स्वतंत्र भारत गणराज्य के संविधान में मगध के मौर्य वंश के सम्राट अशोक के राजकाल के पाषाण स्तंभ में मुंडकों उपनिषद के सत्यमेव जयते वाक्यांश को जोड़ कर राष्ट्र चिन्ह घोषित है। यह प्राचीन भारतीय सभ्यता का ही प्रतीक नहीं बल्कि हिंदुस्तान की अस्मिता की पहचान भी है। भारत के आठ बरस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में राष्ट्रचिन्ह को विद्रुप कर निर्माणाधीन नए संसद भवन के शीर्ष पर 9500 किलोग्राम भार और 6.5 मीटर ऊंचे कांसा के अशोक स्तंभ का अनावरण किया गया। उन्होंने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ इसकी पूजा अर्चना भी की। इसे सहारा देने 6500 किलोग्राम भार के स्टील का ढांचे खड़ा किया गया है। ये बात सोमवार 11 जुलाई 2022 की है। वैदिक धार्मिक पद्धति से आयोजित यह समारोह पूर्णतः असंवैधानिक है।
भारत का संविधान राजकाज के सेक्युलर होने की अनिवार्यता पर जोर देता है। किसी भी धर्म विशेष का राजकाज में इस्तेमाल वर्जित है। संविधान में राजसत्ता को सभी धर्मों का आदर करने का निर्देश है। नई दिल्ली में मौजूदा संसद भवन ही पहले सेंट्रल असेंबली थी, जहां संविधान सभा की बैठकों में भारतीय संविधान रचा गया। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे।
हमारे संविधान के रचयिता उसकी ड्राफ्टिंग कमेटी के डा बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर माने जाते है।सारनाथ के अशोक स्तंभ की विशेषता है। यह राष्ट्र चिन्ह तत्कालीन भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि वर्तमान भारत की सभ्यता, संस्कृति और कला भी दर्शाता है। सारनाथ का चौमुखी सिंह स्तंभ और उस पर उत्कीर्ण धम्मचक्र, पशुओं के चित्र गतिशीलता दर्शाता है। धर्मचक्र के साथ ऊपर बैठे और चारों दिशाओं में मुख वाले सिंह हमारी सभ्यता संस्कृति,धम्म, राजकाज की कृति इंगित करते हैं। सिंह की भंगिमा उसकी मांसलता और बलशाली होने की है। कालांतर में अशोक कालीन कला की उत्कृष्टता सारनाथ में ही नहीं लोरिया नंदन, रामपुरवा में बने सिंह स्तम्भ में भी निखर गई। सारनाथ का अशोक स्तम्भ मौर्यकालीन शिल्पियों की कला का संगम है। सिंहों के सभी अंगों के विन्यास में शिल्पियों ने अपनी बुद्धि,तक्षण कला का अद्भुत प्रयोग किया है। इसमें जो चार सिंह पीठ सटाये उकड़ूँ बैठे हैं उनके चारों ओर की रेखाएँ, कानों से सटे बाल, माँसल पैर, मुँह और मूँछे, उच्च कोटी के विन्यास है। पाषाण पर उत्कृष्ट पॉलिश है। यह कलाकृति हमारी ऐतिहासिक विरासत होने के साथ ही देश का राजचिह्न भी है। इसमें छेड़छाड़ अव्वल दर्जे का अपराध है। सौम्य, गंभीर, बलसाली सिंह को खूंखार चरित्र के रुप में दर्शाना निर्माणाधीन सेंट्रल विस्टा में बनवाया गया यह सिंह मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी यानि भाजपा के मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस के फासीवाद परस्त चरित्र को इंगित करता है।
इस मौके पर मोदी जी के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी थे। इसका निर्माण करीब दो हजार लोगों ने मिलकर किया है। नए भवन का निर्माण दिसंबर 2022 में पूरा हो जाने पर उसमें संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में 1224 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी।
यह स्तम्भ मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स के छात्र रहे औरंगाबाद के मूर्तिकार सुनील देवरे की नक्काशी के आधार पर तैयार किया गया। उन्हें शॉर्टलिस्ट किया गया था। देवरे के पिता भी इस स्कूल के पूर्व छात्र हैं और उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में काम किया था। देवरे के मुताबिक इसका ठेका टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को मिला। देवरे के औरंगाबाद स्थित स्टूडियो में पहले क्ले यानि मिट्टी का मॉडल तैयार करने में पांच बरस लगे। अंतिम मंजूरी से पहले सेंट्रल विस्टा के विशेषज्ञों ने जांच की।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष और हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने मोदी जी के अशोक स्तंभ के अनावरण पर नाराजगी जता कर पीएमओ इंडिया को टैग अपने ट्वीट में लिखा कि ‘संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को अलग करता है। सरकार के प्रमुख के रूप में नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था। लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता है जो सरकार के अधीनस्थ नहीं है। आपने सभी संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है।’
चौतरफा विरोध
