सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के खिलाफ 2018 के मनी लॉन्ड्रिंग मामले को खारिज कर दिया क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उनके खिलाफ कार्यवाही कानून और नियमों के अनुसार नहीं थी। यह मामला, जिसे न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की दो-न्यायाधीश पीठ ने खारिज कर दिया, अगस्त 2017 में दिल्ली में शिवकुमार के फ्लैटों में मिली बेहिसाब नकदी से जुड़ा है।
शिवकुमार ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक कथित मामले में उन्हें जारी किए गए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन को रद्द करने से इनकार करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के 2019 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने आदेश में कहा कि सर्वोच्च अदालत ये पहले ही तय कर चुकी है कि आईपीसी की धारा 120B यानी आपराधिक साजिश से संबंधित मुकदमों में ED PMLA को लागू कर सकती है या फिर नहीं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि उस फैसले पर पुनर्विचार अभी लंबित है।
बहरहाल जो भी हो आम चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कर्नाटक कांग्रेस के नंबर 2 और कई बार पार्टी के लिए दूसरे राज्यों में भी संकटमोचक बनकर उभरने वाले डीके शिवकुमार के लिए राहत लेकर आया है।
आयकर विभाग ने 2017 में शिवकुमार के कई ठिकानों पर छापेमारी की थी। अधिकारियों ने तब कहा था कि इस रेड में करीब 300 करोड़ रुपये कैश की बरामदगी हुई थी। डिप्टी सीएम शिवकुमार ने पलटवार करते हुए कहा था कि कैश का संबंध भाजपा से है।
छापेमारी के बाद ईडी ने भी उनके खिलाफ जांच शुरू की।
ईडी की जांच के आधार पर केंद्रीय जांच ब्यूरो ने कांग्रेस नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कर्नाटक सरकार से मंजूरी मांगी थी।
सितंबर 2019 में शिवकुमार को ईडी ने गिरफ्तार किया था और करीब एक हफ्ते बाद एफआईआर दर्ज की गई थी।
इसके बाद उन्होंने एफआईआर को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।