बुन्देलखण्ड: कभी पानी तो कभी सूखा इस बार बुंदेलखंड चर्चा में हैं अपने सात जिलों में हुए पर्यावरण संरक्षण के नाम पर हुए घोटाले को लेकर। मामला वन विभाग द्वारा पौधरोपण,वन समृद्धिकरण, वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़ा है।
विगत सितंबर 2020 से इस मामले को संज्ञान लेकर जब पड़ताल शुरू हुई तब चौकानें वाले सच सामने निकल कर आये मौजूदा भाजपा सरकार में इस परियोजना का खूब ब्यौरा ढिंढोरा पीटा गया, इससे पहले भी अखिलेश सरकार में पर्यावरण बचाने के नाम पर खूब नौटंकी हुई पर असल में सारे पौधे कागज़ों पर लगे जमीन पर इनका कोई अता पता नहीं।
आशीष ने जब RTI के माध्यम से सरकारी दस्तावेजों को इकट्ठा करके विस्तार से जब खोजबीन की तब जाकर मामला पूरी तरफ से खुलकर सामने आया है। दूसरी तरफ वर्ष 2011-12 में CAG की आडिट रिपोर्ट में बुंन्देलखण्ड विशेष पौधरोपण अभियान में तत्कालीन बसपा सरकार के वक्त भी सात जनपदों में दस करोड़ पौधरोपण पर 40 करोड़ रुपये का घोटाला का खुलासे होने पर सितंबर 2020 को मुख्य वन संरक्षक अनुश्रवण एवं मूल्यांकन इकाई लखनऊ को शिकायत की गई थी।
मौजूदा आईएफएस अधिकारी पवन कुमार ने आशीष के शिकायत के बाद मामले कि जांच बुंन्देलखण्ड जोन के मुख्य वन संरक्षक पीपी सिंह झाँसी को सौंप दी है।
उल्लेखनीय हैं बिना जांच समिति गठित किये वन संरक्षक झाँसी ने यह जांच चित्रकूट डीएफओ कैलाश प्रकाश को दी और उन्होंने अपने चहेते उप प्रभागीय वन अधिकारी आरके दीक्षित को बड़ी जांच देकर किनारा कर लिया। लगातार मीडिया की नजरों में खबरें आने के बाद जांच को आठ माह लटकाए रखा गया और RTI से जवाब मांगने पर डीएफओ चित्रकूट ने बरगढ़ ब्लाक की वन रेंज देशाह में सात जनपद की जांच आख्या निपटा दी गई आनन फानन में।
इस मामले से सबक लेते हुए आशीष ने जो कि मुख्य शिकायतकर्ता भी है अपने शपथपत्र साक्ष्यों को उच्चन्यायालय प्रयागराज जाकर जनहित याचिका को PIL में परिवर्तित कर रिट दाखिल करने की कारवाई की हैं। याचिका संख्या 1874/2020 में बुंन्देलखण्ड परिक्षेत्र के अंदर एक दशक के दौरान 300 करोड़ के घोटाले और CAG की आडिट रिपोर्ट पर कार्यवाही न होने को आधार बनाया गया हैं। वहीं खासकर बाँदा के गिरते वनक्षेत्र 1.21% सहित अन्य जनपदों के RTI से जुटाए आंकड़े शामिल है इसे देखा जाये तो पाएंगे हर साल करोड़ों के पौधरोपण के दावे के बाद भी बुन्देलखण्ड में पर्यावरण हाशिये पर खड़ा है और लूट का अड्डा बनता चला जा रहा है।
पर्यावरण के गिरते स्तर के लिए वन विभाग को ज़िम्मेदार ठहराया गया हैं। आपकी जानकारी के लिए ये बता दे पिछले सात वर्षों में यूपी के अंदर 54 करोड़ पौधरोपण हुआ है। वहीं चार विश्वरिकार्ड पौधरोपण की उपलब्धि पर बनाये गए है लेकिन नतीजा वही ढांक के तीन पात जैसा है।
आशीष की याचिका की पर इलाहाबाद मुख्य न्यायपीठ ने बीते 13 जनवरी को आदेश देकर उत्तरप्रदेश सरकार से पौधरोपण पर खर्च धनराशि व उपलब्धि का जिलेवार ब्यौरा मांगा है। वहीं बुंन्देलखण्ड के बाँदा को रिट आदेश में विशेषतौर पर इंडिकेट किया गया हैं। याचिकाकर्ता ने माननीय उच्च न्यायालय से इस मामले की जांच सीबीआई या स्वतंत्र जांच एजेंसी से करवाने की अपील की है। देखना यह होगा कि वनविभाग के हरित भ्रस्टाचार पर माननीय न्यायपीठ क्या कार्यवाही करती हैं।
साथ संभाल के अभाव में पौधों की उच्च मृत्यु दर ऐसे मामलों में बचाव का रास्ता मुहैया कराती है। पौधारोपण के खर्च के साथ साथ उनकी देख भाल के बजट का विश्लेषण जरूरी है।