छठ महापर्व की शुरुआत शुक्रवार को ‘नहाय-खाय’ के साथ हो गई है। शनिवार को छठ पूजा का दूसरा दिन है, जिसे ‘खरना’ कहते है। ‘खरना’ का अर्थ होता है ‘शुद्धिकरण’ खरना के दिन शाम होने के बाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर साठी के चावल, दूध और गुड़ का खीर बनाया जाता है और फिर इस प्रसाद को बनाने के बाद व्रती महिलाएं पूजा करती है। उसके बाद व्रती महिलाएं अपना पूरे दिन का उपवास खोलती हैं। इस प्रसाद को ग्रहण करने के साथ ही महिलाओं का करीब 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरु हो जाता है। यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। खरना के प्रसाद को सभी लोगों में बांट दिया जाता है।
खरना के बाद रविवार यानी 30 अक्टूबर को अस्तांचल गामी सूर्य की पूजा की जाएगी और सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है। उसके अगले दिन यानी 31 अक्टूबर की सुबह को उदयगामी अर्थात उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा। छठ महापर्व में छठी मईया और सूर्यदेव की पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है।
छठ पूजा को आस्था का लोकपर्व कहते हैं। ये एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य देवता की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सनातन धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। कहते हैं कि सूर्य के प्रभाव से हम सबको आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा पर सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा का पहला अर्घ्य डूबते सूर्य को-
खरना के अगले दिन शाम के समय व्रती महिलाएं पानी में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं। इस साल 30 अक्टूबर शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्यास्त का समय शाम 05 बजकर 34 मिनट है।
छठ पूजा का दूसरा अर्घ्य उगते सूर्य को-
इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले ही पानी में कड़ी हो जाती हैं और उगते सूर्य देवता की पूजा करती हैं। इसके बाद उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और फिर पूजा का समापन कर व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन सूर्योदय का समय सुबह 06 बजकर 27 मिनट है।
छठ पूजा में घाट पर डाला में ले जानी वाली ये होती हैं सामग्रियां-
सूप, बांस का डाला, टोकरी, केले का घौद, आर्त का पत्ता, बद्धी माला, हल्दी, मूली, अदरक का पौधा, पत्ते वाले गन्ने, चौमुख दीप, दीप, बाती, तेल, फल, चंदन, चावल, सिंदूर, धूपबत्ती, कुमकुम, कपूर, मिठाई (लड्डू, खाजा), प्रसाद (ठेकुआ) इत्यादि।
छठ महापर्व मनाने के पीछे की लोक कथाएं ये हैं-
पहली कथा – भगवान राम और सीता माता ने रावण के वध हो जाने के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन व्रत किया। सूर्य देवता की पूजा की और अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की। तभी से छठ मनाने की परंपरा शुरू हुई।
दूसरी कथा – छठ मैया सूर्य देव की मानस बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देवता की पूजा की जाती है।
तीसरी कथा – छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत के समय में हुई और सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने यह पूजा की। कर्ण अंग प्रदेश के राजा थे। कर्ण घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे और इन्हीं की कृपा से वो परम योद्धा बने।
चौथी कथा – ये कथा भी महाभारत काल से ही जुडी हुई है। पांडवों की पत्नी द्रौपदी सूर्य की उपासना करती थी। वो अपने परिजनों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए नियमित रूप से यह पूजा किया करती थीं।