आखिरकार आपसी अंतर्कलह से न गहलोत न पायलट बल्कि उत्तर से ठीक विपरीत दक्षिण भारत से मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के लिए सामने आया। पायलट पर ढेर सारे आरोप और खुद के पास 102 विधायकों का समर्थन फिर सबका इस्तीफा दिलवा गहलोत ने सोनिया पर दबाव बनाने की कोशिश की उसका दुष्परिणाम गहलोत को भुगतना ही पड़ा।
देखा जाय तो जो बगावत की राह सचिन पायलट ने दिखाई उसका पटाक्षेप अशोक गहलोत ने अपने तेवर दिखाते हुए किया। जाहिर है राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों को अशोक गहलोत का यह तेवर नागवार गुजरा होगा। असल में सारा खेल बिगाड़ा गहलोत के सलाहकारों ने।
उस दिन मैं जयपुर में ही बीजेपी जिलाध्यक्ष राघव शर्मा के साथ था। इस पर उनसे और बीजेपी के कई नेताओं से मेरी बातचीत भी हुई और आशंका भी जताई गई कि विधायकों का इस्तीफा ही गहलोत को भारी पड़ेगा और हुआ भी यही। गहलोत सचिन पायलट को मुख्यमंत्री न बनने देने के लिए सोनिया गांधी से मिले और बोले अध्यक्ष दो पदों पर रह सकता है। इससे सोनिया गांधी को लगा कि गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ अध्यक्ष पद पर स्वतंत्र रूप से काम नहीं करना चाहते। जबकि इसी बीच सचिन पायलट सारी राजनीति से दूर राहुल गांधी के साथ दक्षिण भारत की यात्रा पर रहे।
गहलोत राहुल गांधी को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए कोच्चि भी गये। पर राहुल माने नहीं। दरअसल यह गहलोत का घाघपना था कि वह स्वामिभक्ति दिखाने पहुंचे।
फिर मुख्यमंत्री आवास पर बैठक होनी तय हुई। और इस घटनाक्रम को आब्जर्व करने के लिए अजय माकन और खड़गे को ऑब्जर्वर बनाया गया। इस सूचना ने गहलोत के कान खड़े कर दिये। पर गहलोत समर्थकों ने सीएम हाउस में होने वाली बैठक का बहिष्कार कर दिया। और विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के घर जाकर सामूहिक इस्तीफा दे दिया। और यहीं से खेल बिगड़ गया। सीएम हाउस में विधायक दल की होने वाली बैठक से पूर्व यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के घर विधायक इकट्ठे होने लगे। यही विधायकों ने पैरलल मीटिंग करके निर्णय लिया कि विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा सौंपा जाएगा। गौरतलब है कि किसी विधायक ने इस्तीफा देने कोई कारण नहीं बताया।दोस्तों है न हैरत की बात कि बिना कारण लिखे बताये विधायकों का इस्तीफा दिया जाना।
इस मौके पर चीफ व्हिप महेश जोशी भी धारीवाल के घर मौजूद रहे। विधायकों का इस्तीफा धारीवाल और महेश जोशी ने ही विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा।
इस इस्तीफे के पीछे जो कारण थे वह यह कि कोई ऐसा प्रस्ताव पास न हो पाए जिसमें सारे फैसले करने का अधिकार हाईकमान को हो। दूसरा अगर ऐसा कोई प्रस्ताव पास हो गया तो गहलोत को सीएम पद छोड़ना पड़ सकता है। फिर गहलोत को अध्यक्ष बनाया गया तो कहीं सचिन पायलट को मुख्यमंत्री न बना दिया जाए।
और इसका नतीजा यह निकला कि गांधी परिवार के विश्वस्त माने जाने वाले गहलोत पार्टी की किरकिरी कराने की वजह से हाईकमान की नजरों से गिर गये। माफी मांगनी पड़ी।
मामला और ज्यादा भड़का संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल के घर पर गहलोत समर्थक विधायकों की पैरलल मीटिंग से। धारीवाल ने माकन पर जो आब्जर्वर भी थे उन पर षड्यंत्र करके पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का आरोप भी लगाया। इस बैठक की वीडियो भी वायरल हो गई। इतना ही नहीं धारीवाल ने दूसरे दिन प्रेस कांफ्रेंस के अजय माकन पर लगाये आरोपों को दोहराते हुए अजय माकन के खिलाफ सबूत होने का दावा किया। मुझे इस पत्रकार वार्ता की जानकारी वहीं के एक पत्रकार साथी से मिली। पर मैं बेटे के साथ कॉलेज में बिजी होने से जा न सका। पत्रकारों ने पूछा भी कि क्या धारीवाल माकन पर आरोप लगा रहे तो उन्होंने कहा हां लगा रहा मेरे पास सबूत हैं उनके खिलाफ।
और धर्मेंद्र राठौड़ जो RTDC के चेयरमैन हैं उन्होंने ने हद पार करते हुए माकन को आलाकमान को गुमराह करने वाला और गद्दार तक कहा। उन्होंने पायलट गुट के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी को भी गद्दार कहा। उन्हें लगा गहलोत ही सीएम रहेंगे और अध्यक्ष भी। लग भी ऐसा ही रहा था कि गहलोत जिसे चाहेंगे वही सीएम बनेगा और गहलोत का अध्यक्ष बनना तय हो गया है।
और इधर सारे घटनाक्रम की जानकारी लेकर दोनो पर्यवेक्षक माकन और खड़गे दिल्ली निकल गये और सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंप दी। और पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल,आरडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ और चीफ व्हिप महेश जोशी को अनुशासन हीनता के मामले में नोटिस जारी किया गया। और 10 दिन के भीतर जवाब मांगा गया है। गहलोत भी दिल्ली जाकर पूरे घटनाक्रम को दुखद बताते हुए माफी मांग लिये हैं। उन्होंने अध्यक्ष पद पर चुनाव न लड़ने की बात कही है। वे सीएम रहेंगे या नहीं यह भी अब आलाकमान की इच्छा पर निर्भर है।
और ताजातरीन में खड़गे और शशि थरूर दोनों ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कर दिया है। दिग्विजय सिंह साइड लाइन हो गये हैं। इसके आलावा झारखंड के पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने भी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया है।
जहां तक मेरा आकलन है इस चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे ही अंततः कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे। राहुल गांधी की दक्षिण भारत की यात्रा, दलित वोट बैंक पर कब्जा करने की रणनीति के चलते ऐसा होगा। अगर शशि थरूर जीत भी जाएं तो उन्हें मनाने की कोशिश की जाएगी। राहुल गांधी की नजर दक्षिण भारत की 129 सीटों पर है। खड़गे का समर्थन बहुत सारे कांग्रेसी नेताओं के अलावा पार्टी से नाराज चल रहे जी-23 गुट ने भी किया है। खड़गे की राजनीतिक समझ भी थरूर से ज्यादा है।
मल्लिकार्जुन खड़गे को भी यकीन है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत जाएंगे। उनके नामांकन का पार्टी के बड़े नेताओं का जिस तरह से समर्थन किया है, उससे यह जाहिर है कि खड़गे को कांग्रेस नेतृत्व का आशीर्वाद मिला हुआ है। कर्नाटक के 80 साल के इस दलित नेता ने यह विश्वास एक दिन में नहीं पाया है। इसके लिए उनका पार्टी और गांधी परिवार के प्रति पांच दशकों से भी ज्यादा का समर्पण और वफादारी है। यह वफादारी ऐसे ही नहीं कायम हुई है। इसके लिए उन्होंने कठिन संघर्ष भी किया है और धैर्य भी बनाए रखा है। अगर उनकी उम्मीदवारी पर 19 अक्टूबर को पार्टी की औपचारिक मुहर लग गई, जिसकी प्रबल संभावना जताई जा रही है तो उन्हें वह इनाम मिलेगा, जिससे वह कई बार वंचित रह गए थे।
बहुत बहुत शुक्रिया श्वेता जी