सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहित महिला को 26 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की अनुमति देने वाले अपने पिछले आदेश के खिलाफ सरकार के एक आवेदन पर बुधवार को खंडित फैसला सुनाया। इससे पहले सोमवार (9 अक्टूबर) को अदालत ने महिला को यह ध्यान में रखते हुए कि वह अवसाद से पीड़ित थी और भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं थी, उसे अपनी गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन करने की अनुमति दे दी थी। अब इस मामले की सुनवाई दूसरी बेंच करेगी।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ, जिसने 9 अक्टूबर का आदेश पारित किया था, ने कहा कि केंद्र की याचिका अब मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखी जाएगी ताकि निर्णय के लिए उचित पीठ को भेजा जा सके। जबकि न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि वह 27 वर्षीय महिला को अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने के इच्छुक नहीं हैं। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने 9 अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की मांग करने वाली केंद्र की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पिछले आदेश पर अच्छी तरह से विचार किया गया था।
जस्टिस हिमा कोहली बच्चे को जन्म देने के पक्ष में थी वहीं जस्टिस नाग रत्ना ने कहा की वो याचिकाकर्ता महिला के अधिकार और इच्छा के पक्ष में हैं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि वो सम्मान और गरिमा पूर्वक अपनी साथी जज जस्टिस हिमा कोहली के विचारों से अपना अलग मत रखती हैं।। जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि अगर मेडिकल रिपोर्ट पहले आई होती तो हम संभवत: अलग नजरिए से विचार करते और हमारा नौ अक्तूबर को आया आदेश वैसा नहीं होता।
बुधवार को अदालत को सूचित किया गया कि महिला का इलाज कर रहे डॉक्टर ने उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने पर आपत्ति जताई थी। डॉक्टर की रिपोर्ट मिलने पर कोर्ट ने आपत्ति जताई और सवाल किया कि मामले में कोर्ट का आदेश आने के बाद मेडिकल रिपोर्ट क्यों आई?
जबकि मामले में याचिकाकर्ता ने अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग दोहराई, मामले की सुनवाई कर रहे दो न्यायाधीशों ने कहा कि अब मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक पीठ गठित करने के लिए रखा जाएगा। दोनों जजों के विचारों में मतभेद होने के बाद मामला चीफ जस्टिस के पास भेजा गया।