2014 में जीत कर सत्ता के शीर्ष पर पहुंची बीजेपी ने थोक के भाव से ओबीसी को राज्यसभा भेजा और अब दलित के बाद आदिवासी महिला को राष्ट्रपति पद के लिए आगे किया है।
भाजपा हमेशा से कांग्रेस से चार कदम आगे रहती है, लेकिन भाजपा अब तक जनेऊधारी नेताओं से मुक्त नहीं हो पाई है। कोई कांग्रेस वालों को समझाये कि भारत में ब्राह्मण के अलावा दूसरी जाति समुदाय के भी लोग रहते हैं। कांग्रेस का राष्ट्रीय से लेकर ब्लाक स्तर का ढांचा देख लिजिये, सिवाय ब्राह्मणों के शायद ही कोई मिले। मजे की बात ये है कि कांग्रेस राज्यसभा भेजने से लेकर महासचिव बनाने और CWC मेंबर बनाने तक सिर्फ ब्राह्मणों को प्राथमिकता देती है पर वोट चाहिए दलित, ओबीसी और आदिवासियों का भी।
कांग्रेस को यह बात समझनी होगी की राजनीति की परम्परागत शैली अब बदल गयी है। अब वह दौर गया जब दलितों, आदिवासियों और पिछङो का वोट लेकर उनको नाम मात्र का प्रतिनिधित्व थमा दिया जाता था। 1990 के बाद भारतीय राजनीति ने करवट बदली और जातियां धीरे धीरे मुख्यधारा की राजनीति में अपना स्पेस खोजने लगी। कांग्रेस इस परिवर्तन को महसूस नहीं कर पाई पर भाजपा ने ना केवल इस बदलाव को समझा अपितु छोटी बङी जातियों को प्रतिनिधित्व देकर इसको कायदे से भुनाया भी।
कुछ समय पहले ही राज्यसभा में आधे से ज्यादा ओबीसी नेताओं को भेजना और अब द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाना यह साबित करता है कि अगर कांग्रेस ने इन समुदायों को ठगना बंद नहीं किया तो आने वाले सौ वर्षों तक सत्ता में नहीं आ सकती है। बहुत से लोग अपना मत दे रहे हैं कि द्रोपदी मुर्मू रबर स्टाम्प हैं, सोचिये जब कांग्रेस को रबर स्टाम्प राष्ट्रपति बनाना था तो प्रतिभा पाटिल को बनाया और बीजेपी ने दलित-आदिवासी को। पहचान के संकट के जूझ रहा दलित-पिछङा और आदिवासी समाज इस प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व को गौरव की तरह सीने से चिपकाये घूमता है और भाजपा प्रतिनिधित्व देने के नाम पर वोट की फसल काटती है।
भाजपा से सांसद रहे कांग्रेस नेता उदित राज को कांग्रेस के एक कार्यक्रम में जमीन पर बैठे देखा गया। जबकि मंच पर ऐसे नेता कुर्सियों पर जमे हुए दिखे जिनका जमीनी आधार शिफर है।उदित राज की पहचान पार्टी और पद से इतर एक ऐसे नेता की है जिसपर आज भी देश के लाखों दलित-आदिवासी कर्मचारी विश्वास करते हैं। भाजपा ने इसी पहचान की बदौलत उदित राज को घर जाकर टिकट दिया था पर जिस पार्टी ने खुद को रसातल में भेजने का निश्चय कर लिया हो उसका कुछ नहीं हो सकता है।
बहरहाल, अगर कांग्रेस ने संगठन के स्तर पर ढांचे में सभी जातियों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया तो आने वाले सौ साल भाजपा इनको सत्ता के आसपास भी नहीं पहुंचने देगी ।
डॉ ओम सुधा
(लेखक, सोशल एक्टिविस्ट हैं दलित -आदिवासी अधिकारों के दिये संघर्षरत हैं )