मणिपुर सरकार ने हिंसा प्रभावित राज्य में प्रतिकूल कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध को 23 नवंबर तक बढ़ा दिया है। सरकार को भेजे गए राज्य पुलिस प्रमुख की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी आशंका है कि कुछ असामाजिक तत्व हिंसा भड़काने वाली छवियों, नफरत भरे भाषण और नफरत भरे वीडियो संदेशों के प्रसारण के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं, जिसका “राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर” हो सकता है। मणिपुर में महीनों तक जातीय हिंसा देखी गई है।
पुलिस रिपोर्ट में सुरक्षा बलों पर घात लगाकर किए गए हमले, लापता लोगों को लेकर विरोध प्रदर्शन, राजमार्ग अवरोध और छात्र प्रदर्शन जैसी घटनाओं पर भी प्रकाश डाला गया है, और कहा गया है कि इससे असामाजिक तत्वों द्वारा स्थिति को खराब करने की आशंका बढ़ गई है।
इंटरनेट प्रतिबंध को बढ़ाने वाले आदेश में कहा गया है कि ऐसा कदम “गलत सूचना और झूठी अफवाहों के प्रसार को रोकने” और किसी भी गतिविधि को रोकने के लिए आवश्यक है जो “शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव में गंभीर गड़बड़ी पैदा कर सकता है”।
3 मई को दो आदिवासी समूहों- कुकी और मैतेई के बीच जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से लगभग 200 लोग मारे गए हैं। हिंसा में कई सौ लोग घायल हुए हैं, जो अभी भी कुछ स्थानों पर जारी है। मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में मणिपुर के पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद सबसे पहले हिंसा भड़की थी।
राज्य में इंटरनेट सेवाएं, जो सबसे पहले 5 मई को प्रतिबंधित की गई थी, 23 सितंबर को कुछ दिनों के लिए बहाल कर दी गईं। हालांकि, दो दिन बाद जब दो लापता छात्रों के शवों की तस्वीरें वायरल हुई और नए सिरे से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया, तब इंटरनेट पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया गया। उस समय से प्रतिबंध को कई बार बढ़ाया गया है।