स्तंभ की अनुकृति के खिलाफ चौतरफा विरोध सामने आ रहा हैं। कुछ का कहना है मूर्तिकार ने मूल कृति का उपहास किया है।यह सारनाथ की प्रतिकृति नहीं लगती है। सिंह के खुले खूंखार मुंह पर कड़ी आपत्ति है। यह कलिंग युद्ध के बाद अहिंसक और बौद्ध हो गए सम्राट अशोक की सदियों से जनमानस में बनी छवि से खिलवाड़ है। इसे मोदी स्तंभ कहना चाहिए।भगवान राम के कंधे पर टंगे धनुष को मोदी राज में क्रोध से तनी प्रत्यंचा में बदल दिया गया। सीताराम का जाप, जय श्रीराम के नारे में बदल गया। मोदी जी द्वारा गुजरात में नर्मदा घाट पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की लगाई प्रतिमा भी उनकी छवि से खिलवाड़ है। उस प्रतिमा का सरदार पटेल से मेल नहीं है। पूजा पाठ से बौद्ध धर्मावलंबियों में रोष है। इस स्तंभ में सत्यमेव जयते गायब है। अशोक स्तंभ के शिल्प से छेड़छाड़ राष्ट्र का अपमान है। सम्राट अशोक ने जब शांति का रास्ता अपनाया इस चिन्ह को शांति सौहार्द और वैभव के रूप में दर्शाया गया था। अब ये चिन्ह खूंखार दर्शाया दिया गया। मुंह फाड़ते बाघ, हाथी की जगह गाय और अशोक चक्र में तब्दील कर दिया। शेर बिगाड़ा ही, हाथी भी बेदखल कर उसकी जगह गाय बिठा दी गई।
बुद्ध काल तलवार से नही करुणा और तर्क से विस्तार लेता है। मौर्य वंश बौद्ध काल का शीर्ष है। सम्राट अशोक ने अपनी विजय पताका फहरा कर जब तलवार पर निगाह डाली तो खुद से पूछा था यह सब क्यों और किसके लिए? विजय के अहंकार को करुणा में डुबो देना उसकी महत्ता की व्याख्या है। अशोक स्तम्भ मात्र मूर्ति शिल्प नही है एक विचार की प्रस्तुति है जहां चारों शेर मुह बंद करके चारों दिशाओं में शांत भाव से सचेत खड़े हैं। सत्यमेव जयते , मुंडक उपनिषद के श्लोक का हिस्सा है जिसका अर्थ है सत्य की ही विजय होती है।
यह भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। सेना, पुलिस , मेडल , सरकारी दस्तावेज , पासपोर्ट सब जगह यह चिह्न भारत प्रतीक है। सारनाथ स्थित स्तंभ के शीर्ष भाग पर बने चार मुंह वाले जिस शेर को भारतीय गणराज्य का प्रतीक चिन्ह माना गया वह कालांतर में भरतखंड में जैन धर्म के प्रसार का प्रतीक रहा। सारनाथ वह भूमि है जहां भगवान महावीर ने प्रवचन दिये चार मुंह वाले शेर के नीचे जैन धर्म के प्रथम तीन तीर्थंकरों ऋषभनाथ, अजितनाथ एवं संभवनाथ के प्रतीक बैल, हाथी और घोड़ा हैं। बीच में धम्म चक्र है जिसमें 24 तीलियां हैं जो प्रथम तीर्थंकर से लेकर अंतिम 24वें तीर्थंकर तक गतिमान धर्म का प्रतीक है। भगवान महावीर के काल में जैन धर्म फैल चुका था। इसी कारण शीर्ष भाग पर भगवान महावीर के प्रतीक चिन्ह सिंह को चारों दिशाओं में मुंह किये शांत मुद्रा में दिखाया गया है। जंगल का राजा सिंह इसलिए कहा गया है कि वह क्रोधित मुद्रा में नहीं शांत मुद्रा में रहता है। नए राष्ट्रीय चिन्ह में मुंह फाड़े सिंह, सिंह नहीं रह गए वे भेडिए जैसे नजर आ रहे हैं।
सैंकड़ों साल पहले हुए ‘ अशोक द ग्रेट ‘ को ही अशोक महान कहा गया। अशोक स्तम्भ का इतिहास पढ़ने की ज़रूरत है।बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह और नरसिंह हैं। बौद्ध धर्म में बुद्ध को शेर का पर्यायवाची माना गया है।बुद्ध के उपदेश धर्म चक्र परिवर्तन सिंह गर्जना कहा गया है।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने राम लक्ष्मण के चरित्र को धीर, वीर, गंभीर कहा। वही भाव अशोक स्तंभ के सिंहों में है। सम्राट अशोक का युद्ध से मोह भंग, मानव के प्रति करुणा का भाव उदय होने और उसके प्रतीक सारनाथ के शांत सिंहों में है। गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा में भी कलात्मक्ता के बदले विशालता हावी है।
राजीव गांधी की संसद भवन एनेक्सी के बाहर लगाई कांग्रेस सरकार द्वारा लगाई प्रतिमा से उनकी सुन्दर छवि को कुरूप कर दिया गया। आधुनिक भारत में नेहरू का सुदर्शन व्यक्तित्व, उनकी प्रतिमाओं में परिलक्षित है।इसी तरह गांधी की प्रतिमाओं में है। मूर्ति व्यक्तित्व को उकेरने की कला है न कि वीभत्स बनाने की है।
लेकिन मौजूदा फासीवाद दौर में भारत में गांधी को अपमानित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ यह कह कर चल देते हैं कि वह उन्हें कभी दिल से माफ नहीं करेंगे।
बहरहाल, अशोक स्तम्भ की अनुकृति में छेड़छाड़ ठीक नहीं। इतिहास में उसे शांत चित्रित करने की परम्परा है। अशोक स्तम्भ की हिंसक अनुकृति त्रुटिवश नहीं है ये जानबूझकर किया गया।ये कुतर्क है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए सिंह की तरह आक्रामक हो गया है।
साभार – प्रकाशन : समयांतर पत्रिका अगस्त 2022