प्रयागराज: देश भर से आए विभिन्न अखाड़ों के हज़ारों साधू संतो के बीच करीब एक हज़ार करोड़ की मिल्कियत वाले बाघंबरी गद्दी मठ के महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के अनसुलझे रहस्यों और अनुत्तरित सवालों के बीच आखिर कार बलवीर गिरि को उनका उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया गया। अखाड़ों के बड़े संतों ने उनकी चादर पोशी यानी पट्टाभिषेक किया। संन्यासी बलवीर निरंजनी अखाड़े के उप महंत के रूप में अब तक हरिद्वार स्थित विल्केश्वर महादेव मंदिर की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। मंगलवार को षोडशी पूजा के बाद बाघंबरी गद्दी मठ में नए महंत के रूप में बलवीर गिरि की महंतई चादर विधि की रस्म अदा की गई। चादर विधि में निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद ब्रहमचारी के अलावा पंच परमेश्वर समेत कई महामंडलेश्वर और महंत मौजूद रहे। इस समारोह के गवाह देश भर से आए संत-महंत बने।
महंत नरेंद्र गिरि की वसीयत के आधार पर निरंजनी अखाड़े के पंच परमेश्वर ने बलवीर को उत्तराधिकारी चुना था। महंत नरेंद्र गिरि निरंजनी अखाड़े के सचिव भी थे, लेकिन अभी उनके उत्तराधिकारी बलवीर को यह पद नहीं दिया जाएगा।
जानकारी के अनुसार निरंजनी अखाड़े में चार सचिव होते हैं। नरेंद्र गिरि की मौत के बाद एक पद रिक्त हो गया है। मौजूदा समय निरंजनी अखाड़े के तीन सचिवों में महंत रवींद्र पुरी, महंत राम रतन गिरि और महंत ओंकार गिरि के नाम शामिल हैं। बताया गया कि षोडशी की रस्म के बाद इस पद पर नई नियुक्ति के बारे में अखाड़े की ओर से विचार किया जाएगा।
महंत नरेंद्र गिरि का शुद्धि संस्कार
अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष और बाघमबारी गद्दी के प्रमुख महंत स्व नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के बाद आज उनका शुद्धि संस्कार किया गया। जिसके बाद उनके उत्तराधिकारी की ताजपोशी की गई। प्रयागराज के जय मां शाकंभरी गति में इसके लिए खास तैयारियां की गई थी। उत्तराधिकार की ताजपोशी के पहले सुबह महंत नरेंद्र गिरी का शुद्धि का अखाड़ों का संस्कार षोडशी शुरू हुआ जो 2 घंटे तक चला।
बता दें कि आम गृहस्थ की मृत्यु के बाद उसका कर्म 13वें दिन होता है। लेकिन संत-महात्मा की मृत्यु के बाद उनका कर्मकाण्ड 16वें दिन होता है।जिस प्रक्रिया से यह संस्कार सम्पन्न होता है उसे षोडशी की रस्म कहा जाता है । यह परंपरा सनातनकाल से चली आ रही है। गृहस्थ की मृत्यु के बाद तेरहवे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा दी जाती है।उसी तरह संत-महात्मा के ब्रह्मलीन होने के बाद समाधि के 16 दिन षोडशी की परंपरा का पालन किया जाता है।
लेकिन इस परंपरा के कर्मकांड में 16 ऐसे सन्यासियो को दान-दक्षिणा दी जाती है जिन्होने अपना पिंडदान किया हो । इन संत-महात्माओं को ब्रह्मलीन संत की पसंद की 16 भौतिक चीजों का दान दिया गया।गुद्दड़ अखाड़े के सन्यासियों को दान-दक्षिणा दी गई।संत जिस अखाड़े से ताल्लुक रखता है उसे अखाड़े के पदाधिकारी और साधु संत भी अपनी अपनी इच्छा अनुसार इसमें दान किया। प्रयागराज में षोडशी की परंपरा संपन्न होने के बाद महंत के खाली हुए पद को भरने के लिए पत्ताभिषेक की रस्म अदा की गई।इसी अवसर पर बलवीर गिरि का पट्टाभिषेक किया गया।
इसके बाद महंतई चादरविधि के तहत वैदिक मंत्रोच्चार के बीच निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, सचिव समेत 10 अखाडों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में उन्हें श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी का महंत घोषित किया गया । बाद में उत्तराधिकारी बनाए गए महंत बलवीर गिरी ने ब्रह्मलीन अपने गुरु महंत नरेंद्र गिरि की समाधि पर माथा टेका ।