प्रयागराज: डाइट, मथुरा की ओर से पिछले तीन दिनो से संस्थान के मुक्तागन मे आयोजित की जा रही सारस्वत कर्मशाला का 18 दिसम्बर अन्तिम दिन था। कर्मशाला में प्रयागराज के आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ही हिन्दी भाषा सिखा रहे हैं। कर्मशाला में वहाँ उपस्थित लगभग ३०० प्रशिक्षणार्थियों ने प्रतिदिन छ: से सात घण्टे तक लगातार (भोजनावकोश के अतिरिक्त) अपना धैर्य और संयम का परिचय देते हुए, भाषा, व्याकरण, भाषाविज्ञान, साहित्य तथा संरचना खण्ड- अपठित, सारांश, निबन्धलेखन, भावपल्लवन आदिक विषयों पर तन्मयतापूर्वक ज्ञान ग्रहण किये थे। ऐसा प्रशिक्षण-प्रभाव पिछले तीन दिनों तक प्रशिक्षित कर रहे, प्रयागराज से पधारे भाषाविज्ञानी और समालोचक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का था। वे जिस किसी भी वाक्य के द्वारा अपने विषय को समझाते थे, उसी मे से ऐसे अनेक शब्द निकल आते थे, जिनका वे समकक्षीय शब्दों का प्रयोग करते हुए, उनके अर्थ-भाव को बोध कराते थे।
आज भी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने शुद्धाशुद्ध वर्तनी, शब्दभाव-बोध और उनकी अवधारणा-सहित उनका वाक्य में प्रयोग करना सिखाया। उन्होंने बताया और समझाया कि किस प्रकार उपसर्ग अपना रूपपरिवर्त्तन करते हैं। उन्होंने बताया कि उपसर्ग अच्छे होते हैं और बुरे भी। जिस प्रकार ‘वि’ उपसर्ग के योग से ‘विकास’ और ‘विशुद्ध’ की रचना होती है, उसी प्रकार उसी ‘वि’ के प्रयोग से ‘विनाश’ और ‘विकार’ की होती है। उन्होंने यह भी बताया कि विद्यार्थी और अध्यापक प्रत्येक शब्द में सन्धि, समास, उपसर्ग, प्रत्यय, धातु आदिक की खोज करने लगते हैं, जबकि यह मनोवृत्ति उचित नहीं है। इसे समझने के इसकी जानकारी आवश्यक हो जाती है कि सन्धि और विच्छेद के कौन-कौनसे नियम हैं और समास-विग्रह के भी।
अन्तिम दिन के अन्तिम सत्र में निबन्ध-लेखन के प्रकार, रूपरेखा, निबन्ध-विषय की पृष्ठभूमि, आरम्भ, मध्य तथा अन्त के अनुच्छेद में निबन्ध के किस पक्ष पर कैसे और कितने शब्दों में लेखन करना चाहिए।
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने सारांश शब्द के शाब्दिक अर्थ, उसकी अवधारणा तथा परीक्षा की दृष्टि किस प्रकार से कितना सारांश-लेखन करना चाहिए, बताया। उन्होंने सारांश और निष्कर्ष के मध्य के अन्तर को समझाया। किसी एक वाक्य का किस प्रकार से विस्तार करते हुए, ‘भाव-पल्लवन’ का रूप दिया जा सकता है, इसको सविस्तार समझाया। इसके लिए ‘विद्या से विनम्रता प्राप्त होती है’, ‘मनुष्य गुण और अवगुण की खान है’ आदिक एक वाक्य की व्याख्या कैसे की जाती है, इसका प्रशिक्षण किया।
अन्त में, त्रिदिवसीय शिक्षण-प्रशिक्षण के गुरु रहे आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की विदाई का समय आया। उसी अवसर पर ‘दैनिक जागरण’, ‘नई दुनिया’ तथा ‘नवदुनिया’-समूह के राष्ट्रीय सम्पादक विष्णुप्रकाश त्रिपाठी ने अपनी ओर से आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय को अंगवस्त्र भेंट किया। डाइट की ओर से अंगवस्त्र और प्रतीकचिह्न विष्णुप्रकाश त्रिपाठी और डाइट के प्राचार्य महेन्द्र कुमार सिंह ने भेंट किया। इसी अवसर पर विष्णुप्रकाश त्रिपाठी को शाल और प्रतीकचिह्न से आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने विभूषित किया और विशिष्ट अतिथि रणविजय निषाद को भी। इस अवसर पर महेन्द्र सिंह भी उपस्थित थे। प्रशिक्षणार्थियों को सम्बोधित करते हुए विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने कहा, “मैं चुपके से आकर सबसे पीछे बैठ गया था और एक विद्यार्थी की तरह से सीख रहा था। मैने बारह शब्द सीखे हैं। इस विद्यालय को देखकर मेरे बचपन का स्कूल याद आ गया।”
अन्त में, समारोह का समापन करते हुए संस्थान के उपशिक्षानिदेशक एवं प्राचार्य महेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि हमारी यह त्रिदिवसीय शैक्षणिक कर्मशाला हमारे समस्त प्रशिक्षणार्थियों (यू ट्यूब-सहित) के लिए अत्यन्त उपयोगी रही, इसे हमारे प्रशिक्षणार्थियों ने बढ़-चढ़कर अपनी सक्रियता प्रदर्शित करते हुए अनुभव करा दिया है। ऐसी कर्मशाला का ही आयोजन कर हम अपने विद्यार्थियों के ज्ञानस्तर का विस्तार कर सकते हैं।
इस अवसर पर संजय सिंह, रमेशकुमार, प्रीतम, ऋतेश, नीतेश, हिमांशी, पूजा, चुलबुली, रजनी, वंशिका, जीविका रस्तोगी, गौरव गुंजन, किरण, नीतू, प्रज्ञा आदिक उपस्थित थीं।