दुनिया की सभी सरकारें झूठ बोलती हैं, यह एक सच्चाई है और दुनिया के सभी देशों की जनता इस सच्चाई से वाकिफ है। यही कारण है कि जब किसी दुर्घटना के बाद कोई भी सरकार मृतकों के घायलों के आंकड़े जारी करती है तो आम आदमी यही कहता हुआ दिखाई देता है, ” इस हादसे में मरे तो बहुत सारे लोग होंगे लेकिन सरकार कम बता रही है ” इसी तरह दूसरे सरकारी आंकड़ों को लेकर भी यही कहा जाता है कि सरकार के आंकड़े गलत हैं या फिर सच्चाई से काफी दूर हैं।
सरकार अपनी उपलब्धियों के आंकड़े तो बढ़ा – चढ़ा कर बताती है लेकिन जहां सरकार लक्ष्य के अनुरूप काम नहीं कर पाती और इस नाते पिछड़ जाती है वहाँ आंकड़े छिपाने शुरू कर देती है। सरकार आपदा विपदा के समय मृतकों – घायलों की संख्या कम बताये यह बात तो समझ में आती है लेकिन अगर किसी घटना के सन्दर्भ में एक सिरे से यह कह दे कि उस हादसे में किसी की जान नहीं गई तो यह सब बहुत हास्यास्पद लगता है और सरकार के ऐसे बयान में उसका मसखरापन नजर आने लगता है। विगत मंगलवार 20जुलाई 2021को संसद के उच्च सदन राज्यसभा में केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉक्टर भारती प्रवीण पवार ने एक लिखित सवाल के जवाब में जब यह जानकारी दी की कोविड के दौरान आक्सीजन की कमी से किसी के मरने की सूचना किसी राज्य से नहीं मिली, तो कुछ इसी तरह के सरकारी मसखरेपन का ही एहसास हुआ।
स्वास्थ्य राज्य मंत्री का घुमा फिर कर दिया गया यह जवाब बताता है की कोरोना की बीमारी जो एक विकट महामारी का रूप ले चुकी है उसको लेकर सरकार के मंत्री कितने गंभीर हैं केन्द्रीय मंत्री के जवाब में यह संकेत भी साफ़ है की इस बाबत उन्हें राज्यों से वांछित जानकारी नहीं मिली। स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है इस नाते इस बाबत राज्य सरकारों से जानकारी मिलने पर ही केंद्र सरकार कुछ कह सकती है।
मतलब यह कि केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें भी कोरोना को लेकर गंभीर नहीं हैं और देश के आधे से ज्यादा राज्यों में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अथवा उसकी सहयोगी दलों की ही सरकारें वजूद में हैं। इसका एक मतलब यह भी लगाया जा सकता है कि कोरोना के दर्द को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है। जबकि सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। कुछ माह पहले संपन्न संसद के बजट सत्र में सरकार ने पूरी गंभीरता के साथ कोरोना मसले से जुड़े सवालों के जवाब दिए थे। तब तक आक्सीजन से कमी के चलते मौत होने का सिलसिला शुरू नहीं हुआ था। यह सिलसिला तो इस साल अप्रैल में आई कोरोना की तीसरी लहर के दौरान शुरू हुआ था और तब सरकार ने खुद माना था कि कोविड के दौरान आक्सीजन की कमी से देश के अनेक अस्पतालों में कई लोग मौत का शिकार हुए थे।
इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए युद्ध स्तरपर प्रयास भी किये थे और दुनिया के कई देशों से आक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति के इंतजाम भी किये थे। यह वही दौर था जब देश की राजधानी दिल्ली को भी आक्सीजन के संकट से जूझना पड़ा था। ऐसे वक़्त में केंद्र सरकार ने ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार को इस संकट से उबरने में मदद की थी। उस दौरान दिल्ली में ही कई मौत हुई थीं। दिल्ली के रोहिणी स्थित जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल समेत कई अस्पतालों में इस तरह के हादसे हुए थे ऐसे में केंद्र सरकार आज यह कैसे कह सकती है कि आक्सीजन की कमी से देश में मरने वालों की संख्या उपलब्ध नहीं है। सरकार के इस बचकाने जवाब को लेकर विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार को अपने निशाने पर लिया है।
विपक्षी दलों का कहना है कि दूसरी लहर के पीक पर रहने के दौरान अस्पतालों में मरीजों की मौत की कई बड़ी घटनाओं ने दुनिया भर का ध्यान भारत की ओर खींचा था। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है।
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री के इस आशय के जवाब के एक दिन बाद विगत बुधवार 21 जुलाई को कहा कि ऑक्सीजन की कमी से देश में बहुत सारी मौतें हुईं। दिल्ली में भी ऐसा वाकया देखने को मिला। यह कहना एकदम गलत है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो अस्पताल आक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति जैसे काम के लिए अदालतों का दरवाजा नहीं खटखटाते।
इस बाबत आप सरकार का यह भी कहना है कि दिल्ली में ऑक्सीजन से हुई मौतों की जांच के लिए ऑडिट कमेटी बनाई थी। अगर वो पैनल अब भी वहां होता तो आसानी से आंकड़ा मुहैया कराया जा सकता था। लेकिन केंद्र सरकार ने उप राज्यपाल के जरिये रिपोर्ट सौंपने की इजाजत नहीं दी।
दिल्ली सरकार ने ऐसी मौतों पर 5 लाख रुपये मुआवजे की पेशकश की थी, लेकिन दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल जो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत से काम करते हैं,
ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस मामले में स्वयं ही एक पैनल गठित किया है लिहाजा दिल्ली सरकार को अलग से पैनल गठित करने की कोई जरूरत नहीं है।
इसी सन्दर्भ में यह तथ्य भी बहुत महत्वपूर्ण है कि मंगलवार 20 जुलाई 2021 को राज्यसभा में अपने दिए लिखित जवाब में स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है और राज्य केंद्र सरकार को नियमित तौर पर कोरोना के मामले और मौतों की जानकारी देते रहते हैं। लेकिन राज्यों ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर केंद्र सरकार को कोई विशेष आंकड़ा नहीं दिया है। आप और कांग्रेस के साथ ही शिवसेना ने भी इस मामले में केंद्र सरकार को घेरा है।
इस पार्टी के वरिष्ठ सांसद संजय राउत ने भी इस बयान को लेकर केंद्र सरकार को घेरा है। शिवसेना सांसद का कहना है कि संसद में दिए गए सरकार के इस बयान से उन्हें उन परिवारों का ध्यान आ जाता है जिनके परिजन आक्सीजन की कमी की वजह से इस दुनिया से कूच करके चले गए थे। सरकार के इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान से उन परिवारों को कैसा लगता होगा , यह जानने की कोशिश भी हम नहीं कर पाते .. इन परिवारों को सरकार के खिलाफ मुकदमा दाखिल करना चाहिए। गौरतलब है कि दिल्ली के जयपुर गोल्डन हास्पिटल में ही ऑक्सीजन की कमी से 25 कोरोना मरीजों की मौत हुई थी। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 61 साल के एक शख्स की मौत हो गई, क्योंकि उसका परिवार ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम नहीं कर सका। इस तथ्य से पूरा देश परिचित है कि, भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन का भारी संकट कई राज्यों में सामने आया था। इसमें यूपी, दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में अस्पतालों में बेड औऱ ऑक्सीजन न मिलने से तमाम मरीजों ने दम तोड़ दिया था। इसके बाद अगर केंद्र सरकार राज्यों के हवाले से यह बयान दे की कोरोना दौर में आक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई थी तो इसे क्या कहा जाएगा ?