भारत के प्रधानमन्त्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आला लीडर नरेंद्र मोदी की आठ बरस पुरानी सरकार के लिए जम्मू-कश्मीर में नागरिक हालात काबू से बाहर भी जा सकती है। देश के सबसे नए केंद्र शासित प्रदेश में स्थिति सैन्य रूप से नियंत्रण में है। लेकिन घाटी से आज कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नई दिल्ली में जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा,राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोवाल, केन्द्रीय खुफिया एजेंसी आरएडब्ल्यू यानि रॉ के प्रमुख सामंत गोयल आदि के साथ हाई लेवल मीटिंग शुरू हुई। इसकी सियासी वजह खबरिया टेलीविजन चैनलों के कैमरों और गोदी मीडिया की खबरों से नहीं समझी जा सकती है। पानी सिर पर आ गया है। पर मोदी जी उत्तर प्रदेश गए हुए हैं जहां उन्हे राष्ट्रपति रामनाथ कोविद के साथ एक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में भी भाग लेना है।
गृह मंत्री पद से अमित शाह के इस्तीफा की उठी मांग के कोरस में भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुब्रमणियम स्वामी का भी स्वर शामिल हो गया है। उनका ट्वीट मजेदार है, जिसमें तंज है। स्वामी जी मोदी सरकार की ही सिफारिश पर राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य है। लेकिन सदन की सदस्यता का छह बरस का उनका मौजूदा कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। मोदी सरकार ने उनके भावी राजनीतिक पुनर्वास का प्रबंध अभी तक नहीं किया है। ऐसे में स्वामी जी ने मोदी जी सलाह दे डाली है कि वह अमित शाह को गृह मंत्रालय से हटा खेल मंत्रालय की बागडोर सौंप दें। आगे क्या होगा ये मोदी जी शाह जी की युगल जोड़ी ही जाने।
इस संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत का अभी तक का मौन आगे चलकर वाचाल भी हो सकता जिनका वाराणसी का ज्ञानव्यापी मस्जिद विवाद बढ़ने के बीच हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं ढूँढने के कथन ने गर्म माहौल को और सरगर्म कर दिया है। वाराणसी मोदी जी का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। उनके और अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में चुनाव पहले से सिर पर है।
फारुख अब्दुल्ला
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला ने वहाँ विधि व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति के लिए मोदी सरकार की कसकर आलोचना की है। उनके शब्द हैं , ‘मोदी जी जम्मू कश्मीर के लोगों का दिल जबतक नहीं जीतते मुझे चैन नहीं मिलेगा। कोई रोज ऐसा नहीं जब लोगों की हत्या नहीं होती हो। बड़ी तादाद में सेना के जवान तैनात है। सैन्य बल से लोगों के दिल हमेशा नहीं जीते जा सकते है। उन्होंने 29 मई 2022 को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती उत्तर प्रदेश के नेता आजम खान से मिलने के बाद कहा प्रेम की दरकार है। केंद्र सरकार को यह समझना होगा।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी यानि सीपीआई (एम) के नेता और भंग विधानसभा के सदस्य मोहम्मद युसूफ तारिगामी ने हाल में कुलगाम के गोपालपुरा इलाके में एक शिक्षिका की ह्त्या पर कहा ये नागरिको की हत्याओं की लम्बे अरसे से चल रहे सिलसिले में एक और वारदात का इजाफा है। इन वारदातों का अंत होता नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने सरकार से राजकीय कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित कर उन्हें निरापद स्थानों पर तैनात करने और आवास देने की मांग की है।
आतंकी
कश्मीर जोन के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल विजय कुमार के के मुताबिक प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के 26 आतंकी पिछले पाँच माह में मारे गए है। कुछ ही दिन पहले लश्कर-ए-तैयबा के तीन सशस्त्र आतंकी घाटी के कुपवारा जिला में सुरक्षा बालों के साथ मुठभेड़ में मारे गए। इस बीच, सुरक्षा बालों द्वारा शांतिप्रिय कश्मीरी पंडितों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़ने की खबरे मिली है।
कश्मीरी पंडित
कश्मीर अल्पसंख्यक फोरम ने कुलगाम में बैंक प्रबंधक की हत्या के बाद शुक्रवार से घाटी से सामूहिक पलायन करने का ये कह कर फैसला किया कि सरकार ने उनके लिए कोई और विकल्प नहीं छोड़ा है। दो दिन पहले कश्मीर में हुई अध्यापिका रजनी बाला की हत्या के बाद आतंकियों ने मोहनपोरा में इलाकी देहाती बैंक के बैंक प्रबंधक विजय कुमार की उनके कार्यालय में घुस कर हत्या कर दी। वह राजस्थान में हनुमानगढ़ जिला के भगवान गांव के थे। उनका चार माह पहले विवाह हुआ था। वह एक महीने पहले ही अपनी पत्नी को साथ लाए थे। कश्मीरी पंडितों ने आपात बैठक कर सभी से नवयुग टनल के पास जमा होने कहा है। कश्मीर संभाग के कुलागम, बांदीपोरा, अनंतनाग, बारामूला, शौपिया सहित अन्य जिलों में जम्मू संभाग के हजारों कर्मचारी कार्यरत हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में विस्थापित कश्मीरी पंडितों में से करीब 400 का नाम घाटी की मतदाता सूची में दर्ज था। निर्वाचन आयोग ने दिल्ली में बसे कश्मीरी पंडितों के के लिए विशेष प्रबंध किये जिसके लिए उन्हें माइग्रेंट फॉर्म दाखिल करना पड़ा। कुछ ही कश्मीरी पंडितों ने इस तरह अपना नाम दर्ज कराया।
अधिकतर ने दिल्ली और अन्यत्र बस जाने के बावजूद भावनात्मक कारणों से कश्मीर के ही वोटर लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा रखा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी खालिद जहांगीर ने दिल्ली में बसे कश्मीरी पंडितों के बीच चुनाव प्रचार किया था। खालिद एक अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के पत्रकार रह चुके हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की जम्मू में 2014 में हुई रैली में भाजपा में शामिल किया गया था। उनके मुताबिक विस्थापित कश्मीरी पंडितों में से करीब 400 का नाम अभी भी घाटी की मतदाता सूची में दर्ज है।
भाजपा ने 2019 के चुनाव घोषणापत्र में विस्थापित कश्मीरी पंडितों की पुनर्वास योजना शुरू करने का वादा किया था जिसका उसका कोई खास असर नजर नहीं आता है। कश्मीरी पंडित तादाद में कम ही हैं।आम धारणा है भाजपा को उनके वोटों की चिंता नहीं है। भाजपा के लिए कश्मीरी पंडित का नाम शेष भारत में सिर्फ हिन्दुओं के ध्रुवीकरण में काम आता है।जनसंघ और उसके अवतार भाजपा ने कश्मीरी पंडित के नाम पर सियासत ही की है। कश्मीरी पंडित स्वाभाव से आम तौर पर शांत होते हैं। कश्मीर में अभी करीब पांच हजार पंडित होने का अनुमान है। 1990 में राज्यपाल जगमोहन ने कश्मीरी पंडितों को निकालकर जम्मू भेजे थे तो वहाँ के डोगरा लोगों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किए थे। उनके बाद के राज्यपाल गैरी सक्सेना ने स्थिति कुछ हद तक संभाल कर डोगरों को विश्वास दिलाया कि उनके रोजगार और संस्कृति के हित सुरक्षित रखे जाएंगे। उन्होंने कश्मीरी पंडितों में भी सुरक्षा का भावना भरी थी। मोदी जी ने काल्पनिक फिल्म कश्मीर फाइल की तारीफ की है पर उन्होंने कश्मीरी पंडित की वास्तविक त्रासदी पर मौन साधे रखा है। कश्मीरी पंडित और मुसलमान के बीच आपसी सद्भाव रहा है। उनका खान-पान, परिधान और भाषा एक समान है। उस मनगढ़ंत फिल्म ने कश्मीर को बदनाम किया। मोदी जी ने खुद और भाजपा नेताओं ने इस नफरती फिल्म को प्रोमोट किया।
कश्मीर – दिल्ली दूरी के जुमले
मोदी जी ने कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 26 जून 1975 को लागू आंतरिक आपातकाल की 43वीं बरसी के दो दिन पहले नई दिल्ली में प्रधानमंत्री के 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित राजकीय आवास पर जम्मू कश्मीर के दलों के 14 बड़े नेताओं की बैठक बुलाई। उन्होंने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की.प्रचारित किया गया मोदी जी ने कह दिया वह दिल्ली और दिल की दूरी दूर करना चाहते है। इस सर्वदलीय बैठक में उन्होंने अपने मन की बात कह दी कि राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं पर सभी को राष्ट्रीय हित में काम करना चाहिए ताकि जम्मू-कश्मीर के लोगों को फायदा हो। मोदी जी ने दोपहर बाद 4 घंटे तक चली इस बैठक में भावुकता में कहा वह दिल्ली की दूरी और दिल की दूरी भी मिटाना चाहते हैं। उन्होंने बैठक के बाद ट्वीट में लिखा जम्मू कश्मीर में निर्वाचित सरकार के गठन से पहले परिसीमन कराया जाएगा।
राज्यसभा से रिटायर होने तक सदन में विपक्ष और कांग्रेस के नेता रहे गुलाम नबी आजाद भी इस बैठक में पधारे थे। उन्होंने कहा कि बैठक में जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, विधानसभा चुनाव, पूर्ण राज्य के दर्जा की बहाली, कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास और डोमिसाइल आदि मुद्दों पर खुले मन से चर्चा की गई. केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट में लिखा बैठक सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। इसमें कश्मीर को राज्य का दर्जा दुबारा देने का जिक्र किया गया, जो 5 अगस्त 2019 को धारा 370 निरस्त करने के साथ ही खत्म कर दिया गया था. बैठक में राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों, फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत 14 नेताओं को आमंत्रित किया गया था। लगभग सभी 24 घंटे पहले ही दिल्ली पहुंच गए थे। आधिकारिक तौर पर कहा गया बैठक के लिए कोई एजेंडा तय नहीं था। सीपीएम नेता मोहम्मद युसूफ तारिगामी ने कहा, “ हमें कोई एजेंडा नहीं दिया गया। हम यह जानने बैठक में गए कि मोदी सरकार की नई पेशकश क्या है” कामरेड तारिगामी खुद कई बार आतंकियों के घातक हमलों के निशाना रहे हैं। वह गुपकार गठबंधन के प्रवक्ता भी है। बहरहाल , उस बैठक में भाजपा के निर्मल सिंह , पीपुल कांफ्रेंस के मुजफ्फर बेग और सज्जाद लोन, पैंथर्स पार्टी के भीम सिंह को भी बुलाया गया था। बैठक में सरकार की तरफ से मोदी जी के साथ केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, जम्मू-कश्मीर के नए लेफ्टिनेंट गवर्नर यानि उप राज्यपाल मनोज सिन्हा, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और केन्द्रीय गृहसचिव अजय भल्ला भी थे। तब नागरिकों के बीच ये सवाल उठे थे कि मोदी जी का दिल अचानक क्यों पसीज गया जो वे इस बैठक में दिल्ली और दिल की दूरी दूर करने के जुमले कहने लगे?
मनमोहन सिंह
जम्मू कश्मीर में 2008 के विधानसभा चुनाव के समय मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कांग्रेस के थे। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि कश्मीर के लोकतांत्रिक चुनाव में अधिक से अधिक लोगों की हिस्सेदारी जरूरी है। कौन जीता , कौन हारा इसका ज्यादा महत्व नहीं है। उस चुनाव में कांग्रेस और पीडीपी भी हारी थी। पीडीपी की स्थापना 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियों के वाम मोर्चा के समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चा की बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में गृहमंत्री रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बाद में की थी।
लाइन ऑफ कंट्रोल
भारत के एक सैन्य अधिकारी के मुताबिक पाकिस्तानी सीमा पर लाइन ऑफ कंट्रोल के पास अमेरिका हथियार, नाइट विज़न उपकरण आदि मिले हैं जो अफगानिस्तान में छोड़े दिए गए थे। जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी), 19 इन्फैंट्री डिवीजन,मेजर जनरल अजय चांदपुरिया ने दिप्रिंट को इंटरव्यू में कहा अफगानभाषी लोगों के पाक-अधिकृत कश्मीर में पहुंचने की ख़बरें मिली है। उनके मुताबिक सैकड़ों अफगानी सिम कार्ड्स लाइन ऑफ कंट्रोल के इलाक़ों में सक्रिय थे। ऐसे कई अफगान-भाषी लोगों के पीओके में पहुंचने की ख़बरें हैं जो अफगानिस्तान में लड़े हैं। मोबाइल फोन के सैकड़ों अफगानी सिम कार्ड्स एलओसी के निकटवर्त्ती इलाक़ों में सक्रिय हैं। आशंका है वे घुसपैठ की कोशिश कर सकते हैं। उनके मुताबिक भारतीय सेना के पास ख़ुफिया जानकारी है कि कारीब एक सौ आतंकवादी लॉन्च पैड्स में मौजूद हैं जो उनकी फॉरमेशन की ओर डैगर्स डिवीज़न कहलाने वाले भाग में है।
बहरहाल , कश्मीर में विद्यमान भारी राजनीतिक संकट के साथ सीमा पर अफगानिस्तान आदि के भी विदेशी आतंकवादियों की सक्रियता बड़े खतरनाक सिग्नल दे रही है। वे घातक हथियारों और आरडीएक्स आदि कर टनों विस्फोटकों से लैस है। इनकी खरीद के लिए उनके पास टनों अफीम और मौरफीन पाउडर है। क्या पता किसी फिदाईं आतंकवादी के हाथ न्यूक्लियर बम विस्फोट करने वाले यूरेनियम आइसोटोप हाथ लग जाए।
( सीपी नाम से चर्चित पत्रकार,यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से दिसंबर 2017 में रिटायर होने के बाद बिहार के अपने गांव में खेतीबाडी करने, स्कूल चलाने के अलावा पुस्तक लेखन और स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं )