सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2016 में केंद्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया। केंद्र सरकार ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों को अचानक से बंद करने का ऐलान किया था।
सरकार के नोटबंदी के इस फैसले के बाद देश भर में काफी हल्ला-हंगामा हुआ था और ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को आदेश दिया है कि वो 2016 के 1000 रुपये और 500 रुपये के नोटों के बंद करने के फैसले से संबंधित रिलेवेंट रिकॉर्ड पेश करे. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की संविधान पीठ ने 58 याचिकाओं के एक बैच में दलीलें सुनीं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सभी पक्षकारों को 10 दिसंबर तक लिखित दलील देने की अनुमति दी है।
पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से संबंधित रिकॉर्ड पेश करने को भी कहा। भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि फैसले को सुरक्षित कर लिया गया है। कोर्ट ने RBI के वकील अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान शामिल थे।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि उसके पास नोटबंदी के फैसले के तरीके की जांच करने की शक्ति है और वह सिर्फ इसलिए हाथ जोड़कर नहीं बैठेगी क्योंकि यह एक आर्थिक नीति का फैसला है। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति का फैसला है, अदालत हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती है.” अदालत ने आगे टिप्पणी की कि सरकार के पास ज्ञान है और उसे पता होना चाहिए कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है. लेकिन, अदालत फैसलों से जुड़ी प्रक्रियाओं और पहलुओं पर गौर कर सकती है”.
अदालत की ये टिप्पणी तब आई जब RBI के वकील ने कहा कि न्यायिक समीक्षा आर्थिक नीति निर्णयों पर लागू नहीं हो सकती है। सुनवाई के दौरान, RBI के वकील जयदीप गुप्ता ने अदालत को काले धन और फेक करेंसी पर अंकुश लगाने के लिए नोटबंदी की पॉलिसी से अवगत कराया।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि नोटबंदी के दौरान लोगों को बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, इसके जवाब में RBI के वकील ने कहा कि “अर्थव्यवस्था में फिर से मुद्रा का प्रवाह बढ़ाने के लिए विस्तृत उपाय किए गए थे। गुप्ता ने कहा कि अस्थायी कठिनाइयां थीं। अस्थायी कठिनाइयां भी राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग हैं। कुछ कठिनाइयों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन हमारे पास एक ऐसा तंत्र था जिससे समस्याएं हल हो जाती थीं।”
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नोटबंदी की सिफारिश करने वाले RBI के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में भाग लेने वाले सदस्यों के बारे में भी ब्योरा मांगा। न्यायमूर्ति बी आर गवई ने कहा, ‘‘कितने सदस्य उपस्थित थे? हमें बताने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।” इस पर RBI के वकील गुप्ता ने जवाब दिया, ‘‘हमारे पास कोरम था, हमने स्पष्ट रूप से वह रुख अपनाया है।”
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वकील पी चिदंबरम ने कहा कि RBI को 8 नवंबर, 2016 को आयोजित RBI के निदेशक मंडल की बैठक के एजेंडा नोट और ब्योरे को सार्वजनिक करना चाहिए। चिदंबरम ने कहा, ‘‘वे ब्योरा क्यों रोक रहे हैं? मुद्दे को तय करने के लिए ये दस्तावेज अत्यंत जरूरी हैं। हमें पता होना चाहिए कि उनके पास क्या व्यवस्थाएं थी, उन्होंने क्या विचार किया।” चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई को यह दिखाने की जरूरत है कि उसने अपने फैसले की व्यापकता और आनुपातिकता पर विचार किया था।