वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के इतिहास को देखे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि इस विश्वविद्यालय का नाम कभी थीसिस चुराने और पीएचडी की डिग्री बांटने का रहा है, तो कभी घोटालों की लंबी फेरहिस्त तो कभी बिना योग्यता और फ़र्ज़ी डिग्री पर नौकरी करने वालों की लंबी लिस्ट। आज एक बार फिर आज़ादी के मतवालों के हाथों रखें गये नींव वाले इस विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर दिल्ली की सामाजिक संस्था ने सवाल खड़े किये हैं। बोधिसत्व के अथक प्रयास और लगातार इस भ्रष्टाचार में पैरवी से वर्ष 2021 में महादेव महाविद्यालय के फर्जीवाड़े को पहचानते हुये NCTE ने फाइनल SCN इशू किया हैं जिसमें साफ लिखा है कि इस कॉलेज के पास बीएड चलाने के लिए रजिस्टर्ड लैंड नहीं है और जस्टिस वर्मा कमेटी के हवाले से बिना रजिस्टर्ड लैंड डॉक्यूमेंट बीएड नहीं चल सकता। 2014 में बनी नरेंद्र मोदी की सरकार की प्राथमिकता में भी यहीं बल था कि बीएड के फर्जीवाड़े पर लगाम लग सके और दोषियों पर लगाम लगाया जा सकें।
दूसरी तरफ काशी विद्यापीठ की कार्यप्रणाली और वर्तमान रजिस्ट्रार डॉ सुनीता पांडेय सवालों के घेरे में है, 100 सालों में पहली दफा महिला रजिस्ट्रार बनकर यहां नियुक्त सुनीता पांडेय पर महादेव महाविद्यालय को कारवाई की जगह शह देने का आरोप लगाया है, पीड़ित और शोषित परिवार जिनकी पैतृक जमीन का इस्तेमाल करते हुये फ़र्ज़ी दस्तावेजों को बना कर महादेव महाविद्यालय ने अपनी बीएड की ना सिर्फ मान्यता ली बल्कि लंबे समय से विश्वविद्यालय प्रशासन और अन्य विभागों को चूना लगाता आ रहा हैं।
इस महाविद्यालय के पास आज की डेट में खुद की जमीन तक नहीं जिसपर कॉलेज चलाया जा सकें 2002 से अब तक हवा-हवाई तरीके और हवा महल की तर्ज पर ये महाविद्यालय भगवान भरोसे चल रहा है। पीड़ितों को इस फर्जीवाड़े की जानकारी 2017-2018 में हुई जब उनके हाथ RTI के डॉक्यूमेंट लगे जिसको देखने और परखने के बाद इस फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई और धर-पकड़ के दौरान आवाज उठाने पर पीड़ित परिवार संतोष सिंह के भांजे की हत्या करवा दी गई, ताकि इस फर्जीवाड़े पर कोई कारवाई ना होने पायें।
कूटरचित दस्तावेजों के आधार किये गये फर्ज़ीवाड़ा पर पीड़ित संतोष सिंह, संदीप कुमार सिंह, प्रवीण कुमार सिंह, राहुल सिंह और बोधिसत्व फाउंडेशन की महासचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार श्वेता रश्मि ने महादेव के फर्जीवाड़े से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को मीडिया के सामने रिलीज़ किया।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मान्यता लेकर चलने वाले महादेव महाविद्यालय के द्वारा कुटरचित दस्तावेजों पर विश्वविद्यालय से NOC और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) से फ़र्ज़ी दस्तावेजों पर मान्यता ली है, जिसे NCTE के द्वारा चिन्हित करते हुये फाइनल SCN जारी किया गया है 17 सितंबर 2021 से। NCTE से मान्यता लेकर बीएड चलाने के लिए जमीन के रजिस्टर्ड लैंड डॉक्यूमेंट चाहिए जो महादेव महाविद्यालय के पास नहीं है। काशी विद्यापीठ को भी बीएड की NOC देने के लिये रजिस्टर्ड लैंड डॉक्यूमेंट चाहिए जो विश्वविद्यालय के पास उपलब्ध नहीं है। अतः ऐसे में बीएड के लिए दी गई NOC राजभवन के रूल रेगुलेशन के मुताबिक रद्द होनी चाहिए। क्योंकि बिना रजिस्टर्ड लैंड डॉक्यूमेंट और विवादास्पद जमीन पर बीएड नहीं चल सकता है। और ना ही कॉलेज चल सकता है लेकिन शहर के चंद शिक्षा माफियाओं और दलालों की मिलीभगत से बदस्तूर अब तक ये गोरखधंधा चलता रहा है।
सूत्रों का कहना है कि रजिस्ट्रार की तरफ योगी के एक भ्रस्ट मंत्री अनिल राजभर के सहयोग से इस महाविद्यालय को बचाने के लिए सिफारिश की गई है। क्योंकि महाविद्यालय के प्रबंधक और हत्या में नामजद आरोपी अजय सिंह के साथ अनिल राजभर के काफी रंगीन रिश्ते है और खबर यहाँ तक है कि शराब और शबाब का बंटवारा मिलजुल कर होता बल्कि पूरे शहर को सप्लाई पहुंचाई जाती है। सूत्र इस बात की भी तस्दीक करते है कि रजिस्ट्रार को हर महीने एक निश्चित रकम पहुंचाई जा रही है और संतोष सिंह के भांजे की हत्या में विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों की भी मिली भगत है। जिसे संघी हवा और दवा देते रहे है।
महादेव महाविद्यालय ने जाली दस्तावेज और कूटरचित के आधार पर बीएड की मान्यता दिल्ली NCTE से ली है। NCTE के द्वारा जांच में महाविद्यालय के द्वारा मान्यता लेने के लिए जाली दस्तावेजों की पहचान की गई। NCTE ने काशी विद्यापीठ को NOC रद्द करने को था। क्योंकि NOC तो काशी विद्यापीठ ने ही फ़र्ज़ी दस्तावेजों के सहारे जारी की हुई है। दबे छुपे मामलें के सामने आने के बाद भी इस पर कोई कारवाई अब तक ना होना सवालों के घेरे में है। रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय के ऊपर पहले से ही EOW जांच चल रही हैं।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ लगातार इसपर चुप्पी लगा कर बैठी है। उच्च शिक्षा अधिकारी का कहना है विश्विद्यालय प्रशासन जमीन के कागज़ों को आगे प्रेषित करता है। सवाल ये है क्या रजिस्ट्रार को भू-आलेख पढ़ना नहीं आता ??
सुनीता पांडेय को फाउंडेशन की तरफ से 2020 से लगातार शिकायते और पत्र सौंपे जा रहे है। फिर किस दबाव में आज तक कारवाई की जगह प्रोत्साहन मिल रहा है। बोधिसत्व फाउंडेशन के पास पहुंची शिकायतें इस बात की तरफ इशारा करती है कि शहर में तमाम कॉलेज फर्जीवाड़े पर चल रहे है जिनकी नींव 2002 में रखी गई और इसलिए संतोष सिंह की जमीन हड़पने की कवायद में उनके परिवार में हत्या कारवाई गई। क्योंकि राज्यभवन का एक फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तक्षकपोस्ट के हाथ लगा है जो इस सत्य की पुष्टि करता है।
यहाँ सवाल इस जगजाहिर भ्रष्टाचार पर कारवाई करने का है क्या विश्विद्यालय का अपना भी कोई निजी लाभ है जो महादेव महाविद्यालय के फर्जीवाड़े से जुड़ा हुआ है। संतुष्टि और उस जैसे कॉलेज के साथ जब विजय यादव जैसे शिक्षा माफिया पर रोक लग सकती है तो फिर सपा के राज में पैदा हुये इस फ़र्ज़ी कॉलेज पर रोक क्यों नहीं।
सरकार की मंशा साफ है फर्जीवाड़े पर रोक लगाने की इसलिए विनय पाठक और विजय यादव जैसे लोगों पर कारवाई हुई लेकिन मंत्री के साथ फोटो भर खिंचवा कर डालने वाले इस भू-माफिया पर लगाम और कारवाई ना करना संतोष सिंह की तरफ से लगाये गये सभी आरोपों की पुष्टि करते है कि यहाँ भ्रष्टाचार है। किसी की जमीन जबरन कब्ज़ा कर लेना और कूटरचित बना कर फर्ज़ीवाड़ा करना क्या अपराध नहीं है।
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