सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 16 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी. आर.गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले को चुनौती देने वाली कुल 23 याचिकाओं पर सुनवाई की। संविधान पीठ ने केंद्र सरकार और दूसरे पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
Constitution bench of the Supreme Court reserves its verdict on a batch of petitions challenging the abrogation of Article 370 and bifurcation of the erstwhile state of Jammu and Kashmir into two Union territories.
Five-judge Constitution bench comprising Chief Justice of India… pic.twitter.com/o8nass3ztG
— ANI (@ANI) September 5, 2023
संविधान पीठ ने सभी पक्षकारो को तीन दिनों के भीतर अपना लिखित जवाब दाखिल करने के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि सभी पक्षकारों के जवाब तीन पेज से अधिक नही होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अपने फैसले में यह तय करेगी कि केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने की प्रकिया संविधान के मुताबिक थी या नहीं?
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र अपने फायदे के लिए सब कुछ कर रहा है और देश के नियम का पालन नहीं कर रहा है।याचिकाकर्ता रिफत आर बट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाना “सत्ता के दुरुपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण” था।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद मोहम्मद अकबर लोन और हुसैन मसूदी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी तर्क दिया कि राजनीतिक लाभ के लिए संविधान में हेरफेर नहीं किया जा सकता है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद अकबर लोन ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की तरफ से मांगे गए हलफनामे मे अकबर लोन ने भारत के संविधान के प्रति निष्ठा जाहिर की है। हलफनामे मे अकबर लोन ने कहा है कि वो भारत के एक जिम्मेदार नागरिक हैं वो जनहित याचिका के तौर अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं । वो संसद सदस्य के तौर पर भारत के संविधान के प्रावधानों को संरक्षित और कायम रखने की शपथ को दोहराते हैं। हलफनामे मे अकबर लोन ने कहा है कि मैंने लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेते समय ली गई भारत के संविधान के प्रावधानों को संरक्षित और बनाए रखने और राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की शपथ को दोहराता हूं।
Affidavit filed by National Conference MP Akbar Lone today in the Supreme Court.
Akbar Lone nowhere in the affidavit says that J&K is an integral part of India.
Hope the Constitution Bench led by the Chief Justice makes a strong note.
Supreme Court had earlier asked Akbar… pic.twitter.com/WfN3spgH6r
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) September 5, 2023
रूट्स इन कश्मीर की तरफ से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद अकबर लोन के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों पर लोन ने सुनवाई पूरी होने के वक्त हलफनामा दाखिल किया। हलफनामे में अकबर लोन के बेहद संक्षिप्त जवाब पर केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सवाल उठाया और कहा कि महज दो लाइन मे जवाब देना उचित नही है। हलफनामे पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ये हलफनामा देश को पहले ही पहुंचाई गई चोट का अपमान है और यह हलफनामा महज दिखावा है।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में पक्ष रखा- “एकतरफ़ा कार्यकारी निर्णय अनुच्छेद 370 में संवैधानिक रूप से अंतर्निहित रिश्ते की शर्तों को नहीं बदल सकता है। भारत संघ का एक कार्यकारी अधिनियम जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू भारत के संविधान के प्रावधानों को एकतरफा रूप से नहीं बदल सकता है। अंततः, यह मौजूदा स्थिति के संदर्भ में लिया गया एक राजनीतिक निर्णय था, है ना? और पूर्ण निरस्तीकरण भी एक राजनीतिक निर्णय होना चाहिए। यह संविधान के साथ धोखाधड़ी है।”
इस बीच, केंद्र ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के समर्थन में तर्क दिया और कहा कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को रद्द करने में कोई “संवैधानिक धोखाधड़ी” नहीं हुई है।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के अधीन है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वास्तव में कानून बनाने वाली विधानसभा थी।
सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने का कदम एक “अस्थायी उपाय” था। उन्होंने कहा कि भविष्य में जम्मू-कश्मीर को एक राज्य के रूप में वापस कर दिया जाएगा, जबकि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा।