संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत कोटा प्रदान करने वाला महिला आरक्षण विधेयक आज संसद के चल रहे विशेष सत्र में लोकसभा में पेश किया गया। 19 सितंबर को “ऐतिहासिक दिन” बताते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष से सर्वसम्मति से विधेयक – ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ – पारित करने का आग्रह किया, जो लगभग तीन दशकों से अटका हुआ है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अटल जी के कार्यकाल में कई बार महिला आरक्षण बिल पेश किया गया। लेकिन उसे पार कराने के लिए आंकड़े नहीं जुटा पाए और उसके कारण वह सपना आधूरा रह गया। महिला को अधिकार देने का उनकी शक्ति को आकार देने का काम करने के लिए भगवान ने मुझे चुना है। पीएम मोदी ने महिला आरक्षण को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ नाम दिया है।
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प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में कहा, “नए संसद भवन में इस ऐतिहासिक अवसर पर, सदन की पहली कार्यवाही के रूप में, सभी सांसदों द्वारा महिला शक्ति के लिए द्वार खोलने की शुरुआत इस महत्वपूर्ण निर्णय के साथ की जा रही है।”
पीएम मोदी ने घोषणा की कि उनकी सरकार “महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के हमारे संकल्प” को आगे बढ़ाते हुए “एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन विधेयक ला रही है”।
पीएम मोदी ने कहा, “नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ हमारे लोकतंत्र को और सशक्त करेगा।” उन्होंने निचले सदन से विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने का आग्रह किया।
प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं सभी महिलाओं को आश्वस्त करता हूं कि हम इस विधेयक (संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण पर) को कानून बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मैं दोनों सदनों के सभी सदस्यों से इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने का आग्रह करता हूं।”
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि महिला आरक्षण विधेयक लागू होने के बाद लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या मौजूदा 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी।
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सरकार ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक का उद्देश्य राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नीति-निर्माण में महिलाओं की अधिक भागीदारी को सक्षम बनाना है। बयान में कहा गया है कि 2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने के लक्ष्य को हासिल करने में महिलाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।
लोकसभा में कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह जी के समय राज्यसभा में पास हुआ महिला आरक्षण बिल आज तक जीवित है।हमारी CWC की बैठक में भी यह मांग की गई है कि महिला आरक्षण के बिल को पास किया जाए। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी जी ने महिला आरक्षण बिल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को पत्र भी लिखा था। हम महिला आरक्षण बिल को पारित करने की अपनी मांग को फिर से दोहराते हैं।
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लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राज्यसभा में संबोधन हुआ। अपने संबोधन में उन्होंने कहा,’राज्यसभा में हमारे पास बहुमत नहीं है, लेकिन हमें भरोसा है कि राज्यसभा राजनीतिक सोच से ऊपर उठकर देश के हित में फैसले लेगी। आपकी (सांसदों) परिपक्वता के कारण, हम कठिन निर्णय लेने में सक्षम हुए. आधुनिकता अब अनिवार्यता बन गई है।’
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राज्यसभा सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में कहा कि पीएम मोदी हमको क्रेडिट देते नहीं वो अलग बात है, लेकिन मैं उनको ध्यान दिलाना चाहता हूं कि हम राज्यसभा में इस बिल को 2010 में पहले ही पास करा चुके हैं। खड़गे जब सदन में बोलने के लिए उठे तो थोड़ी ही देर में हंगामा शुरू हो गया। खड़गे ने कहा कि OBC महिलाओं को भी आरक्षण मिले।
खड़गे ने कहा, अनुसूचित जाति की महिलाओं की साक्षरता दर कम है और यही कारण है कि राजनीतिक दलों को कमजोर महिलाओं को चुनने की आदत है और वे उन लोगों को नहीं चुनते हैं जो शिक्षित हैं और लड़ सकते हैं।
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मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान पर राज्यसभा में हंगामा होने लगा। इस बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण खड़ी हुईं और उन्होंने कहा, हम विपक्ष के नेता का सम्मान करते हैं लेकिन यह व्यापक बयान देना कि सभी पार्टियां ऐसी महिलाओं को चुनती हैं जो प्रभावी नहीं हैं, बिल्कुल अस्वीकार्य है। हम सभी को हमारी पार्टी, पीएम ने सशक्त बनाया है। वित्त मंत्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक सशक्त महिला हैं। उसके बाद राज्यसभा की कार्यवाही बुधवार 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।
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मालूम हो कि यह पहला मौका नहीं है, जब महिला आरक्षण बिल सदन के पटल पर आया. 1996 से 27 साल में कई बार यह अहम मुद्दा संसद में उठ चुका है। लेकिन दोनों सदनों में पास नहीं हो सका। 2010 में तो हंगामे के बीच राज्यसभा में पास भी हो गया था लेकिन लोकसभा से पारित नहीं हो सका था।
साल 2008 में इस विधेयक को कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था, लेकिन यह अपनी अंतिम रिपोर्ट में आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहा। समिति ने सिफारिश की कि विधेयक को संसद में पारित किया जाए और बिना किसी देरी के कार्रवाई में लाया जाए। कमेटी के दो सदस्य, जोकि समाजवादी पार्टी के थे, वीरेंद्र भाटिया और शैलेन्द्र कुमार ने यह कहते हुए असहमति जताई कि वे महिलाओं को आरक्षण प्रदान करने के खिलाफ नहीं थे, लेकिन जिस तरह से इस विधेयक का मसौदा तैयार किया गया था, उससे असहमत थे। उन्होंने सिफारिश की थी कि प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने 20 प्रतिशत टिकट महिलाओं को वितरित करने चाहिए, आरक्षण 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
साल 2008 से पहले इस बिल को 1996, 1998 और 1999 में भी पेश किया गया था। गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति ने 1996 के विधेयक की जांच की थी और 7 सिफारिशें की थीं। इनमें से पांच को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया था, जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए 15 साल की आरक्षण अवधि और उप-आरक्षण शामिल था। इस बिल में यह भी शामिल था, अगर किसी राज्य में तीन से कम लोकसभा की सीटें हों, दिल्ली विधानसभा में आरक्षण और कम से एक तिहाई आरक्षण. कमेटी की दो सिफारिशों को 2008 के विधेयक में शामिल नहीं किया गया था। पहला राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करने के लिए था और दूसरा संविधान द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण के लिए था।
आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 फीसदी से कम है, जबकि राज्य विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है। इस लोकसभा में 78 महिला सदस्य चुनी गईं, जो कुल संख्या 543 के 15 प्रतिशत से भी कम हैं। बीते साल दिसंबर में सरकार द्वारा संसद में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्यसभा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करीब 14 प्रतिशत है। इसके अलावा 10 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है। इनमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी शामिल हैं।