कोरोना काल की परेशानियों से अभी तक पूरी तरह मुक्ति तो नहीं मिली लेकिन पहले के मुकाबले अब स्थिति काफी बेहतर नजर आती है। इस बीच कोरोना की तीसरी लहर की आशंका भी एक डर सा पैदा करती है लेकिन आम जन जीवन धीरे – धीरे सामन्य होता जा रहा है। हालात के सामान्यीकरण होने के दौर में ही यह समझने की कोशिश भी की जा रही है कि मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह से इस साल जून – जुलाई के महीने तक पूरे सवा – डेढ़ साल के दौरान कोरोना संकट से हुए नफे – नुक्सान का भी आकलन कर लिया जाए। खुद सरकारी एजेंसियों ने इसका जो आकलन किया है उसे अखबारों की सुर्ख़ियों में नीचे दिए गए क्रम में कुछ इस तरह से जगह दी गई है-
- कोरोना से आम आदमी कर्ज में , कंपनियां मालामाल
- कृषि और महिला श्रमिकों के रोजगार अवसर कम हुए
- स्कूल बंद होने से पढ़ाई लिखाई में पिछड़े गरीब बच्चे
- अनुसूचित जाति/ जनजाति के बच्चों पर ज्यादा असर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा था , समय अनुकूल रहने पर तो हर कोई तरक्की कर आगे बढ़ सकता है, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों में तरक्की करने वाले बिरले लोग ही होते हैं। इसी तरह की बात सरकारों के सन्दर्भ में भी लागू होती है और जनता की फिर करने वाली सरकारें प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जनता के लिए तरक्की के अवसर खोज लेती हैं। प्रधान मंत्री ने यह बात कोरोना महामारी के फैलने से पैदा हुई विषम परिस्थितियों के संदर्भ में अपनी सरकार के जनहितकारी कार्यों का उल्लेख करते हुए कही थी और उन्होंने इसे, ” आपदा में अवसर ” तलाशने की संज्ञा भी दी थी। प्रधानमंत्री ने रचनात्मक और सकारात्मक सन्दर्भ में ही यह बात कही थी लेकिन वास्तविक धरातल में हालात इसके एकदम विपरीत ही दिखाई देते हैं। पिछले कुछ दिनों की ऊपर लिखी अखबारों की ये सुर्खियां इसी तरफ इशारा करती हैं कि कोरोना महामारी की मार से समाज के अमीर तबके का तो कोई नुकसान नहीं हुआ उलटे इस तबके ने इस विपरीत परिस्थिति का फायदा उठाते हुए जबरदस्त तरीके से मोटा माल कमाया लेकिन समाज का गरीब तबका जो पहले ही परेशानी के दौर से गुजर रहा था ,वो और फटेहाल हो गया। यह बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि भारत सरकार के केन्द्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के हवाले से बाहर आई है।
यह रिपोर्ट रिज़र्व बैंक द्वारा शेयर बाजार में सूचीबद्ध ढाई सौ से अधिक कंपनियों पर किये गए एक अध्ययन का नतीजा है जिससे यह पता चलता है कि कोरोना की वजह से आम लोगों पर कर्ज का बोझ बढ़ा है लेकिन लेकिन निजी कंपनियों ने इसकी वजह से रिकॉर्ड कमाई की है। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से शहरी अर्थव्यवस्था की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है, और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कम मजदूरी वाले काम करने को मजबूर हो रहे हैं।
रिज़र्व बैंक की इस रिपोर्ट के मुताबिक़ चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही ( अप्रैल – जून ) के दौरान रिज़र्व बैंक से सूचीबद्ध कंपनियों का मुनाफ़ा बढ़ कर 90,325 करोड़ रुपये हो गया जबकि पिछले वित्त वर्ष की इस अवधि के दौरान इन कंपनियों को 2646 करोड़ का घाटा हुआ था। इसका असर यह हुआ कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के बाद शुरू हुए महीने ( जुलाई 2021)में देश में खुदरा कर्ज की मांग में 11. 2 फीसदी की रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है। इसका मतलब साफ़ है किदेश में गरीबों की हालत और खराब हुई है और उनको इस हालत से उबरने का एक ही रास्ता बैंक से कर्ज लेना ही नजर आया। यह बात किसी से छिपी भी नहीं है कि आमतौर पर ऐसे कर्ज आम आदमी ही लेता है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ इस अवधि में विनिर्माण क्षेत्र की कंपनियों ने सबसे ज्यादा कमाई की .. इस क्षेत्र की करीब डेढ़ हजार से ज्यादा कंपनियों के उत्पाद की बिक्री में इस साल 75 फीसदी की असाधारण वृद्धि दर्ज की गईजबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 41. 1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। कोरोना की वजह से जो हालात बने उसकी वजह से एक तरफ तो कंपनियां निवेश करने से बचना चाह रही हैं दूसरी तरफ कारोबारी कर्ज लेने की तरफ कम आकर्षित हो रहे हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि खुदरा कर्ज लेने वालों की तुलना में कारोबारी कॉर्पोरेट कर्ज मांगने वालों की संख्या हमेशा ही ज्यादा रही है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है और कारोबारी कर्ज मांगने वालों की संख्या शून्य दशमलव 1 फीसदी से आगे नहीं बढ़ सकी। उधर , सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी नामक एक अन्य संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक़ कृषि क्षेत्र में काम का अभाव होने की वजह से गाँव की महिलायें कम मजदूरी पर घर गृहस्थी से जुड़े दूसरे काम करने को मजबूर हैं ।
कोरोना दौर में अर्थव्यवस्था को गति देने वाले कृषि क्षेत्र की हालत भी बहुत खराब है। सीएमआईई की एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल अगस्त के महीने में ही भारत के कृषि क्षेत्र के 87 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं इनमें महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है .. इन हालात में कृषि क्षेत्र से जुड़े ये बेरोजगार लोग कम वेतन और मजदूरी पर घरों में साफ़ – सफाई करने ,रखवाली करने और खाना बनाने जैसे गैर कृषि कार्य करने को मजबूर हो गए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ बात यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि हालात इस कदर चौंकाने वाले भी हैं कि कृषि क्षेत्र से कामगारों के पलायन के साथ ही इसका रियल इस्टेट और निर्माण क्षेत्र पर भी प्रतिकूल असर पड़रहा है। इसकी वजह यह है कि कृषि क्षेत्र के ग्रामीण बेरोजगार जब पलायन कर शहरों में रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र में काम के मौके तलाशने लगते हैं तब वो वहाँ पहले से काम कर रहे लोगों से कम पैसे में काम करने को तैयार हो जाते हैं। इस वजह से बड़ी तादाद में इन क्षेत्रो से भी लोग बेरोजगार हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़ ऐसे लगभग पांच लाख लोगों को कोरोना की वजह से अपना रोजगार छोड़ने को मजबूर होना पडा है। रिपोर्ट का यह हिस्सा बहुत ही दर्दनाक कहा जा सकता है जिसके मुताबिक जहां कोरोना के चलते कृषि क्षेत्र में 87 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं वहीं गैर कृषि क्षेत्र में 68 लाख नए रोजगार सृजित हुए हैं।
रोजगार , अर्थव्यवस्था और अन्य क्षेत्रों के साथ ही कोरोना महामारी का गरीबों की शिक्षा पर भी बहुत बुरा और प्रतिकूल असर पड़ा है। यह तथ्य सर्वविदित है कि कोरोना की वजह से पिछले साल ( 2020 ) 25 मार्च के बाद से स्कूल बंद कर दिए गए थे। स्कूलों के लगभग डेढ़ साल तक बंद रहने के कारण ज्यादातर स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं के जरिये पढ़ाई जारी रखने की कोशिश की लेकिन यह तरकीब भी ज्यादा फायदेमंद साबित नहीं हो सकी क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा उन अमीर और आर्थिक रूप से सामर्थ्यवान बच्चों तक तो उपलब्ध थी जो एक अदद स्मार्ट फ़ोन का खर्च बर्दाश्त कर सकते थे।
लेकिन कल्पना कीजिये किदेश के जिन बच्चों के माता – पिता के पास बच्चों की पढ़ाई के लिए कापी – किताब खरीदने के लिए पैसे नहीं होते वो भला अपने बच्चों को स्मार्ट फ़ोन कैसे दिला सकते हैं। ऐसे में हुआ यह किदेश के ग्रामीण और गरीब तबके के जो बच्चे संसाधनों के अभाव की वजह से ऑनलाइन क्लास की सुविधा का लाभ नहीं ले सके उन्हें पढ़ाई के मामले में भी बहुत नुकसानउठाना पड़ा है। ऐसे बच्चे अतीत में की गई पढ़ाई भी भूलते जा रहे हैं और नया कुछ उनकी समझ में आ नहीं रहा है। इसका असर यह हुआ कि बच्चों की पढ़ने और पढ़ाई करने की क्षमता में जबरदस्त गिरावट आई है। कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई के स्तर में आई गिरावट की भरपाई करना मुश्किल होगा। कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई का सबसे बुरा असर अनुसूचित जाति और आनुसूचित जनजाति के बच्चों पर पड़ा है क्योंकि इन तबकों के 55 फीसदी से अधिक बच्चों के पास स्मार्ट फ़ोन की सुविधा नहीं है। इसी तरह अन्य तबकों के 38 फीसदी गरीब बच्चे स्मार्ट फ़ोन नहीं रख सकते हैं। कह सकते हैं कि कोरोना ने गरीबों पर एक मार और की है।