राज्यवाद को खत्म कर समाजवादी क्रांति लाना था। भगतसिंह (28 सितम्बर 1907: 23 मार्च 1931) और उनके दो साथी ने दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली में जब इंकलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद का नाश के नारे लगाकर बम और पर्चे फेंके तब ब्रिटिश हुक्मरानी पब्लिक सेफ्टी एक्ट पास करने में लगी थी जो 2008 में बने अनलाफुल एक्टिविटीज (प्रीवेनशन ) अमेंडमेंट एक्ट यानि यूपीएलए की तरह था।वे नारे तब से आठ साल पहले 1917 में बोल्शेविकों के नेता व्लदिमिर इल्यिच उल्यानोव लेनिन (22 अप्रैल 1870 – 21 जनवरी 1924) की अगुवाई में रूस में हुई महान अक्तूबर क्रांति के नारों, लांग लिव रिवोल्यूशन और इम्पीरिलिज्म डाउन डाउन से प्रभावित थे।ब्रिटिश हुक्मरानी की अदालत ने इस जुर्म में सरदार भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को को फांसी की सजा सुनाई।जब उन्हें 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल की काल कोठरी से फांसी पर चढ़ाने ले जाया गया वह लेनिन की किताब का एक और पन्ना पढ़ रहे थे।
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन का गठन देश में ब्रिटिश हुक्मरानी के राज की सशस्त्र संघर्ष के जरिए समाप्ति और देश की आजादी के लिए अक्टूबर 1924 में क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चन्द्र चटर्जी, चंद्रशेखर आजाद और शचींद्रनाथ सान्याल आदि ने कानपुर में की थी। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रान्ति के जरिए औपनिवेशिक शासन समाप्त करने और भारत के संघीय गणराज्य की स्थापना करना था।काकोरी काण्ड के बाद जब इसके चार क्रान्तिकारियों को फाँसी दे दी गयी और सोलह अन्य को कैद की सजायें देकर जेल में डाल दिया गया तब इसके एक प्रमुख सदस्य के रूप में चन्द्रशेखर आज़ाद ने भगत सिंह, विजय कुमार सिन्हा, कुन्दन लाल गुप्त, भगवती चरण वोहरा, जयदेव कपूर और शिव वर्मा आदि से सम्पर्क कर नये दल का गठन किया। नए दल में पंजाब, संयुक्त प्रान्त,आगरा, अवध, राजपूताना, बिहार और उडीसा आदि अनेक प्रान्तों के क्रान्तिकारी शामिल थे।9 सितम्बर1928 की रात दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक करके भगत सिंह की भारत नौजवान सभा के सभी सदस्यों ने अपने संगठन का विलय हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में कर दिया। बाद में उसे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन का नया नाम दिया। इसका उद्देश्य समाजवादी राज्य की स्थापना था। बम का दर्शन नाम से प्रकाशित लघु पुस्तिका में क्रान्तिकारी आन्दोलन के बारे में दल की तरफ से विचार व्यक्त किये गये। दल के तीन विभाग थे : संगठन, प्रचार और सामरिक। संगठन का दायित्व विजय कुमार सिन्हा, प्रचार का दायित्व भगत सिंह और सामरिक दायित्व चन्द्रशेखर आजाद को सौंपा गया था। पहले दिसम्बर 1927 में राजेन्द्र लाहिडी, अशफाक उल्ला खाँ, राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ और रोशन सिंह समेत चार को एक साथ फाँसी उसके बाद नवम्बर 1928 में लाला लाजपत राय की पुलिस के लाठी-प्रहार से हुई मृत्यु ने आग में घी का काम किया। इस दल ने एक माह के अन्दर ही जेम्स स्कॉट को मारने की तैयारी की। लेकिन स्कॉट की जगह साण्डर्स मारा गया। भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु तीनों फरार हो गये। इतने में ही सेण्ट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ तो इन युवकों ने बहरी सरकार को अपना विरोध दर्ज कराने की गर्ज से संसद में ही बम विस्फोट कर दिया। गिरफ्तारियाँ हुईं और क्रान्तिकारियों पर लाहौर षड्यन्त्र और असेम्बली बम काण्ड का मुकदमा चलाया गया। मार्च 1931 में सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह को लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई।