दुनिया भर में कच्चा तेल के कुओं पर सैन्य तरीकों से कब्जा करने के लिए लड़ाई बहुत बरसों से चल रही है। अमेरिका उसमे सबसे आगे हैं। इसी कारण अमेरिका ने तेल संपदा प्रचूर अरब क्षेत्र में 1948 में संयुक्त राष्ट्र की आड़ लेकर स्वतंत्र इज़राइल राष्ट्र का गठन करवाया, जो जॉर्डन नदी के तटवर्ती गजा (गाजा नहीं बल्कि गजा कहिए लिखिए प्लीज) पट्टी में फिलिस्तीन का हिस्सा था। तब उसके साढे सात लाख मूल बाशिंदों यानि फ़िलिस्तीनियों को बलपूर्वक निकाल बाहर कर दिया गया ,जिसे ‘ अल-नकबा ‘ भी कहते हैं। फ़िलिस्तीन के अन्य हिस्सों से उसके मूल बाशिंदों को खदेड़ दिए जाने के बाद गजा की कुल आबादी के करीब में 60 फीसद फ़िलिस्तीनी शरणार्थी ही हैं।
भूमध्य सागर के तट पर इज़राइल और मिस्र की सीमा से लगी यह पट्टी दुनिया की सबसे घनी आबादी का है। गजा पर 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के दौरान मिस्र ने कब्जा कर लिया था। वह 1967 के अरब-इजरायल युद्ध तक मिस्र के ही नियंत्रण में रहा जब जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट (वेस्ट बैंक) और पूर्वी यरुशलम के साथ इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया। इज़राइल ने 2005 में गजा और उसके आसपास की 21 बस्तियों में करीब आठ लाख यहूदियों को इजरायली सैनिकों को कब्जे के वेस्ट बैंक में भेज दिया गया। पर 2007 में गजा में हमास आंदोलन की चुनावी जीत के बाद इज़राइल ने गजा पट्टी की हवाई, भूमि और समुद्री नाकाबंदी कर दी। अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत नाकाबंदी पट्टी पर कब्जे के समान है।
इज़राइल ने 2008,2012, 2014 और 2021 में गजा पर चार बार सैन्य हमले किए हैं जिससे कई बच्चों समेत हजारों फिलिस्तीनियों की मौत हो गई उनके घर ,दफ्तर नष्ट हो गए, पाइपलाइनों और सीवेज ढांचे को नुकसान हुआ, पेयजल की किल्लत हुई और जलजनित बीमारियाँ बढ़ीं। गजा पर 2021 के पिछले हमले में कम से कम 260 फिलिस्तीनी मारे। इज़राइल में 13 लोग मारे गए।
इजरायल – हमास लड़ाई मौजूदा हालात-
इजरायली सेना ने गजा पट्टी के 20 लाख बाशिंदों को गजा शहर से नागरिकों को निकाल बाहर करने कहा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक क्षेत्र के दक्षिणी हिस्से में रह रहे करीब 11 लाख लोगों को विस्थापित करने के बहुत अमानवीय परिणाम हो सकते है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की आज की रिपोर्ट के मुताबिक इजरायली सेना की हफ्ते भर की बमबारी से फ़लस्तीन और गजा पट्टी में तीन लाख लोग बेघर हो गए हैं। गजा पट्टी की एक बिल्डिंग पर इजरायली सेना की गुरुवार की बमबारी से तबाही का मंजर है। इसमें मरे लोगों के शव और बुरी तरह घायल होने वालों को ढूंढा जा रहा है। ईंधन ही नहीं खाद्य पदार्थ और पेयजल की भी किल्लत है। इजरायल पर हमास के हालिया हमले पिछले 50 बरसों में सबसे बड़े हैं और इसके प्रतिशोध में इजरायली सेना आग बबूला है। करीब 1200 लोगों के मरने और तीन हजार के घायल होने का अंदेशा है। गजा का एकमात्र बिजली घर ईंधन की कमी के कारण बुधवार से बंद है।
अस्पतालों में घायलों और उनके परिजनों की भारी भीड़ जमा है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी, अदनान अबू ने गजा से फोन पर कहा भारी तबाही हो चुकी है। सूत्रों के मुताबिक अमेरिका के विदेश सचिव (मंत्री) एन्टोनी जे ब्लिनकेन ने तेल अवीव के निकट एक सैन्य ठिकाने पर इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू से बातचीत में कहा जब तक अमेरिका है इजरायल के समर्थन में गोला बारूद, रसद और धन की कमी नहीं पड़ने दी जाएगी। उनका कहना था: मैं अमेरिका का विदेश सचिव ही नहीं यहूदी भी हूँ।
स्वतंत्र टीकाकारों के मुताबिक हमास के हमलों ने प्रधानमंत्री नेत्यंयाहू को सियासी तौर पर कमजोर किया है। इजराइली अवाम उनके साथ नहीं है और उनका विरोध जारी है। इजराइल के अखबार उनके खिलाफ लिख रहे हैं। स्वतंत भारतीय पत्रकार प्रशांत टंडन ने फेसबुक पोस्ट में लिखा दिल्ली में फिलिस्तीन दूतावास पर नागरिक समाज के कुछ लोग प्रधानमंत्री नारेंड मोदी के ट्वीट को ही भारत का रुख समझ रहे थे। ट्वीट उनकी निजी राय और भाजपा का पॉलिटिकल पोज़िशन है। पर भारत ने फ़िलिस्तीन पर अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं किया है। विदेश मंत्रालय ने संकेत दिए वह भी मोदी जी के ट्वीट को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। फ़िलिस्तीन के एक आज़ाद देश होने भारत पहले की तरह खड़ा है। मोदी जी के लिये ये झटका है कि उनके ही विदेश मंत्रालय की राय उनसे अलग है। पूरी दुनिया ने ये देख लिया कि भारत की ब्यूरोक्रेसी की अपनी लिगेसी है जिसका वह अनुसरण करती है. संयुक्त राष्ट्र में फ़िलिस्तीन का झंडा भारत के प्रस्ताव पर ही लगा और यह 2015 में मोदी जी के प्रधानमंत्री रहने पर ही हुआ है।
फ़लस्तीन के समर्थन में और इज़राइली सेना द्वारा किये जा रहे नरसंहार के ख़िलाफ़ भारत में देशव्यापी प्रदर्शन से घबराई मोदी सरकार ने सड़कों पर उतरे भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के अनेक सदस्यों को पुलिस हिरासत में ले लिया। नई दिल्ली के जन्तर मन्तर परिसर के पास प्रदर्शन करने पहुंचे कार्यकर्ताओं को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया। ज़ायनवादी इज़राइल द्वारा गज़ा पट्टी में किये जा रहे नरसंहार के खिलाफ़ दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना समेत कई राज्यों में 13 अक्टूबर से प्रदर्शन का आह्वान है।
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