मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने महाराष्ट्र में सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदायों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन बंद कर दिया है और कहा है कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया है। पाटिल ने शिवसेना मुख्यमंत्री की प्रशंसा की और शिंदे के हाथों जूस पीकर शनिवार को अपना अनशन समाप्त कर दिया।
जरांगे पाटिल ने कहा, “मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अच्छा काम किया है। हमारा विरोध अब खत्म हो गया है। हमारा अनुरोध स्वीकार कर लिया गया है। हम उनका पत्र स्वीकार करेंगे।”
बाद में जरांगे पाटिल ने समर्थकों की भारी भीड़ के बीच मुख्यमंत्री शिंदे के हाथों से एक गिलास जूस पीकर अपना उपवास समाप्त किया। दोनों ने मिलकर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया।
पाटिल ने ये घोषणा तब की जब मराठा कोटा कार्यकर्ताओं का विरोध मार्च 20 जनवरी को जालना से शुरू हुआ और मुंबई शहर में प्रवेश करने ही वाला था।
महाराष्ट्र सरकार ने जातिगत आरक्षण पर एक सरकारी संकल्प (जीआर) जारी किया है और मंत्री दीपक केसरकर और मंगल प्रभात लोढ़ा ने मनोज जरांगे पाटिल को एक पत्र सौंपा है जिसमें कहा गया है कि उनकी सभी मांगें स्वीकार कर ली गई हैं।
महाराष्ट्र के मंत्री मंगल प्रभात ने भी पुष्टि की कि प्रदर्शनकारी शुक्रवार को ‘समाधान पर पहुंच गए’ थे।
मंत्री ने कहा, “मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में मराठा आरक्षण के लिए महाराष्ट्र में जो आंदोलन चल रहा था, वह आज एक समाधान पर पहुंच गया है… आज जो अध्यादेश पारित किया गया है, उसमें सभी समस्याओं का समाधान है।”
उन्होंने कहा, “मनोज जरांगे पाटिल ने घोषणा की है कि चूंकि समाधान मिल गया है, इसलिए विरोध जारी रखने की कोई जरूरत नहीं है। सीएम एकनाथ शिंदे जूस पिलाकर मनोज जरांगे पाटिल का अनशन खत्म कराएंगे। आंदोलन समाधान पर पहुंच गया है।”
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, जिन लोगों का डेटा बन गया है, उन्हें जाति प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया तुरंत शुरू हो जाएगी। सरकार आरक्षण आंदोलन के दौरान मराठों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने पर भी सहमत हो गई है।
इसके अलावा, मनोज जरांगे ने मराठवाड़ा में रिकॉर्ड खोजने के लिए शिंदे समिति की समय सीमा बढ़ाने की भी मांग की थी। इस मांग को सरकार ने भी मान लिया हैजरांगे मराठा आरक्षण पर सरकार के प्रस्ताव को फरवरी में आगामी सत्र में कानून में बदल दिया जाएगा।
मराठा समुदाय, जिसमें महाराष्ट्र की लगभग 33 प्रतिशत आबादी शामिल है, एक दशक से अधिक समय से शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है। 2019 में राज्य सरकार ने उन्हें 16 प्रतिशत आरक्षण दिया, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक था। उसके बाद साल 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत की सीमा का हवाला देते हुए 16 प्रतिशत कोटा को रद्द कर दिया। तब से, विभिन्न नेताओं और समूहों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू हो गए हैं, जो अक्सर हिंसक आंदोलन का कारण बनते हैं।