कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की वो याचिका खारिज कर दी, जिसमें मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि घोटाले मामले में कथित अनियमितताओं को लेकर उनके खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल की मंजूरी की वैधता को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल “असाधारण परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं”, साथ ही अदला ने यह भी कहा कि राज्यपाल का आदेश “विवेकहीनता” से ग्रस्त नहीं है।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सिद्धारमैया की याचिका खारिज करते हुए कहा, “याचिका में बताए गए तथ्यों की निस्संदेह जांच की आवश्यकता है। इस तथ्य के बावजूद कि इन सभी कृत्यों का लाभार्थी कोई बाहरी व्यक्ति नहीं बल्कि याचिकाकर्ता का परिवार है। याचिका खारिज की जाती है।”
जुलाई में तीन कार्यकर्ताओं – टीजे अब्राहम, स्नेहामाई कृष्णा और प्रदीप कुमार एसपी – द्वारा MUDA मामले में सिद्धारमैया के खिलाफ शिकायत किए जाने के बाद जांच की मंजूरी दी गई थी।
यह मामला उन आरोपों से जुड़ा है जिसमें कहा गया है कि सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को मैसूर के एक महंगे इलाके में मुआवजा देने के लिए भूखंड आवंटित किए गए थे, जिसकी संपत्ति का मूल्य उनकी उस जमीन की तुलना में अधिक था जिसे MUDA ने “अधिग्रहित” किया था। MUDA ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ जमीन के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे, जहां MUDA ने एक आवासीय लेआउट विकसित किया था।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 12 सितंबर को सिद्धारमैया की याचिका पर सुनवाई पूरी कर ली थी, जिसमें उन्होंने MUDA साइट आवंटन मामले में उनके खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल गहलोत की मंजूरी की वैधता को चुनौती दी थी। न्यायालय ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
19 अगस्त को सिद्धारमैया ने राज्यपाल के आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख किया। 16 अगस्त को राज्यपाल ने MUDA साइट आवंटन मामले में सिद्धारमैया के खिलाफ जांच की मंजूरी दे दी।
उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बीजेपी ने सीएम के इस्तीफे की मांग उठाई है। हालांकि, सरकार में शामिल मंत्रियों ने कहा कि सिद्धारमैया के इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता। फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, ‘यह कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर करारा तमाचा है. जो भी उन्होंने प्रश्न उठाए थे, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सबका उत्तर दे दिया है. सिद्धारमैया को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए। इस मामले की CBI द्वारा जांच कराई जानी चाहिए।’
भाजपा नेता शहजाद पूनावाला ने कहा, ‘अब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कोई नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं बनता कि वो मुख्यमंत्री बने रहें। आज कांग्रेस पार्टी ‘भ्रष्टाचार की दुकान’ बन चुकी है। आज भ्रष्टाचार की दुकान का पर्दाफाश हुआ है और सिद्धारमैया को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए।’
वहीं, भाजपा नेता सीटी रवि ने कहा, ‘कानून सबके लिए समान है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को इस्तीफा दे देना चाहिए। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एक भ्रष्ट नेता हैं।’
इस पर कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा, ‘मुख्यमंत्री द्वारा इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं है। उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। वह किसी घोटाले में शामिल नहीं हैं। यह भाजपा द्वारा एक राजनीतिक साजिश है। हम उनके साथ खड़े हैं, हम उनका समर्थन करते हैं। वह देश, पार्टी और राज्य के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।’
कर्नाटक के मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने कहा, “हमें कानून पर भरोसा है। हम इसका मुकाबला करेंगे। हम डबल बेंच, अन्य बेंच और सुप्रीम कोर्ट में (फैसले पर) सवाल उठाएंगे। हम मुख्यमंत्री के साथ खड़े हैं।”
MUDA मामला क्या है?
यह विवाद मैसूर में सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि के मुआवजे के रूप में 14 प्रीमियम साइटों के आवंटन के इर्द-गिर्द केंद्रित है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और भाजपा ने आरोप लगाया है कि यह आवंटन गैरकानूनी था और इसके परिणामस्वरूप राज्य के खजाने को काफी नुकसान हुआ।
जिस ज़मीन पर सवाल उठ रहे हैं, वह केसारे गांव में 3.16 एकड़ का एक टुकड़ा है, जो मूल रूप से किसी दूसरे पक्ष के स्वामित्व में था। कथित तौर पर इसे 2005 में सिद्धारमैया के साले मल्लिकार्जुन स्वामी देवराज को हस्तांतरित कर दिया गया था। हालांकि इसे 1998 में खरीदा गया था। कार्यकर्ताओं का दावा है कि मल्लिकार्जुन स्वामी ने सरकारी अधिकारियों की मदद से जाली दस्तावेजों का उपयोग करके 2004 में अवैध रूप से ज़मीन हासिल की।
2014 में, मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया के पिछले कार्यकाल के दौरान, उनकी पत्नी ने MUDA की 50:50 योजना के तहत मुआवज़े के लिए आवेदन किया था, जिसके तहत अविकसित अधिग्रहित भूमि खोने वालों को 50 प्रतिशत विकसित भूमि प्रदान की जाती है। मुआवज़ा मैसूर में एक प्रमुख स्थान पर 14 वैकल्पिक साइटों के रूप में दिया गया था।
सिद्धारमैया ने अपना बचाव करते हुए कहा कि जिस जमीन के लिए उनकी पत्नी को मुआवजा मिला था, वह 1998 में उनके भाई की ओर से उपहार में दी गई थी और यह मुआवजा भाजपा के शासन के दौरान दिया गया था, और उन्होंने आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया।
भाजपा ने सिद्धारमैया के इस्तीफे और मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग की है।