विधानसभा चुनाव के लिहाज से अगला साल बहुत महत्वपूर्ण है। अगले साल यानी 2022 की शुरुआत (फरवरी-मार्च ) में ही राज्य विधान सभाओं के चुनाव का सिलसिला शुरू हो जाएगा और यह सिलसिला साल के आखिरी दिसंबर तक जारी रहेगा। अगले साल देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
पूरे साल तीन चरणों में संपन्न होने वाले इन चुनाव में पहले चरण के चुनाव फरवरी – मार्च के महीने में उत्तर प्रदेश , उत्तराखण्ड , पंजाब गोवा और मणिपुर राज्यों की विधान सभा सीटों का पार्टी के हिसाब से फैसला करेंगे। दूसरे चरण में कर्नाटक और हिमाचल विधानसभा के चुनाव संपन्न होंगे और तीसरे चरण में दिसम्बर के महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात विधानसभा का चुनाव होना है।
विधानसभा की सीट संख्या, राज्य की आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश ही है। यह राज्य राजनीतिक दृष्टि से भी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस राज्य की ही एक वाराणसी संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व देश की संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं। इसके अलावा केंद्र और उत्तर प्रदेश समेत अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा के कोर हिंदुत्व मुद्दे का केंद्र भी इसी राज्य का एक शहर अयोध्या है।इसी अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाने के लिए कई दशक से राजनीतिक संघर्ष भी किया जा रहा था। अदालती स्वीकृति के बाद मंदिर निर्माण प्रगति पर है लिहाजा सत्तारूढ़ भाजपा इस मुद्दे को चुनाव के केंद्र में रखा कर एक बार फिर सत्ता में वापसी की उम्मीद कर ही सकती है बावजूद इसके कि साल 2014, 2017, 2019 और 2020 के मुकाबले अगले चुनाव में भाजपा को जनता की सत्ता विरोधी नाराजगी का कहीं अधिक तेजी से सामना करना पड़ सकता है। अतीत की तुलना में भाजपा का ग्राफ भी काफी नीचे उतरा है और यह स्थिति कमोबेश पूरे भारत में बनी है। जिन राज्यों में अगले साल विधानसभाओं के चुनाव होने हैं उन सभी में भाजपा की स्थिति पहले जैसी मजबूत नहीं रह गई है, यह बात धीमे स्वर में भाजपा के नेता और कार्यकर्ता भी स्वीकार करते हैं लेकिन उनको ऐसा लगता है की पार्टी नेताओं का ग्राफ नीचे जाने के बावजूद संगठनात्मक स्तर पर पार्टी की मजबूत स्थिति बने रहने की वजह से विधानसभा चुनाव में पार्टी नदी पार कर लेगी।
अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनाव एक तरह से हैं तो मिनी आम चुनाव ही लेकिन चुनाव के मुद्दे सभी जगह अलग – अलग हैं। कोई पार्टी सभी राज्यों में किसी एक मुद्दे को लेकर चुनाव का सामना करने की स्थिति में नहीं है। सत्तारूढ़ दल को आठ – नौ महीने से चल रहे किसान आन्दोलन की नाराजगी का पंजाब के साथ ही पंजाब और हरियाणा से लगे उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में भी नुक्सान उठाना ही पड़ेगा। यह नुकसान कितना होगा यह तो वक़्त ही बतायेगा लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है किकिसान आन्दोलन ने सत्तारूढ़ पार्टी की पेशानी में बल जरूर डाल दिए हैं।
गनीमत है कि अगले साल हरियाणा विधानसभा के चुनाव नहीं होने हैं अगर ऐसा होता तो यह राज्य तो उसके हाथ से निकल ही गया होता। पंजाब में किसान आंदोलन के चलते भाजपा की हालत खराब है। पंजाब में भाजपा का वैसे भी कोई आधार नहीं है इस राज्य में भाजपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन कर के ही विधानसभा और संसद में अपने प्रतिनिधि भेजने में सफलता हासिल की है। इस बार अकाली दल किसान आन्दोलन की आड़ में भाजपा से अलग हो गया है।
अकाली दल इस बार बसपा का साथ लेकर विधानसभा चुनाव में उतरेगा। इस परिस्थिति से निपटने के लिए विकल्प के रूप में भाजपा ने कांग्रेस बागी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ मिल कर चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। इस बार दिल्ली की तर्ज पर आम आदमी पार्टी ने भी अगले साल होने वाले सभी राज्य विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारने का मन बना लिया है और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हर राज्य का दौरा कर वहाँ के लोगों को मुफ्त का बिजली – पानी देने की घोषणा भी करने लगे हैं। वो अपने इस मकसद में कितने कामयाब होंगे इसका तो पता नहीं लेकिन चुनाव वाले हर राज्य में कांग्रेस के वोट काटने का इंतजाम जरूर कर देंगे , कांग्रेस और आप का वोट बैंक एक ही माना जाता है लिहाजा आप को मिलने वाला हर वोट कांग्रेस का नुकसान ही होगा इसीलिए प्रकारांतर से यह भी कहा जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में आप की मौजूदगी भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगी। इसी क्रम में आप को भाजपा की टीम ही माना जा रहा है।
अगले साल पहले चरण में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से गोवा और मणिपुर तो विशेष चर्चा में अभी नहीं हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब के साथ ही उत्तराखंड राज्य अपनी आबादी और क्षेत्रफल के साइज़ की तुलना में हिसाब से कई गुना अधिक चर्चा में है। इसकी एक वजह इसका देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का पड़ोसी होना भी है और दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ ही पंजाब के चुनाव भी होने हैं और उत्तराखण्ड। कांग्रेस के नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पंजाब मामलों के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। पिछले कई महीनों से नवजोत सिंह सिद्धू बनाम अमरिंदर सिंह का जो विवाद पंजाब कांग्रेस के नेताओं में चल रहा था उसे सुलझाने में हरीश रावत की भी निर्णायक भूमिका रही है।
उधर उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के साथ ही राज्य में मुख्या विपक्षी दल की भूमिका निभाने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच इस चुनाव में मुख्य मुकाबला होना है। लेकिन आप जैसे दलों की मौजूदगी से कांग्रेस का नुक्सान और बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही थी। लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने पिछले कई महीनों से राजनीतिक मंच पर अपनी धारदार उपस्थिति से राज्य के चुनावी माहौल को बदलने की मजबूत कोशिश भी की है। जिस कांग्रेस को अभी तीन – चार महीने पहले तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में चौथे और पांचवे नम्बर की पार्टी माना जा रहा था उसे अब दूसरे या तीसरे नम्बर की पार्टी माना जाने लगा है। हाल ही में प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के 40 फीसदी टिकट महिलाओं को दिए जाने की घोषणा को भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। प्रियंका गांधी ने लखीमपुर काण्ड में भी प्रभावित पक्ष के साथ बने रहने का सन्देश देकर भी पार्टी की छवि मजबूत की है। चुनाव का नतीजा क्या होगा इस पर अभी से दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन भाजपा शासित राज्यों में मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस की स्थिति पहले से कहीं बेहतर होगी इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता।