सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 14 विपक्षी दलों की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें विपक्षी दलों ने सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। शीर्ष अदालत ने विपक्षी दलों से एक विशिष्ट मामले का हवाला देने को कहा और कहा कि इस तरह से सार दिशानिर्देश निर्धारित नहीं किए जा सकते हैं।
पिछले महीने कांग्रेस, DMK, RJD, BRS और TMC सहित 14 पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और अपनी याचिका में सरकार पर उनके नेताओं को फंसाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी द्वारा 24 मार्च को तत्काल सुनवाई के लिए संयुक्त याचिका का उल्लेख किया गया था।
पिछली सुनवाई में अभिषेक मनु सिंघवी ने 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद सीबीआई और ईडी द्वारा दायर मामलों की संख्या में वृद्धि का उल्लेख किया था। सिंघवी ने तर्क दिया था कि 2013-14 से 2021-22 तक सीबीआई और ईडी के मामलों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा था कि ईडी की ओर से 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई है, जिनमें से 95 प्रतिशत विपक्षी दलों से हैं। सीबीआई की ओर से 124 जांचों में से 95 प्रतिशत से अधिक विपक्षी दलों से हैं। लेकिन लोकतंत्र क्या है? जब नेता ही इन मामलों के लिए लड़ रहे हैं। केवल इन वर्गों के लोगों के लिए ट्रिपल टेस्ट के अधीन एक अदालत हो सकती है।
शीर्ष अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया था और 5 अप्रैल को इस पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की थी। बुधवार को शीर्ष अदालत ने याचिका खारिज कर दी और 14 विपक्षी दलों से एक विशिष्ट मामले का हवाला देने को कहा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह से अमूर्त दिशा-निर्देश नहीं दिए जा सकते।
कोर्ट में इस तरह हुई बहस-
सिंघवी: 885 अभियोजन शिकायतें दर्ज की गई हैं। सजा सिर्फ 23। 2004 से 2014 तक लगभग आधी आधी जांच हुई।
CJI: भारत में सजा की दर बहुत कम है।
सिंघवी: 2014 से 2022 तक, ईडी के लिए 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई है, जिनमें से 95% विपक्ष से हैं। सीबीआई के मामले में 124 नेताओं की जांच हुई और 108 विपक्ष में हैं।
CJI: यह एक या दो पीड़ित व्यक्तियों की दलील नहीं है। यह 14 राजनीतिक दलों की दलील है। क्या हम कुछ आंकड़ों के आधार पर कह सकते हैं कि जांच से छूट होनी चाहिए?
CJI: आपके आंकड़े अपनी जगह सही है लेकिन क्या राजनेताओं के पास जांच से बचने का कोई विसेषाधिकार है! आखिर राजनेता भी देश के नागरिक ही है।
सिंघवी: मैं भावी दिशा-निर्देश मांग रहा हूं। यह कोई जनहित याचिका नहीं है, बल्कि 14 राजनीतिक दल 42 प्रतिशत मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और यदि वे प्रभावित होते हैं, तो लोग प्रभावित होते हैं।
CJI: राजनेताओ के पास कोई विशेषधिकार नही है । उनका भी अधिकार आम आदमी की तरह ही है।
CJI: क्या हम सामान्य केस में ये कह सकते है कि अगर जांच से भागने / दूसरी शर्तों के हनन की आशंका न हो तो किसी शख्स की गिरफ्तारी न हो। अगर हम दूसरे मामलों में ऐसा नहीं कह सकते तो फिर राजनेताओं के केस में कैसे कह सकते है। आप आंकड़ों को ठोस कानूनी दिशा-निर्देशों में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। तो अब ये आंकड़े सिर्फ राजनेताओं से संबंधित हैं।
सिंघवी: ट्रिपल टेस्ट को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
CJI: आपके पास विकल्प हैं। संसद है और न्यायिक संरक्षण के लिए हाईकोर्ट जाना चाहिए।
सिंघवी: गाइडलाइंस वगैरह की फाइनल ट्यूनिंग में कोर्ट क्या करेगा। ये बाद की बात है। लेकिन पहला सवाल लोकतंत्र के लिए है।
CJI: एक बार जब आप लोकतंत्र, बुनियादी ढांचा आदि कहते हैं तो हम यह नहीं भूल सकते कि यह दलील राजनेताओं की है।
CJI: राजनेता कानून से ऊपर नहीं। कानून सभी के लिए बराबर है।
कोर्ट का कहना था कि अंततः एक नेता मूल रूप से एक नागरिक होता है और नागरिकों के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं।